मनुष्य जीवन केवल भौतिक सुख-सुविधाओं तक ही सीमित नहीं है। इसका वास्तविक उद्देश्य आत्मा को जाग्रत कर, सर्वशक्तिवान परमात्मा से सीधा संबंध जोडऩा है। जब हम परमात्मा से जुड़ते हैं तभी हमारे भीतर दिव्य शक्तियों का प्रवाह होता है। यह शक्तियां न केवल जीवन की कठिनाइयों से उबरने में मदद करती है, बल्कि हमें पवित्र, संतुलित और स्थिर भी बनाती हैं।
आत्म-चेतना की पहचान – सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि मैं केवल शरीर नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली आत्मा हूँ। आत्मा ही सच्चा क्रमैंञ्ज है और यह परमात्मा की संतान है। जब हम वास्तविक स्वरूप को पहचान लेते हैं तो हमारे भीतर एक नई ऊर्जा जाग्रत होती है। यह आत्म-चेतना परमात्मा की ओर ले जाती है।
परमात्मा से संबंध(योग) – योग-आसन, प्राणायाम नहीं है बल्कि आत्मा और परमात्मा का मिलन है। मौन- मन से परमात्मा को स्मरण करना, उन्हें सबसे प्यारे पिता, शिक्षक और साथी मानकर उनके साथ हृदय का संबंध जोडऩा ही सच्चा राजयोग है। जब आत्मा, परमात्मा की स्मृति में रहती है तो वह उनसे शक्तियां खींचती है।
पवित्रता और संयम – परमात्मा पूर्ण रूप से पवित्र है यदि हमें उनसे शक्तियां लेनी हैं तो हमें अपने जीवन में पवित्रता और संयम को अपनाना आवश्यक है। अशुद्ध विचार और विकार आत्मा की शक्ति को क्षीण कर देते हैं इसीलिए मन, वचन और कर्म में पवित्रता ही परमात्मा से जुडऩे का सच्चा आधार है।
सेवा और शुभकामना – जब हम नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करते हैं, शुभकामनाएं और शुभभावनाएं फैलाते हैं, तब आत्मा हल्की और शक्तिशाली बनती है। परमात्मा भी उन्हीं आत्माओं को अधिक शक्तियां प्रदान करते हैं जो उनके दिव्य गुणों को संसार में बांटते हैं।
ध्यान और मन की एकाग्रता – आज की भागदौड़ भरी जि़ंदगी में मन अत्यधिक भटकता है। ध्यान व अटेन्शन द्वारा हम मन को स्थिर कर परमात्मा की स्मृति में लगा सकते हैं। नियमित अभ्यास से आत्मा की बैट्री चार्ज होती है और हम निरन्तर शक्ति का अनुभव करते हैं।
विश्वास और समर्पण – परमात्मा पर अटूट विश्वास और आत्मा का पूर्ण समर्पण शक्ति प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन है। जब हम यह मान लेते हैं कि सच्चा कर्ता-धर्ता वही है और हम केवल उनके निमित्त मात्र हैं, तब हमारे भीतर चिन्ता और भय समाप्त हो जाते हैं। यही स्थिति निर्भय और शक्तिशाली बनाती है। सर्वशक्तिवान परमात्मा से शक्तियां प्राप्त करना किसी जादू या चमत्कार से संभव नहीं है, बल्कि यह एक आन्तरिक साधना है। आत्म-चेतना, पवित्रता, योग, सेवा, ध्यान और समर्पण- इन साधनों से आत्मा, परमात्मा से जुड़कर अपार शक्तियां ग्रहण करती है। जब आत्मा, परमात्मा से शक्ति पाती है, तब जीवन सहज, संतुलित और सुखमय हो जाता है। यही मानव जीवन का सच्चा लक्ष्य है।




