कितनी अजीब सी बात है कि हर साल रावण को जलाने के बावजूद भी वो ज़िंदा रहता है ! इतना ही नहीं, उसकी ऊँचाई, चौड़ाई सब कुछ बढ़ती ही जाती है। क्या अब भी रावण जि़दा है? या रावण अमर है? न जाने हर साल इस जलाने के आयोजन के लिए कितना खर्च होता होगा, इसका कोई अंदाजा नहीं है। देश में करोड़ो रूपये इस रावण को जलाने के लिए लगाये जाते हैं। महज आधे घंटे में सारा बुत जल जाता है फिर भी रावण अगले साल के लिए करोड़ो रूपये खर्च करवाने के लिए ज़िंदा हो जाता है। सदियों से जलाते-जलाते मनुष्य के मन की ज्योति अभी तक भी नहीं जली कि रावण जला भी या नहीं। इसलिए आज के दिन इस विशेष रहस्य को सभी जानकर रावण का दहन पूर्ण रूप से करें और आनंदोत्सव मनायें।
मनुष्य के अंदर है – पाँच विकार :- बुत तो जलकर खाक हो जाता है परंतु मनुष्य के अंदर पाँच विकारों का जो भूत है वा नहीं जलता, वो तो ज़िंदा ही रहता है। वास्तव में हम सभी के अंदर जो रावण बैठा है उसे जलाने की ज़रूरत है। ऐसा दस शीस वाला रावण भला कहा हुआ है? न हुआ है न होना है। आज के समय में अगर दो शीश वाला बच्चा भी पैदा भी हो जायें तो भी कितनी दिक्कत हो जाती है। एक को ऑपरेशन कर के निकाल दिया जाता है और उस बच्चे को नई जिंदगी देते है।
बुराइयों का प्रतिक है – दस शीश:- रावण के यह दस शीश प्रतीकात्मक है, जो बुराइयों का प्रतिक है। आज की परिस्थिति भी कुछ ऐसी ही है जो मनुष्य के पास इतने शिश होते हैं जो चर्म चक्षू से नहीं परंतु जब व्यवहार में आते हैं तब ज्ञान के नेत्र से दिखते हैं। हम सभी जब किसी ऐसे इंसान के व्यवहार में आते हैं तब पता चलता हैं। जैसे कोई बात होती है तो कहते है ना फलां व्यक्ति कामी, क्रोधी, लोभी,अहंकारी है। इंसान के अदर यह जो बुराईयाँ है जो शीश के रूप में दिखाया गया है। एक शीश कटता है तो दूसरा पनपता है, दूसरा कटता है फिर तीसरा उपर आ जाता है। ऐसे कई शीश मनुष्य के पास पनप रहे है इन्हें काटने के लिए लोग जि़ंदगी का पूरा सफर लगा देते हैं फिर भी कोई ना कोई शीश रह जाता है। ऐसा क्यों होता है? यह इसलिए होता है कि उसे वह जानता ही नहीं किस तरह इसे मार दिया जाये या उसका संपूर्ण वध किया जायें।
नाभी में तीर चलाने से :- कहते है कि श्री राम ने रावण को मारने के लिए खूप प्रयास किया फिर भी रावण नहीं मरता था, उसका कोई ना कोई सिर उपर आ ही जाता था। परंतु जब रावण के नाभी में तीर चलाया तो रावण का अहंकार चूर-चूर हो गया और रावण खत्म हो गया। इसी तरह कहते है ना कि इसके पेट में कोई बात ठहरती नहीं, मतलब जो भी उल्टा या सुल्टा ज्ञान है वो पेट में ही अर्थात् नाभी में है। ऐसे उल्टे ज्ञान को मार दिया जाये तो मनुष्य देवतुल्य बन जाता है। ईश्वरीय ज्ञान का तीर अपने अंदर धारण कर लेना ही सही अर्थ में स्वयं के अंदर बैठा हुआ रावण को भस्म करना है।
वास्तविकता यह है कि श्री राम का राज्य त्रेतायुग के आरम्भ में था और उनके काल में न तो विश्व में असुर या राक्षस थे, न कोई रावण ही था और न ही श्री राम की धर्म पत्नी श्री सीता का अपहरण हुआ था। वास्तव में रावण का मतलब है स्त्री और पुरूष में पाँच मनोविकारों का प्रतिक है।

बी.के. दिलीप भाई, राजकुले शांतिवन ।




