ज्य़ादा सोचने के बारे में बाबा ने कहा बातें बड़ी नहीं होती तुम सोच-सोच कर उनको बड़ा कर देते हो। इस पर गहन चिंतन करना है सबको।
हमारा जीवन बहुत मूल्यवान है। इसमें ज्य़ादा सोचने की आदत जीवन के सुखों को नष्ट कर देती है। हमें जो ज्य़ादा सोचने की आदत है उसको खत्म करना है। सोच, हमारे थॉट्स, हमारे विचार, हमारे संकल्प हमारे कंट्रोल में हो जायें, हो जायेंगे। बाबा की दो चीज़ें आपको याद दिला देते हैं, जब हम बाबा शब्द बोलेंगे तो सभी जान लें शिव बाबा जो सुप्रीम सॉल है, जो सुप्रीम टीचर बनकर इस संसार में आये हैं, उन्होंने हमें पढ़ाया है। उन्होंने हमें ये सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का गहरा ज्ञान दिया है। जो मनुष्य को परफेक्शन की ओर ले जा रहे हैं उनके अन्दर छुपे हुए देवत्व को जगा रहे हैं। ये सब बातें उनके द्वारा दिए गए ज्ञान से ही प्राप्त हुई हैं। ज्य़ादा सोचने के बारे में बाबा ने कहा बातें बड़ी नहीं होती तुम सोच-सोच कर उनको बड़ा कर देते हो। इस पर गहन चिंतन करना है सबको।
दूसरी बात तुम मन के मालिक हो, मन तुम्हारा है। इसका अर्थ ये नहीं कि मन तुम्हारा है, मन आत्मा की ही शक्ति है जैसे हमारा हाथ, ये शरीर की ही शक्ति है। अब हम ये तो नहीं कहेंगे कि हाथ शरीर से अलग है! हम इसको जैसा ऑर्डर दें ऊपर करें, इधर-उधर करें, शांत बैठ जायें ये आज्ञा का पालन करता है। ऐसे मन भी हमारा है। ये मैं इसलिए भी कह रहा हूँ क्योंकि इंडियन फिलॉसफी में, मनोविज्ञान में, संसार की वास्तव में सभी फिलॉसफी में मन-बुद्धि को अलग मान लिया गया। उनको सूक्ष्म शरीर के हिस्से मान लिया गया और आत्मा अलग एक शक्ति है, ऐसा नहीं। हम आत्माओं की मन-बुद्धि-संस्कार तीन ये सूक्ष्म शक्तियां हैं, तो ये हमारी हैं। मन और बुद्धि हमारी हैं, हमारा इन पर सम्पूर्ण अधिकार है। हम इनके मालिक हैं इस मालिकपन को सभी समझ लें और स्वीकार कर लें। और अपने को रोज़, कम से कम 21 दिन और किसी की स्थिति ज्य़ादा गिरावट में आ गई है तो और 21 दिन अभ्यास करेंगे कि मैं आत्मा मन की मालिक हूँ। इतना ही कर लेंगे और अच्छा करना चाहें मैं आत्मा स्वराज्यधिकारी हूँ। मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। क्योंकि मालिक बहुत शक्तिशाली होना चाहिए। हमें स्वयं को अपनी शक्तियों की याद दिलानी होगी। हे आत्मा! तुम बहुत शक्तिशाली हो। इस मन को कंट्रोल करना तुम्हारे बस की बात है। तुम ये न कहो कि मन रूकता नहीं, हमारे कंट्रोल में आता नहीं, तुम इसे रोक सकते हो।
मैं बता रहा था कि बातें बड़ी नहीं होती आप अपने पिछले पंद्रह दिन या एक महीने की बातों का विश्लेषण कर लें, विचार कर लें। जिन पर आपने बहुत सोच लिया है और जब वो बातें आपके सामने रियल रूप में आई होंगी तो आप शायद हँसे होंगे अपने आप पर कि हम ऐसे ही सोच रहे थे। बिना मतलब परेशान हो रहे थे। बात तो ये है ही नहीं। तो ये तो ज्य़ादा सोचने की मानसिकता हो गई। नेचर ऑफ माइंड, बना ली है। इससे बचें, इसे समाप्त करें और इससे बचने का तरीका होगा ज्ञान का चिंतन, स्वमान की प्रैक्टिस इन दोनों का सार एक ही है कि हम अपने मन को कुछ सुन्दर विचार देते रहें। हमारे जो ज्ञान के विचार हैं, स्वमान के विचार हैं वे बहुत शक्तिशाली हैं। एक-एक वो श्रेष्ठ संकल्प हज़ारों व्यर्थ संकल्पों को काटने में सक्षम है। जैसे महाभारत और रामायण में भी था ना कि एक ही बाण छोड़ा सारे बाण नष्ट हो गये। हमारे पास ये ज्ञान के, स्वमान के बहुत अच्छे तीर हैं, बाण हैं इनको चलाना सीख लें।
