हर वर्ष दीपावली आती है और हम सभी लोग घरों, दुकानों व दफ्तऱों की साफ-सफाई कर पुताई आदि करते हैं, नए-नए कपड़े पहनते हैं तथा मिठाईयाँ बनाते हैं। दीपावली की रात घर-घर में दीप जलाकर रोशनी की जाती है व आधी रात्रि में मंत्र साधना से श्री लक्ष्मी को प्रसन्न कर सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं। लेकिन सालों-साल ऐसा करनके बाद भी हम धन-धान्य,सुख-संपदा, खुशी, शांति, धैर्यता आदि गुणों वा खूबियाँ जीवन से खोते जा रहे हैं। अब सोचने की ज़रूरत है कि क्या यही सही तरीका है दीपावली मानने का? क्या दीपावली मानने के बाद हमें सच्ची खुशियाँ, भय, चिंता, तनाव, आशंका आदि से मुक्त जीवन मिल रहा है ? क्या यही सच्ची दीपों की रात्रि है ? कहीं यह ‘दिवाली’, ‘दिवाला’ तो नहीं?
क्यों मनाते हैं दिवाली ?
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हमारे देश में हर्षोल्लास व उमंग-उत्साह का त्यौहार दिवाली हर घर में मनाया जाता है। घरों की व कपड़ों की सफाई करते हैं, दीप जगमगाते हैं, तरह-तरह की विद्युत रोशनी करते हैं, व्यापारी लोग पुराना बहीखाता बंद कर नया खोलते हैं आदि आदि। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि यह सब करने क पीछे क्या रहस्य है। इस विषय में अनेक किवदन्तियाँ एवं पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। एक कथा प्रसंग के अनुसार – प्राचीन काल में नरकासुर नाम दैत्य ने सारी दुनिया पर अपना राज्य कर रखा था। उसने सोलह हजार राज कन्याओं को बंदी बना लिया था। श्री कृष्ण ने नरकासुर को मारकर संसार को भय मुक्त किया व सोलह हजार राज-कन्याओं से विवाह कर के रानियाँ बनाया। अत: दिवाली से एक दिन पहले की रात्रि को ‘नरक-चतुर्दशी’ या ‘छोटी दिवाली’ मनाई जाती है। नरक अर्थात् बुराईयों या कमियाँ दूर कर जीवन को सुखमय तथा खुशहाल बनाने से ही सही रूप में दीपावली होगी।
दूसरी कहानी के अनुसार – ‘दैत्य राजा बली’ ने सारी पृथ्वी पर अपना एक छत्र राज्य जमा लिया था। उस समय संसार में अराजकता एवं भय व्याप्त था। राजा बलि ने श्री लक्ष्मी को व सभी देवी-देवता को बंदी बना लिया था। उस समय भगवान ने राजा बलि को परास्त कर श्री लक्ष्मी व अन्य देवी-देवताओं को कैद से मुक्त किया। अच्छाई की बुराई पर जीत के उपलक्ष्य में हर साल इसी रात को दीपोत्सव ‘दिवाली’ मनाते हैं और घरों को रात में खोलकर श्री लक्ष्मी का आने का इंतज़ार करते हैँ।

सच्ची दिवाली क्या है :-
बाह्य तौर पर तो हम युगों से श्री लक्ष्मी-श्री गणेश का पूजन कर ,दीप दान कर, विद्युत झालरों की रोशनी से घर जगमगाकर दीपावली मनाते आए हैं परंतु इस तरह मनाते-मनाते तो आज के भौतिक युग में जब महंगाई, भूख,गरीबी, भ्रष्टाचार इत्यादि का बोल-बाला हैं, ज्य़ादातर लोगों का दिवाला ही निकल रहा है। मनुष्य जीवन से सुख-शांति, प्रसन्नता, धैर्यता, सम्मान देने की भावना, चैन-सुकून, शुद्धता, संतुष्टता