ज्ञान का प्रैक्टिकल स्वरूप योगी जीवन

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बुद्धि को समर्पण करना माना जो बाबा कहे वो ही मुझे करना है। जो नहीं करना है, जिसके लिए बाबा ना कहता है वो मुझे नहीं करना है। तब कहेंगे कि हम नष्टोमोहा बनकर स्मृतिर्लब्धा बनते जा रहे हैं।

हमें बाबा(परमात्मा) में निश्चय है, ज्ञान की सत्यता में निश्चय है तो हमें कोई बात मुश्किल नहीं लगेगी। इसलिए हर महावाक्य को समझना बहुत ज़रूरी है जिसको हम कहते हैं दिव्य बुद्धि, सद्विवेक। जो बाबा कहते हैं वो बरोबर है, लेकिन जो बाबा कहते हैं वो ही बात मेरा दिल भी कहता है तो वो आचरण में आयेगा। बाबा तो कहते हैं लेकिन मेरा कहना तो ये है, मेरा मानना तो ऐसा है। बाबा तो कहते हैं लेकिन मेरी इच्छा तो ऐसी है, मेरा मन तो ये कहता है… जब तक ये बात है तब तक बुद्धि का समर्पण नहीं है, धारणा शुरू नहीं हो सकती। तब तक हमें पुरूषार्थ मुश्किल लगेगा। एक्यूरेट यही बात गीता में भी कही है, उदाहरण के तौर पर गीता में जो दिखाया गया है वो मैं बता रही हूँ कि जब भगवान ने अर्जुन को ज्ञान दिया तो अर्जुन स्वयं भी विद्वान था। इसलिए वो लगातार आर्गुमेंट(बहस) ही करता रहता है। भगवान से वो बहस करता था क्योंकि वो भी विद्वान था। इसलिए बार-बार पूछता था कि भगवान तो कहते हैं लेकिन इसका अर्थ क्या है? इसको कैसे अभी-अभी राजयोग कहते हैं, अभी-अभी कर्मयोग कहते हैं लेकिन मेरा योग तो आपसे लगता ही नहीं है। इस प्रकार अर्जुन बहस करता हुआ दिखाते हैं। तब तक अर्जुन को न निश्चय होता है और न ही भगवान के आगे समर्पण होता है। लेकिन 18 अध्याय के बाद आपने पढ़ा होगा 18 अध्याय में ये श्लोक आता है इतना ज्ञान सुनने के बाद अर्जुन लास्ट में समर्पित होता है और वो कहता है कि अब मुझे स्मृति आई है कि मैं कौन हूँ और आप कौन हैं। अब मेरे सारे संश्य समाप्त हो गये हैं। मेरा रोम-रोम अब हर्षित हो रहा है। हे भगवान! अब आप जो कहेंगे वो मैं करूँगा। तब अर्जुन नष्टोमोहा स्मृतिर्लब्धा बनता है, 18 अध्याय के अन्त में। तो ये संगमयुग की ही यादगार है। प्रैक्टिकल पढ़ाई स्वयं शिवबाबा,स्वयं भगवान ने टीचर बन पढ़ाया। वास्तव में अगर सत्यता को समझें तो साकार बाबा ने,बाबा अव्यक्त हुए उसके साथ प्रैक्टिकल पढ़ाई तो पूरी हो गई। जो रोज़ टीचर स्वयं आकर पढ़ाते थे वो पार्ट तो पूरा हो गया। उसके बाद तो रिवीज़न कोर्स चल रहा है। जैसे स्कूल में भी जब तक कोर्स चलता है तो रोज़ टीचर आके पढ़ाते हैं, लेकिन कोर्स पूरा हो जाता है रिवीज़न का टाइम आता है एग्ज़ाम के पहले तो रोज़ टीचर आकर नहीं पढ़ाते, जहाँ मुश्किल लगती है वहाँ टीचर की हेल्प लेते हैं, और लास्ट है एग्ज़ाम। तब टीचर साक्षी बन जाते हैं फिर वो हेल्प नहीं कर सकते।
बाबा का अव्यक्त होना माना प्रैक्टिकल पढ़ाई का कोर्स पूरा हो गया। अभी रिवाइज़ कोर्स चल रहा है। हम सभी जो 1969 के बाद ज्ञान में आये हैं वो तो सब रिवीज़न कोर्स में आये हैं। मेरे कहने का भाव है कि पढ़ाई पूरी हो गई और रिवीज़न कोर्स चलने का समय अब समाप्त होने को आया। अब भी हम बुद्धि का समर्पण नहीं करेंगे तो कब करेंगे! और बुद्धि को समर्पण करना माना जो बाबा कहे वो ही मुझे करना है। जो नहीं करना है, जिसके लिए बाबा ना कहता है वो मुझे नहीं करना है। तब कहेंगे कि हम नष्टोमोहा बनकर स्मृतिर्लब्धा बनते जा रहे हैं। प्रैक्टिकल हम एग्ज़ाम्पल बनते जा रहे हैं। तो ये है कि समझने के बाद, निश्चयात्मक बुद्धि बनने के बाद, बुद्धि बाबा को समर्पण करने के बाद आचरण में ज्ञान आता है। और कर्म में ज्ञान आना, व्यवहार में श्रीमत को धारण करना, ज्ञान के हर महावाक्य का प्रैक्टिकल स्वरूप बनना उसको कहेंगे सही अर्थ में सच्चा योगी जीवन। योगी बनना माना ये नहीं है कि हम चार घंटा पालथी मारकर बैठ गये और आचरण में कुछ भी नहीं। ज्ञान का प्रैक्टिकल स्वरूप है योगी जीवन। हर श्रीमत की धारणा स्वरूप बनना वो है योगी बनना।

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