मुख पृष्ठब्र.कु. अनुजशान्ति कहाँ अदृश्य है?

शान्ति कहाँ अदृश्य है?

हम सभी अपने जीवन का एक दर्शन करते हैं। दर्शन सहज है, सुदृढ़ है लेकिन अपने हिसाब से। हम सभी को स्वीकार ये नहीं है जैसे हम हैं। न खुद को स्वीकार है और न औरों को स्वीकार है। हर कोई कहता है कि आप कुछ करो, कुछ नया करो, कुछ अलग करो तो आप हमें स्वीकार हो।

मतलब जो हमारे अपनी ओरिज़नल स्टेट है, ओरिज़नल अवस्था है वो किसी को स्वीकार नहीं। जैसे छोटा बच्चा है वो सबको स्वीकार है। क्योंकि अभी वो कुछ कर नहीं सकता लेकिन उसी बच्चे को पहले से जैसे वो बड़ा होना शुरू होता है लोग स्वीकार करने के लिए उसके ऊपर टैग लगाना चाहते हैं कि अगर कुछ बोलने लग गया है, जल्दी-जल्दी नई भाषा सीख गया, नया कुछ करने लगा तो लोग उसके हिसाब से तारीफ करने लगे, उसको छोड़कर, उसकी ओरिज़नल सोच को खत्म कर दिया।

और लोग कहते भी हैं बचपन में बच्चा बिल्कुल पारदर्शी होता है, इनोसेन्ट होता है तो उसकी हँसी बहुत अच्छी लगती है, सबको भाति है, खुश रहता है। तो उस हिसाब से जैसे-जैसे बुढ़ापा आता है तो बच्चा थोड़ा ही खुश रहता है, मतलब ये होना चाहिए कि जब बच्चा बड़ा हो तो उसकी खुशी और बढऩी चाहिए। लेकिन बुढ़ापे तक जाते-जाते खुशी का ग्राफ घट गया। जोकि बढऩा चाहिए था। तो कहीं न कहीं इस बात को हमको समझना है कि हमारे खुद को खुद से ना स्वीकार करना, दूसरों के साथ तुलना, हमारे अहंकार को जन्म देता है। अहंकार को साफ शब्दों और सिम्पल शब्दों में समझना है तो कह सकते हैं कि मैं जो हूँ, जैसा हूँ वो मुझे मान्य नहीं है। इसी को अहंकार कहते हैं और इसी से सबसे पहले अशान्ति जन्म लेती है।

तो अशान्ति का प्रमुख कारण अहंकार है और अहंकार यही है तुलनात्मक जीवन। आप देखो जितने भी मनुष्य हैं दिन-रात तुलनात्मक जीवन जीते हैं। और तुलनात्मक जीवन का कारण एक है कि जीवन में बहुत सारी घटनाएं घट रही हैं दरअसल घटनाएं घट नहीं रही हैं उसको हम घटा रहे हैं। क्योंकि हमने वैसा अपने आप को बनाना शुरू किया जैसा लोगों ने हमें देखना चाहा।

लास्ट में हम फिर वहीं पर आकर टिकते हैं कि मैंने तो पूरे जीवन अपने अहंकार को सन्तुष्ट करने के लिए कार्य किया। माना वो किया जो मैं नहीं था। अपने लिए तो कार्य ही नहीं किया। इसलिए ज्य़ादातर सभी अपने मूल स्वभाव को छोड़कर कुछ और करते हैं। देखो, परमात्मा हमको कितना सहज सिखाते हैं। तुम अपने ज़ीरो भाव को देखो, आत्मिक भाव को देखो, शून्य को देखो, अपने कम्पलीट बिन्दु को देखो, तुम ज़ीरो हो। तो ज़ीरो का मतलब जिसके अन्दर सबकुछ है लेकिन कुछ भी नहीं है। जो कम्पलीट है, जिसको ऊपर-नीचे करने की आवश्यकता नहीं है। जो है, परफेक्ट है।

ऐसे ही छोटा बच्चा है, वो ऊपर-नीचे नहीं करता है, सबको स्वीकार होता है। लेकिन जैसे बड़ा हो जाता है, कुछ ऊपर-नीचे करता है तो देखो कैसे अस्वीकार होता है। तो कुछ अच्छा किया तो उसका भी ईगो, कुछ बुरा किया तो उसका भी ईगो। उनको बुरा लग रहा है, उनको अच्छा लग रहा है। तो तुलनात्मक जीवन के आधार से हम सभी अशान्त होते चले गए। और यह अशान्ति का प्रमुख कारण है- अपने आपको शरीर के आधार से देखना और शरीर पर नए-नए लेबल लगाना।

इसलिए परमात्मा ने आकर हमें शिक्षा दी, समझाया कि तुम एक आत्मा हो, शरीर से बिल्कुल न्यारे हो। तुम ज़ीरो हो इसलिए हीरो हो। लेकिन जैसे तुमने दूसरों के कहने से अपने जीवन को जीना शुरू किया, दूसरों को स्वीकार कराने के लिए जीवन जीना शुरू किया, दूसरों के सामने अपने को प्रूफ करने के लिए जीवन जीना शुरू किया तो अशान्त होते चले गए। इसीलिए हमारा प्रेम, पवित्रता, सुख सब गायब हो गया है। सिर्फ एक चीज़ के कारण कि मैं इस दुनिया में जो कुछ नया करूंगा उससे मैं पहचाना जाऊंगा। इसीलिए जीवन आज हमारा असहज है, अतृप्त है, अपूर्ण है। इसलिए अशान्ति का प्रमुख कारण है- अहंकार। अहंकार माना जो मैं हूँ वो स्वीकार नहीं। तुलनात्मक जीवन, अहंकार का पहला और अंतिम पड़ाव है। तो सबसे पहले इसको पहचानें, खुद को जानें, खुद को ज़ीरो समझें, आत्मा समझें, आत्मा समझ के कार्य करें। आप देखो अपने आप में सन्तुष्टि आ जाएगी और गहरी शान्ति भी आ जाएगी।

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