इत्यादि खूबियाँ आज खत्म हो गयी हैं और काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, भय, तनाव, अशांति, चिंता, प्रतिस्पर्धा आदि अवगुणों ने आत्माओं को जकड़ लिया है। जिस कारण मानव आज नवरात्रि, विजयदशमी, दिवाली, गणेश चतुर्थी जैसे त्योहार मनाकर भी खुश एवं संतुष्ट पूरी तरह नहीं हो रहें। श्री गणेश तथा श्री लक्ष्मी का आह्वान कर विधि पूर्वक पूजन-वंदन करने पर भी न ही हमारी जिन्दगी में कुछ शुभ वा अच्छा पूरी तरह हो रहा है, लक्ष्मी भी नहीं आ रही हैं। बल्कि जीवन दिनों दिन कमी-कमज़ोरियों एवं बुराईयों से नर्क बनता जा रहा है। साथ ही विड़म्बना यह है कि आत्म-दीप जलाकर अनासक्त बन कमलासीन श्री लक्ष्मी को याद करने की जगह हम स्थूल दीप जला कर बच्चों का खेल खेलते रहे हैं। मन मंदिर की सफाई करने की जगह बाह्य सफाई से ही खुश हो जाते हैं। तभी तो लक्ष्मी हमसे रूठ गयी हैं। कमल फूल समान बन कर हम ‘कमला’, लक्ष्मी को प्राप्त कर सकते हैं।
वर्तमान समय– अत्याधिक लोग भ्रष्ट तथा संस्कार विहीन हो गए हैं। अपनी कड़ी मेहनत की पूंजी को व्यर्थ बरबाद कर रहे हैं। ऐसे लोग दूसरों के हित की बातें सोच भी नहीं सकते। यूं कहे रक्षक ही भक्षक बन गए हैं। समाज में विभिन्न प्रकार के व्यसन – शराब, सिगरेट, अफिम, जुआ, चोरी आदि फैल गए हैं। जिनका गहरा असर दिवाली, दशहरा, होली इत्यादि त्योहारों पर भी पड़ रहा हैं। अक्सर लोग विजय दशमी, दीपावली, नवरात्रि जैसे पवित्र पर्वों पर व्यसनों में लिप्त होकर आत्म संयम खो अशोभनीय व अनुचित हरकतें करते हैं जिससे त्योहार का मज़ा खराब हो जाता है। दिवाली पर हर साल लाखों-करोंड़ो रूपए के पटाखे जलाने व विद्युत रोशनी करने का प्रचलन भी बढ़ता जा रहा है। इस तरह से हम अपनी गाढ़ी कमाई को न केवल बरबाद बल्कि वातावरण को भी दूषित कर रहे हैं। वातावरण खराब होने से हमारी मित्र प्रकृति से हमारा रिश्ता खराब हो गया है। जिससे अनेकों प्राकृतिक आपदओं जैसे भूकंप, माहामरी, तूफान, वायुमंडल तापमान में वृद्धि, बर्फबारी आदि धरती पर आ रहे हैं तथा मनुष्य पर विपदाएँ एवं घोर संकट आ रहे हैं। ऐसे अंधकारयुक्त, दु:खमय एवं अराजक माहौल में अपनी आत्मा को ज्ञान रूपी घृत से प्रकाशित करके हम सभी विकर्मों, दुर्गुणों व बुरे संस्कारों से मुक्ति पा सकते हैं।
दीपावली अर्थात् – स्वयं की आत्मज्योति जगाकर सत्-चित्-आनंद स्वरूप का अनुभव कराने वाला और दूसरों की आत्मज्योति जगाकर उनको सच्चा आनंद प्रदान होना ही आनंदोस्तव हैं । इसिलए अब स्वच्छ, संतुष्ट तथा स्वतंत्र राज्य अर्थात् स्वराज्य की स्थापना करने में सहयोग देकर सच्ची दिवाली, विजयादशमी मना सकते हैं। जहाँ सभी मनुष्यात्माएँ देवी-देवताओं के समान सुख, शांति, संपन्नता, प्रसन्नता, कर्तव्यपरायणता ,सच्चाई, समानता आदि अच्छाईयों से भरपूर आनंदपूर्ण जीवन जी पाएँगे।

बी.के. दिलीप राजकुले, ओम शांति मीडिया, शांतिवन ।




