आज का समय अर्थात् संगमयुग, मानव जीवन का सबसे पवित्र और मूल्यवान काल है। यह युग वह अलौकिक संगम है जहाँ एक ओर पुराना कलियुग समाप्ति की ओर है और दूसरी ओर नया सतयुग आरम्भ होने वाला है। यह समय परमात्मा से मिलने, आत्मा को सशक्त बनाने और भविष्य के दिव्य जीवन की नींव रखने का अनुपम अवसर है। जो आत्माएं इस युग की महत्ता को समझती हैं, वो जीवन को श्रेष्ठ दिशा में मोड़कर स्वयं और संसार दोनों के लिए कल्याणकारी बन जाती हैं। जिन्होंने ये अच्छी रीति समय के महत्त्व को जाना है, समझा है वे कभी भी इसे व्यर्थ नहीं गंवायेंगे, वह हर सेकण्ड सफल करते हैं। ऐसा सुन्दर समय मनुष्य को पूरे जीवन चक्र में नहीं मिलता।
संगमयुग का महत्त्व – संगमयुग केवल कुछ वर्षों का समय नहीं है, बल्कि यह आत्मा की भाग्य रेखा बदलने का स्वर्णिम अवसर है। यहाँ आत्मा का परमात्मा से सीधा सम्पर्क स्थापित कर सकती है। यह वह दुर्लभ समय है जब शिवबाबा ज्ञान का प्रकाश फैलाकर अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाते हैं। साथ ही संगमयुग वह सीढ़ी है जो हमें दु:ख और अंधकार से सुख और प्रकाश की ओर ले जाती है।
आत्मा की सफाई और शक्ति सम्पन्न बनने का अवसर – कलियुग के प्रभाव से आत्मा पर अनेक विकारों की धूल जम चुकी है। ऐसे में आत्मा को बोझ मुक्त होना और अपने को शक्तियों से सम्पन्न करने का समय है। संगमयुग पर राजयोग और परमात्म स्मृति द्वारा आत्मा स्वयं को स्वच्छ और पवित्र बना सकती है। यह समय आत्मा के लिए शक्ति सम्पन्न बनने और विकारों से मुक्ति पाने का विशेष अवसर है।
भविष्य के भाग्य की नींव रखने का समय – संगम के समय में आत्मा सतयुग और त्रेतायुग के दिव्य जीवन की कमाई करती है। जैसे किसान बुवाई के समय परिश्रम करता है और फसल का आनन्द पाता है, वैसे ही यह युग आत्मा के लिए बुवाई का समय है। यहाँ किए गए श्रेष्ठ कर्म और सेवा भविष्य सुख सम्पन्न जीवन का आधार बनते हैं।
संगमयुग का समय केवल अनमोल ही नहीं बल्कि आत्मा को पवित्र और शक्तिशाली बनाने का व विश्व के भविष्य को नया स्वरूप देने का भी है। तो इस समय को उत्तम बनाने में लगाएं। योग, ज्ञान, पवित्रता और सेवा से आत्मा का भविष्य हीरा बन जाता है। यही संगमयुग का सच्चा महत्व और इसे सार्थक बनाने का मार्ग है।
संगमयुग को उत्तम बनाने की विधि
परमपिता परमात्मा ने मनुष्य की चलती जीवन को बदलने का बीड़ा उठाया है। हम सुबह से शाम तक जो भी कर रहे हैं उसमें बदलाव कर दिव्यता की ओर ले जाते हैं। इसलिए परमात्मा ने दिनचर्या को बहुत ही सिस्टमैटिक बनाया है जहाँ मनुष्य के न सिर्फ कर्मकर्ता बल्कि कर्म को दिव्य कर्म बनाने का उपाय बताया है-
नियमित अमृतवेला योग- दिन की शुरुआत बाबा के मिलन से हो। यही शक्ति का मुख्य स्रोत है।
मुरली श्रवण और मनन चिन्तन- बाबा का ज्ञान आत्मा की दिशा तय करता है। इसे सुनना और जीवन में लागू करना सबसे आवश्यक है।
पवित्रता और मर्यादाएं- संगमयुग में पवित्रता आत्मा का सबसे बड़ा आभूषण है। मर्यादाओं का पालन जीवन को अनुशासन और शक्ति देता है।
सेवा और दान- इस समय केवल अपने लिए नहीं, बल्कि विश्व कल्याण की भावना से सेवा करनी चाहिए। सेवा आत्मा को दोगुनी शक्ति देती है। तत्काल में खुशी का भी अनुभव करते हैं। देने के संस्कार उनमें पल्लवित होते हैं। जिससे वे देवतुल्य बनते हैं।
सकारात्मक संकल्प और स्वमान– ‘मैं आत्मा हूँ, मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ’- ऐसे स्वमान आत्मा को निरन्तर ऊंचा अनुभव कराते हैं।




