हर दीया महज़ दीया नहीं…एक संदेश…

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भारतीय परंपरा में हर एक त्योहार हमारे किये गये कर्मों का यादगार ही है। इसका इतिहास पुराना भी है और अति महत्त्वपूर्ण भी। लेकिन पुराने इतिहास के किंवदंतियों को कुरेदने के पश्चात् अलग-अलग समाजशास्री या विद्वान दोनों ने इनके अर्थों को स्थूलता के साथ जोड़ा कि ये बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है जिसमें साक्ष्य के रूप में वे कहते हैं कि श्रीराम चन्द्र जी ने रावण पर विजय प्राप्त की, उसकी यादगार में अयोध्या में दीप प्रज्वलन किया गया, दीपावली मनाई गई।
हम सब अगर इसके सामाजिक अर्थ से थोड़ा-सा निकलकर इसके शाब्दिक अर्थ को ही देखें तो पायेंगे कि अयोध्या शब्द अध्ययन शब्द से बना है। जब हम अपने छोटे-छोटे बिंदुओं को लेकर छोटे-छोटे विचारों को लेकर सेल्फ स्टडी करते या स्व-अध्ययन करते तो उसको अयोध्या शब्द के साथ जोड़ा जाता माना जहाँ सभी अपने एक-एक अध्याय को पूरा करने के लिए जुड़े हुए हैं। अब अयोध्या को राम की नगरी कहते जहाँ राजा भी सुखी, प्रजा भी सुखी। तो कोई भी राजा या प्रजा कहाँ पर सुखी रह सकता है? जहाँ सभी का विचार एक समान, व्यवहार एक समान, कर्म एक समान और एक-दूसरे के प्रति सम्मान हो वहाँ राम राज्य कहा जाये। कहने का अर्थ है कि व्यक्ति जब पूरी तरह से अपने आप को जागृत करे, अपने आत्मिक दीये को जगाये माना हर आत्मा राम अपने आप को जागृत कर ले तो सभी को देखने का नज़रिया हमारा बदल जाता है।
एक बहुत सुंदर गीत है, आप सबने सुना होगा,
सत्यम् शिवम् सुंदरम…। इस गीत की एक लाइन है, राम अवध में, काशी में शिव, कान्हा वृंदावन
में, आगे की लाइनें हैं दया करो प्रभु देखूं इनको हर घर के आंगन में। अब ये गीत पूरी तरह से क्या बयां करता है कि हर घर में अगर राम आ जाये, राम जैसे लोग आ जायें तो राजा और प्रजा सुखी नहीं हो जायेंगे! इसीलिए हमारे अंदर जो भाव है वो क्या है कि आज हर कोई चाहे कहे या न कहे, लेकिन अंदर से परेशान बहुत है। वो सिर्फ एक चरित्र के रूप में राम या कृष्ण की महिमा तो कर रहा है, गीत भी उसके अच्छे-अच्छे हैं, उसको गा भी रहा है, उन चरित्रों को ढूंढ भी रहा है, कहाँ पर, हर घर के आंगन में। और इस गाने में एक अंतिम लाइन है राधा मोहन शरणम्। इसका भावार्थ है कि जब कभी कीर्तन
होता है तो लोग गाते हैं कि राधा-राधा रटने से बिहारी आ जायेंगे लेकिन आप अपने से सोचो कि राधा बोलने से बिहारी कैसे आ जायेंगे! राधा का अर्थ यहाँ पर है कि जो राम के गुण को धारण करे और जिसके अंदर ‘मोह’ न(मोहन) हो वैसा हर घर में राम और कृष्ण चाहिए। तो ये एक दीपावली की ज्योति का यादगार है कि जब हर आत्मा अपने पूर्ण सतोप्रधान स्वरूप में आती है, अपनी चैतन्यता को प्राप्त करती है, अपनी जागृति में जीती है, अपने हेल्थ-वेल्थ और हैप्पीनेस की कम्प्लीट जागृति जिसके अंदर है वो दुनिया रामराज्य होगी। जब ऐसे राम राज्य की कल्पना जो हमारे जीवन में चल रही है तो निश्चित रूप से दीपावली जिसे दीपों का त्योहार कहते हैं उसमें दीप जगाने से क्या जागृति या रोशनी आ जाएगी पूरी दुनिया में! नहीं ना। तो वो हमारी जागृति का एक यादगार तो है लेकिन उसे निरंतर जगाये रखने से दीपावली के अर्थ के साथ हम जियेंगे।
पूरे साल में एक बार, वो भी मिट्टी का दीया और आजकल तो आर्टीफिशियल दीये और लाइट भी लगाते हैं, लडिय़ां लगाते हैं। वो आत्मा की सजावट के लिए है या घर की सजावट के लिए? तो हमारे से चारों ओर रोशनी फैले, हमारे से लोगों के अंदर जागृति आए, हमारे जीवन के परिवर्तन के आधार से लोगों के अंतर में परिवर्तन हो तब तो दीपावली सही अर्थ में हम मनाएंगे या दीपावली के साथ सही अर्थ में न्याय कर पायेंगे। नहीं तो ऐसे ही दीये जगाते रहेंगे, हर साल मनाते रहेंगे लेकिन उसका अर्थ न जानने से केवल परंपरा वश हम कार्य कर लेंगे, उसके साथ जी नहीं पायेंगे। तो ये है दीपावली का सही भावार्थ। अगर आपको समझ में आ जाये तो समझो आपका कल्याण हो जाये।

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