मुख पृष्ठब्र.कु. शिवानीरिगार्ड और रिस्पेक्ट के बीच अंतर समझने से व्यवहार अच्छा रहेगा

रिगार्ड और रिस्पेक्ट के बीच अंतर समझने से व्यवहार अच्छा रहेगा

  • रिगार्ड का अर्थ संदर्भ पर निर्भर करता है, जबकि रिस्पेक्ट एक विशिष्ट भावना और व्यवहार है जो दूसरों की गरिमा को स्वीकार करता है।
  • व्यवहार में रिगार्ड बदलता रहता है परन्तु रिस्पेक्ट, सर्व के प्रति एक भीतरी सम्मान की भावना रखनी चाहिए।

जब भी किसी से मिलेंगे, किसी के साथ काम करेंगे, रिश्ता तो निभाएंगे लेकिन हर क्षण ये याद रखेंगे कि वो ‘रिश्ता’ और वो ‘रोल’ निभाने वाले वो भी कौन हैं? वो भी आत्मा हैं। अभी तक हमारे सारे जो इंटरएक्शन होते थे वो किस आधार पर होते थे? वो रिश्ता, मैं रिश्ता, वो रोल और मैं रोल। रोल टू रोल कनेक्शन और रिलेशन टू रिलेशन कनेक्शन। लेकिन उसमें क्या होता था, कोई किसी से ऊँचा है, कोई किसी से नीचा है। तो कोई किसी से इन्फीरियर फील करता है, कोई किसी से सुपीरियर फील करता है। लेकिन अब हमें स्मृति आई है, वो सिर्फ एक रोल है। हम कौन हैं? मैं एक आत्मा हूँ। वो कौन हैं? वो भी एक आत्मा है। जब आत्मा और आत्मा एक-दूसरे से बात करेंगे तो कौन सीनियर और कौन जूनियर होगा? कौन बड़ा होगा और कौन छोटा होगा? तो सीनियर और जूनियर उम्र में बड़े और छोटे, रिश्ते में बड़े और छोटे। वो सब होगा, समाज की मर्यादाओं के अनुसार भी चलेंगे। वो होता है रिगार्ड। जैसे कोई सीनियर आयेगा तो हम खड़े हो जाएंगे। हम कहीं जायेंगे तो कोई और खड़ा हो जाएगा। ये रिगार्ड है रोल के लिए।

व्यवहार में एक छोटी-सी चीज़ को जोडऩा होगा – लेकिन अब उसमें जो छोटी-सी चीज़ को जोड़ देंगे, अटेन्शन रखेंगे कि रिगार्ड रोल के लिए होगा लेकिन सम्मान हर एक आत्मा के लिए होगा। ये नहीं कि किसी से बहुत प्यार से बात की, किसी से ऐसे ही बात करनी है। किसी से कुछ ज्य़ादा ही झुक-झुक कर बात की और किसी से अहंकार से बात की। क्या ये हो सकता है कि सभी के साथ व्यवहार एक समान हो? हो सकता या नहीं हो सकता? सभी के साथ जो रिगार्ड(आदर) है वो बाह्य है, वो अलग-अलग होगा। जो अंदर से रिस्पेक्ट(सम्मान) है, वो एक समान होगा।

सबके साथ एक समान होने से अभिमान खत्म होगा – सबके साथ समान होने से व्यवहार सबके साथ समान हो सकता है? सबके साथ एक समान व्यवहार होने से क्या फायदा होगा? सबके साथ एक समान होने से अभिमान जो होगा वो सोल कॉन्शियस मतलब अहंकार खत्म हो जाएगा। अहंकार सभी विकारों की जड़ है। जहाँ अहंकार होगा वहाँ काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्र्या, द्वेष, नफरत होगा। अहंकार मतलब ईगो व ईगो मतलब बॉडी कॉन्शियस। अब मैं कौन हूँ? मैं एक शांत स्वरूप, शक्तिस्वरूप आत्मा हूँ, ये मेरा रोल है। रोल आवश्यक है। लेकिन वो मेरा रोल है। वो मैं रोल नहीं हूँ। अभी तक क्या समझते थे? कि वो मैं रोल था। बस ‘मैं’ ही मैं हूँ, ये मेरा रोल है, ये मेरी जि़म्मेदारी है, ये मेरी पोजीशन। रोल बदलते रहेंगे, रिश्ते भी बदलते रहेंगे। पहले आप किसी के बच्चे थे, फिर आपके बच्चे हैं, रिश्ते बदल गये। तो रिश्ते भी बदलते रहेंगे, रोल भी बदलते रहेंगे, एक चीज़ वही रहेगी कि ‘मैं’ एक आत्मा हूँ, दूसरी आत्मा से बात कर रही हूँ। अब वो प्रैक्टिस करना है। सबसेमिल रहे हैं, पद अलग-अलग हैं लेकिन हम किससे बात कर रहे हैं? हम ‘पद-पोजीशन’ से बात कर रहे हैं या व्यक्ति से बात कर रहे हैं? हम किससे बात कर रहे हैं? अगर हम सामान्य रूप से देखें तो हम लोगों से बात नहीं कर रहे होते हैं, हम किससे बात कर रहे होते हैं? हमारे बात करने का तरीका चेंज हो जाता है, हमारा व्यवहार करने का तरीका चेंज हो जाता है। और जितनी बार वो चेंज-चेंज होता रहता है वो अपने ओरिज़नैलिटी से हटता जाता है।

तो ठीक है ये प्रैक्टिस करेंगे? क्या प्रैक्टिस करेंगे? जो भाई आपकी कार चला रहे हैं वो कौन हैं? आपमें और उसमें कौन ऊँचा है? ये एक फिल्म की तरह है। एक फिल्म कैसे होती है? एक्टर अलग-अलग होते हैं, उनके रोल अलग-अलग होते हैं लेकिन एक्टर उसमें रोल के हिसाब से सीनियर और जूनियर नहीं होता। अब आत्मा भी अगर हमें देखना है कि कौन, कैसी आत्मा है? वो रोल के अनुसार नहीं, संस्कारों के अनुसार पता चलेगा। इसीलिए संस्कारों अनुसार कहते हैं ये महान आत्मा है, ये पुण्य आत्मा है, ये धर्म आत्मा है। टाइटल किसको मिल रहा है? आत्मा को मिल रहा है। किस आधार पर मिल रहा है? आत्मा के संस्कार और कर्मों अनुसार।

तो ध्यान रखना है- व्यवहार में, बातचीत में मिलने पर कि हम रोल के आधार पर रिगार्ड भी रखेंगे और मैं आत्मा हूँ, हम समान हैं ये याद भी रखेंगे तो सबके प्रति सम्मान बना रहेगा।

RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Most Popular

Recent Comments