मुरली पढ़ते-सुनते लगता है कि बाबा कितनी मेहनत करता है हमको बनाने के लिए, जो कोई देख के कहे तुमको ऐसा किसने बनाया? ऐसा बनाता है और रिटर्न कुछ नहीं कर सकते हैं, बनके दिखाते हैं बाबा को। जो कोई मनुष्य आत्मा नहीं बना सकती, वो पतितों को पावन बनाने वाला है और हम कभी पतित बनते हैं, कभी पावन बनते हैं। अभी हमको ऐसा बनाया है जो उनकी हीरे की मूर्ति बनाकर सोमनाथ के मन्दिर में पूजते हैं। तो एवरहैप्पी, एवरहेल्दी रहना हो तो ऐसे अलबेले या लापरवाह नहीं रहना क्योंकि बाबा कहते हैं याद में ऐसे रहो, सब कुछ भूल याद करो। सब कुछ भूल याद करेंगे तो आखिर वो घड़ी आ जाती है नष्टोमोहा…। कहीं भी कोई भी देह-सम्बन्धियों में अथवा अपने विचारों में भी मोह न हो। मोह दु:खदाई है। मोह स्मृति-स्वरूप बनने नहीं देता है। बाबा ने मनमनाभव का वरदान दे दिया फिर बुद्धि को कहता है मध्याजी भव। लक्ष्य को सामने रखो(लक्ष्य सोप है) भले ज्ञान पानी, अमृत मिलता है फिर भी सोप के बिगर सफाई नहीं होगी। भले ज्ञान सुनेंगे सुनायेंगे, अच्छा लगता है, मन शान्त हो जाता है। मनमनाभव होने से अंग-अंग शीतल हैं, योगी के अंग शीतल हैं। शीतल शब्द बहुत अच्छा है, शीतला देवी का पूजन है। कोई भी प्रकार की गर्म नेचर नहीं है, शीतल नेचर है। अपने संग के रंग में हमारे सारे पाप खलास कर दिये हैं। तुम्हारी कृपा से सुख घनेरे…।
तो मनन चिंतन में कोई चिंता-फिकर नहीं है। कार्य भले करो निश्चिंत रहो ना! पूछताछ काहे को करें, बाबा को कराना है तो ऑटोमेटिकली आज दिन तक आपेही होता आया है। बाबा ने मुझे जहाँ जैसे रखा वहाँ हाजि़र रही हूँ तो इसमें बहुत आनंद है। भक्ति में भी कहते हैं जो हरि की इच्छा। अन्दर से सच्चाई और प्रेम की गंगा बहानी होती है भागीरथ के समान, तो ऐसे आप भी आनंद लो ना! जब तक वह अपने जैसा नहीं बनाता तब तक छोड़ता नहीं है। भगवान पीछे उसके पड़ेगा जो सच्ची सजनी होगी, सगाई करते ही उसकी याद रहती है, पर शादी के बाद में भूल जाये तो? कोई कर्मबन्धन खींचता हो तो? बाप क्या करेगा! पिताव्रत में सपूत बनना है, सपूत वह जो सबूत देवे। बाबा ने कहा बच्चे ने माना। बच्चा कहे हाँ जी, बाबा कहता मैं तुम्हारे साथ हूँ।
बाबा कहता है भारत को स्वर्ग बनाता हूँ और विश्व की सब आत्माओं से चुन करके उनको अपना साथी बनाता हूँ ताकि सारी विश्व स्वर्ग बन जाये। सिर्फ भारत थोड़े ही बनेगा, आधा कल्प नर्क कैसे बना है, वह तो जानते हैं। पाँच विकारों ने मायावी दुनिया में फंसा करके मजबूर बना दिया, मजदूर बिचारा मजबूर होकर काम करता है। पर अभी बाबा याद दिलाता है, तुम मास्टर हो, मालिक हो ईश्वर को देख खुश हो जाओ, एक एक प्रभु का प्यारा है सबसे न्यारा है तो एक जैसे नहीं हो सकते हैं, यह भेंट करना भूल है परन्तु हर एक न्यारा और बाबा का प्यारा है। पार्ट भी जो कल था वो आज नहीं है, न्यारा है। ड्रामा है ना।
तो चिंतन में ड्रामा और बाबा की नॉलेज ने घर कर लिया है इसलिए मंथन भी वही चलता है। बाबा कैसे इस तन में आता है, क्या करता है? मैंने तो देखा है, आप भी ऐसे अच्छी तरह से देखो, समझो, अनुभव करो तो कभी देह अभिमान का भूत आता नहीं है, सबको अच्छा लगता है। हमको तो गले लगाके अपना बनाया है। ऐसे प्यारे बाबा को कितना प्यार करना चाहिए। तो हमारी नज़र ऐसी हो जो मेरी नज़रों में जो होगा वही औरों को दिखाई पड़ता है। तो कर्म बड़े बलवान हैं, बाबा सर्वशक्तिवान है, याद रखो। अमृतवेले से मंथन ऐसे करो जो मक्खन भी मिले छाछ भी मिलेग। अगर मंथन करना नहीं आता है तो न रहता है मक्खन, न रहता है छाछ। ऐसा मंथन करने वाले सदा शीतल रह करके सर्वशक्तिवान से शक्ति लेकर बाप समान बनने की धुन में रहते हैं।
ज्ञान मार्ग में न कोई पॉजिशन चाहिए, न पैसा चाहिए, इससे जो फ्री रहते हैं उनका दिमाग ठण्डा रहता है, स्वभाव सरल रहता है, सहजयोगी हैं। न अधीन हैं, न किसी को अधीन बनाके रखा है। मैं मर जाऊं तो यह कहाँ से खायेगा? बाबा ने प्रैक्टिकल अपना मिसाल दिखाया, अव्यक्त हो करके भी ऐसी हमारी सम्भाल कर रहा है, वन्डरफुल है। किसी को यह फीलिंग नहीं है हमने साकार को नहीं देखा, ऐसी पालना अव्यक्त हो करके कर रहा है। फिर कहता है मैं नहीं करता हूँ, कराने में होशियार है। भगवान किसी का भाग्य बनाने में बहुत होशियार है। एक त्याग से भाग्य बनाया, दूसरा कर्म से भाग्य बन गया।