मुख पृष्ठकथा सरिताअपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनें…

अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनें…

एक सफल युवा कार्यकारी अपनी नई जगुआर कार पड़ोस की गली में चला रहा था, तभी उसकी नज़र खड़ी कारों के बीच से एक बच्चे पर पड़ी जो तेज़ी से निकल रहा था। जैसे ही वह उसके पास पहुँचा, उसने अपनी गति थोड़ी धीमी कर ली, तभी एक ईंट उसकी कार के दरवाज़े से टकराई। उसने ज़ोर से ब्रेक लगाए और वापस उसी जगह पहुँच गया जहाँ ईंट मारी गई थी।

गुस्से से भरा आदमी अपनी कार से कूद पड़ा और पास खड़े बच्चे को चिल्लाते हुए पकड़ लिया, ”ये सब क्या था? तुमने मेरी कार के साथ क्या किया? तुमने ऐसा क्यों किया?” वह छोटा लड़का थोड़ा डरा हुआ था, लेकिन बहुत विनम्र और क्षमाप्रार्थी था। ”मुझे माफ करना, महोदय। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं और क्या करूँ,” उसने विनती की। ”मुझे ईंट फेंकनी पड़ी क्योंकि मेेरी मदद के लिए पुकारने पर कोई और नहीं रूका।” आँसुओं से भरकर, उसने खड़ी कारों की ओर इशारा करते हुए कहा, ”यह मेरा भाई है, वह फुटपाथ से लुढ़ककर अपनी व्हीलचेयर से गिर गया है, और उसे बहुत चोट लगी है। मैं उसे उठा नहीं सकता।”

रोते हुए लड़के ने उस आदमी से पूछा, ”क्या आप उसे वापस व्हीलचेयर पर बिठाने में मेरी मदद कर सकते हैं? उसे चोट लगी है, और वह मेरे लिए बहुत भारी है।” वह युवक भावुक हो गया और अपने गले में तेज़ी से बढ़ती गांठ को निगलने की कोशिश करने लगा। फिर, उसने जल्दी से दूसरे बच्चे को उस जगह से उठाया और उसे वापस व्हीलचेयर पर बिठा दिया। उसने उस छोटे बच्चे को भी चोटों और कटों में मदद की।

जब उसे लगा कि सब ठीक हो जाएगा, तो वह अपनी कार में वापस चला गया। कृतज्ञ बालक ने कहा, ”धन्यवाद, महोदय, और ईश्वर आपका भला करे।” युवक इतना घबरा गया था कि कुछ बोल ही नहीं पाया, इसलिए उसने उस छोटे लड़के को व्हीलचेयर पर बैठे अपने भाई को फुटपाथ पर धकेलते देखा। उस आदमी के घर वापस लौटने का सफर लंबा और धीमा था। जब वह कार से बाहर आया तो उसने अपनी कार के दरवाज़े पर लगे गड्ढे को देखा। नुकसान साफ दिखाई दे रहा था, लेकिन उसने उसे ठीक करवाने की ज़हमत नहीं उठाई। इसके बजाए, उसने उस गड्ढे को अपने पास रखा ताकि उसे यह संदेश याद रहे; ”जि़ंदगी में इतनी तेज़ी से मत भागो कि किसी को तुम्हारा ध्यान खींचने के लिए तुम पर ईंट फेंकनी पड़े।”

शिक्षा- जि़ंदगी हमारी रूह में फुसफुसाती है और हमारे दिलों से बात करती है। कभी-कभी जब हम उसकी बात नहीं सुनते, तो वह हम पर ईंट फेंक देती है। हमारी मर्जी है कि हम फुसफुसाहट सुनें या ईंट का इंतज़ार करें।

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