जब नवरात्रि शब्द प्रयोग होता है तो मन में प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या पुरानी रात्रि भी है ? जी हाँ। जब कलियुग का अंत आता है, उसे ही पुरानी रात्रि, घोर अंधकार कहा जाता है। ऐसे कलियुग के अंत समय अज्ञान अंधकार मेंं परमात्मा का अवतरण होता है और वे घोर अज्ञान के अंधकार को प्रकाश की ओर, आत्म जागृति की ओर ले जाते हैं और यह ज्ञान कलश माताओं, बहनों के सर पर रखते हैं। तब यह पुरानी रात्रि की जगह नवरात्रि का रूप ले लेती है और श्रद्धालु शिव शक्तियों की पूुजा करते हैं। नवरात्रि के यह नौ दिन लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए, माँ दुर्गा, माँ सरस्वती, माँ लक्ष्मी की पूजा-अर्चना, आराधना करते है। श्रद्धालु आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से लेकर नवमी तक नवरात्रि का उत्सव भक्ति-भावना और उत्साह से मनाते हैं। इस त्योहार के प्रारम्भ में ही लोग कलश की स्थापना भी करते हैं और अखण्ड दीप जगाते हैं। वे इन दिनों कन्या-पूजन करते, व्रत,उपवास भी करते हैं, क्योंकि हर एक इंसान को जीवन में तीन चीज़े अवश्य चाहिए होती हैं। उन तीनों में से एक है धन। इसलिए मनुष्य अपना अधिक समय धन कमाने में ही लगा देता है। धन को प्राप्त करने के लिए मनुष्य प्रात: दुकान खोलते ही श्री लक्ष्मी का पूजन करते है और अपने जीवन में यही मानकर चलता है कि सभी धन के ही संगी-साथी हैं। नवरात्रि के समय मनुष्य धन प्राप्ति के लिए पूजन करते हैं। दूसरी चीज़ चाहिए – विद्या अथवा ज्ञान। कहते हैं ज्ञान के बिना भी मनुष्य की गति नहीं है। यह भी उक्ति है कि -लिखेंगे-पढ़ेंगे तो बनेंगे नवाब। ज्ञान को भी रतन अथवा धन माना जाता है। ज्ञान की प्राप्ति के लिए लोग सरस्वती का गायन-वंदन करते हैं। विश्व-विद्यालयों में भी सरस्वती को ज्ञान की देवी मानकर उनके चित्र लगाये जाते हैं। तीसरी चीज़ जो मनुष्य चाहता है, वह है शक्ति। शक्ति के बिना इंसान किसी काम का नहीं रहता। मनुष्य को शारीरिक तथा आत्मिक दोनों शक्तियाँ चाहिए। अत: ज्ञान-शक्ति, योग -शक्ति इत्यादि के लिए भी मनुष्य सरस्वती, दुर्गा इत्यादि का वन्दन-पूजन करते हैं।

भक्त जन नवरात्रि में शक्तियों के चित्रों अथवा मूर्तियों की स्थापना करके दीपक जगाकर कहते हैं – हे अम्बे,जैसे यह दीपक चहुँ ओर अन्धकार को प्रकाश में परिवर्तित कर रहा है,आप भी हमारे जीवन में प्रकाश कर दो, हमारे अज्ञान अन्धकार को हर लो माँ। हमें भी शक्ति दो. . . .। अब शक्तियों की जीवन कहानी देेखेंगे तो शक्तियों के 108 नाम प्रसिद्ध है। वे सभी लाक्षणिक अथवा गुणवाचक नाम है। उन नामों से या तो उनके पवित्र जीवन और उनकी उच्च धारणाओं का परिचय मिलता है, या जिस काल में वे हुईं, उस समय का ज्ञान होता है, या परमापिता परमात्मा के साथ तथा मनुष्यमात्र के साथ उनके सम्बन्ध का बोध होता है और यह तो उनके कर्तव्यों का पता चलता है। उदाहरणार्थ, शक्तियों के जो नाम हैं उनमें से कुछ सरस्वती, विमला, तपस्विनी, सर्वशास्त्रमयी, त्रिनेत्री इत्यादि नाम हैं, उनसे यह परिचय मिलता है कि शक्तियों में ज्ञान शक्ति, योग, तपस्या की शक्ति और पावित्रता की शक्ति थी। ऐसे कर्तव्यवाचक अनेक नाम जैसे कि शीतला, दुर्गा, शारदा, ब्राह्मी, कुमारी, अम्बा आदि आदि प्रसिद्ध हैं।

रात्रि में ही शक्तियों के गायन-वंदन की जो परम्परा है अथवा रात्रि को ही जागरण, स्मरण इत्यादि करते आये हैं उसके पीछे भी एक महत्वपूर्ण इतिहास छिपा है। वास्तव में जब कलियुग का अथवा ब्रह्मा की रात्रि का अन्त होता तब सभी आत्मायें आसुरी अवगुणों से पीड़ित,अज्ञान-निद्रा में सोई हुई और आत्मिक शक्ति से हीन होती हैं। ऐसी अज्ञान रात्रि के समय परमपिता परमात्म ज्योतिर्लिंगम शिव एक मध्यम वर्गीय मनुष्य के वृद्ध तन में प्रविष्ट होते हैं और उसका दैहिक जन्म के समय का नाम बदल कर कर्तव्य वाचक नाम – प्रजापिता ब्रह्मा रखते हैं। उसके मुखारविन्द द्वारा जो नर-नारीयाँ ज्ञान सुनकर और अपने जीवन को परिवर्तित करके नया आध्यात्मिक जन्म पाते हैं, वे ही सच्चे अर्थ में ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ हैं। उन्हीं ब्रह्मचर्य व्रत धारिणी कन्याओं-माताओं को – शिव-शक्तियाँ कहते हैं, क्योंकि वे ब्रह्मा द्वारा परमात्म शिव से ज्ञान-शक्ति,योग-शक्ति और पवित्राता-शक्ति प्राप्त करती हैं। अत: उस रात्रि की याद में तथा उन शक्तियों की स्मृति में आज भी लोग रात्रि ही को शक्तियों का गुण-गान करते, कुवारी कन्या का पूजन करते और नवरात्रि का त्योहार मनाते हैं। अत: आप भी ज्ञान व योग की शक्ति से स्वयं को भरपूर कर अपने अंदर के मनोविकारों पर विजय प्राप्त करें। या यूँ कहें कि स्वयं ही श्री लक्ष्मी समान ज्ञानधन देने वाली देवी बन जायें, विद्या की देवी माँ सरस्वती, दुर्गुणों को खत्म करने वाली असुर-संहारक माँ दुर्गा,आत्माओं को शांति व शीतलता प्रदान करने वाली माँ शीतला देवी, ज्ञान द्वारा अलौकिक जन्म देने वाली माँ जगदम्बा बन जायें। अच्छे कार्य के लिए उमंग भर देने वाली उमा देवी बन जायें। अत: आप भी इस रहस्य को विस्तृत रूप से समझने के लिए नज़दीक के प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में जाकर अपने जीवन को धन्य-धन्य बनायें।
बी.के. दिलीप भाई, ओम शांति मीडिया शांतिवन ।




