हजारीबाग, झारखंड: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय हजारीबाग झारखंड के बड़ा अखाड़ा सेवा केंद्र पर श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया गया । यह कार्यक्रम ‘आजादी के अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत की ओर के ” तहत किया गया । कार्यक्रम की शुरुआत द्विप प्रज्वलन ,गणेश वंदना और श्रीकृष्ण आरती के साथ किया गया। जिसमें मुख्य अतिथी के रूप में बैंक आँफ इण्डिया के मैनेजर अभय कुमार गुप्ता, आर एन एम कॉलेज की प्रोफेसर पूजा सिंह, सीआईडी सब इंस्पेक्टर संजय रजक, कॉपरेटिव एक्सप्रेस ऑफिसर विकास रंजन , सुप्रसिद्ध व्यापारी बाबुनंदन गुप्ता,और ब्रह्माकुमारी हर्षा दीदी ने संयुक्त रुप से दीप प्रज्वलित कर और कृष्ण की आरती कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया। इस मौके पर श्रीकृष्ण की 8 चैतन्य बाल रूपों की झांकी सजाई गई। जिसके माध्यम से श्रीकृष्ण के अनेक लीलाओं को दर्शाया गया। जिसमें दिखाया गया कृष्ण को माखन चुराते, वासुदेव को बालकृष्ण को यमुना नदी पार कराते, कालिया नाग पर नृत्य करते, कदम के पेड़ के नीचे राधे कृष्ण को रास करते, ग्वाल बाल के साथ गाय चराते, मटकी फोड़ते, इत्यादि अनेक लीलाओं को करते हुए। वही इस मौके पर नन्हे-मुन्ने बाल कलाकारों ने श्री कृष्ण के गानों पर सुंदर नृत्य प्रस्तुत किया। तथा लघु नाटिका भी प्रस्तुत किया। वही राजयोगिनी हर्षा दीदी ने कृष्ण के अनेक लीलाओं का आध्यात्मिक रहस्य बताते हुए कहा, कि यह जो भी लीलाएं या कर्म दिखाया गया है ।यह कहीं ना कहीं श्री कृष्ण के चरित्र पर कलंक लगाए गए हैं। जबकि श्री कृष्ण तो सतयुग का पहला प्रिंस है ,तो भला वह गाय क्यों चरए ।जिस दुनिया में दूध दही की नदियां बहती है, भला वहां माखन चुराने की दरकार क्यों पड़ी ,कृष्ण के लिए तो कहा जाता है 16 कला संपूर्ण ,संपूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम ,तो वह किसी के वस्त्र कैसे हरण कर सकते हैं । जबकि सतयुग में दुख विकार होता ही नहीं , तो वहां कालिया नाग कैसे हो सकता है। इन सभी लीलाओं का आध्यात्मिक रहस्य दीदी ने सभी को बताते हुए कहा, कि गाय चराना अर्थात अभी पुरुषोत्तम संगम युग पर जब स्वयं परमात्मा ब्रह्मा तन का आधार लेते हैं । जिस तन में श्री कृष्ण की 84 वीं जन्म की आत्मा बैठी है। और परमात्म मत के अनुसार माताओं – बहनों को परमात्मा ज्ञान से अवगत कराते हैं ।अर्थात सीधी साधी माताओं को श्रेष्ठ ज्ञान से अवगत करा कर उनका जीवन श्रेष्ठ बनाते हैं । मटकी फोड़ना अर्थात अहंकार रूपी मटकी को ज्ञान से खत्म करते हैं। वस्त्र चुराना अर्थात देहभान से न्यारा करना। कालिया नाग को नाथना और उस पर नृत्य करना अर्थात जब मनुष्य 5 कर्म इंद्रियों और ज्ञान इंद्रियों को अपने वश में कर लेता है। तो वह स्वराज्य अधिकारी बन जाता है। और अपने पांच विकारों के ऊपर उसका वस होता है। अर्थात फिर आत्मा अपने यथार्थ स्वरूप में गुणों के साथ अष्ट शक्तियों और 16 कलाओं से सुसज्जित होकर नई सतयुगी राजधानी में जन्म लेती है। जिसे वैकुंठ कहा जाता है ।ऐसी नई दुनिया में प्रवेश करती है। इस तरह के अनेकानेक रहस्य से दीदी ने सभी को अवगत कराया और कहा कि, श्री कृष्ण के समान हमें भी खुद को परमात्मा ज्ञान से सुसज्जित कर कृष्ण के साथ नई दुनिया में चलने की तैयारी करनी है। और यह राजयोग के अभ्यास से ही संभव है । तत्पश्चात दीदी ने सभी वाले कलाकारों को ईश्वरीय उपहार और साहित्य तथा प्रसाद देकर सम्मानित किया। और सभी आगंतुकों को ईश्वरीय सौगात और प्रसाद से सम्मानित किया । अंत में दीदी ने सभी को राजयोग का अभ्यास भी कराया। इस मौके पर लगभग 300 लोग उपस्थित रहे। सभी अतिथियों ने कार्यक्रम की सराहना की और राजयोग का अभ्यास करने के लिए तथा सप्ताहिक कोर्स सीखने के लिए कहा ।