एक उदाहरण ले लेते हैं, किसी ने आपकी निंदा कर दी। अब निंदा एक ऐसी घटना, एक ऐसी चीज़ है जिसको संसार में कोई भी सुनना नहीं चाहता। उसने आपके लिए दो-चार निंदक बोल बोल दिए। आपकी सोच प्रारम्भ हो गयी। वो तो बोल कर चला गया, वो बहुत खुश है कि मैं बोल आया हूँ कुछ उसको और भूल गया कि वो क्या बोल कर आया। और हम इधर बार-बार याद कर रहे कि अच्छा उसने ऐसा कहा, हमारी खुशी चली गई, हम उदास हो गये। उस व्यक्ति के प्रति निगेटिव फीलिंग हो गई, ये मेरा शत्रु है, ये मुझे आगे बढऩे नहीं देना चाहता। ये मेरी प्रशंसा सुनकर खुश नहीं होता। ये मेरी बात न जाने कहाँ-कहाँ फैलायेगा। ये सौ लोगों को बतायेगा। वो लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे। हमारा सोच चालू हो गया। और वो चिंतन सारा दिन चल रहा है। काम कर रहे हैं सोच वो रहे हैं, भोजन खा रहे हैं, बना रहे हैं और सोच वो रहे हैं। अब हम इससे कैसे बचेंगे? हमें ईश्वरीय महावाक्य याद कर लेने चाहिए। अच्छा ज्ञानी वही है जो निंदा-स्तुति, हार-जीत, मान-अपमान में समान रहे। ठीक है उसने निंदा की। कबीर जी ने भी तो कहा कि निंदक नियरे राखिए। निंदक को अपने आप रखिए वो तो आपको धो-धो कर साफ करता रहेगा। रियलाइज़ कर लें वो निंदा कर रहा है हमसे कुछ गलती तो नहीं हुई है! अगर गलती हुई है तो एक अच्छा पुरुषार्थी अपनी गलती को ठीक करेगा, और निंदक को धन्यवाद देगा कि तुमने मेरी गलती रियलाइज़ करायी।
मान लो आपकी गलती है नहीं, आप बहुत अच्छा काम करके आये थे। आपने बहुत अच्छी सेवा की थी, उस व्यक्ति को सहन नहीं हुआ वो आपको आगे बढ़ता खुश नहीं हुआ इसलिए उसने आपके बारे में उल्टी-उल्टी बातें कर दी। आपको अपनी मानसिकता को ऐसा बना लेना चाहिए कि इन चीज़ों की हम परवाह नहीं करते। जिसको भगवान आगे बढ़ा रहा हो उसको कोई मनुष्य नहीं रोक सकेगा। ऐसी एक दृढ़ता, बुद्धि की विशालता, विचारों की विशालता आप अपने अन्दर धारण कर लें। मेरे साथ तो स्वयं भगवान है। मुझे आगे बढ़ाने वाला वो है। जिसको भगवान आगे लेकर जा रहा हो उसको मनुष्य क्या रोकेंगे, गीत गा लिया करो। जिसका साथी हो भगवान उसको क्या रोकेंगे आंधी और तूफान। तो इस विचार से संकल्प शांत हो जायेंगे। तो ज्ञान का स्तर है प्रयोग करेंगे। ज्य़ादा तो मनुष्य जहाँ-तहाँ सोचता है हम कई बातों को लेते हैं- उसकी हार हो जाये, वो बार-बार प्रयास के बाद असफल होता रहे, लोग उसे साथ न दें, अपने धोखा दें, कभी-कभी भाग्य साथ न दे तो मनुष्य बहुत सोचने लगता है। लेकिन याद रखना जितना हम कम सोचेंगे हमारी एनर्जी बचेगी और हमें सहज सफलता प्राप्त होगी। जितना हम कम सोचेंगे उतना हमारे चेहरे पर ग्लो रहेगा, तेज रहेगा और हम बाबा का नाम रोशन कर सकेंगे।