मीडिया ऐसी जो सभी मन भाये

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सारे कार्यकलापों का विवरण आम जनमानस तक पहुंचाने के माध्यमों को ही हम मीडिया कहते हैं। मीडिया एक वस्तुस्थिति को यथास्थिति और यथावत अगर कहीं पहुंचा दे तो वो यथार्थ समाचार सबको मिल जाता है। ये स्थिति एक स्वतंत्र भारत की होनी चाहिए। लेकिन जब हमारी कला में विकृति आती है तो हमको समाचार पर ध्यान कम रहता है, अर्थ(धन) पर ज्य़ादा रहता है। जहाँ पर अर्थ(धन) सहित मीडिया है वहाँ पर समाचार में मिलावट है। जहाँ पर अर्थ रहित मीडिया है वहाँ समाचार अर्थ सहित जाता है। थोड़ा-सा इस बात को हम आसान शब्दों में समझते हैं। भगवान को कहा जाता है कि उसे वो भक्त प्यारे होते हैं जो सरल हों, सहज हों, भावना वाले और निश्छल हों। मतलब कहते हैं कि इनकी बात आसानी से भगवान सुन लेता है।
सारे संतों को, महात्माओं को, बड़े-बड़े विद्वानों को आपने सुना होगा कि वे बातचीत करते हैं भगवान से सहज भाषा में, सरल भाषा में। उदाहरण के रूप में कबीरदास, रहीमदास, तुलसीदास, संत तुकाराम, ये सभी सरल भाषा अर्थात् सरल मीडिया के रूप में परमात्मा से बातचीत करते थे और वो बात पहुंच भी जाती थी और वो सुन भी लेते थे, समझ भी लेते थे और वरदान भी दे देते थे। ऐसा आप सभी भी कहते हैं कि संतों की वाणी में सहजता है, सरलता है जो आसानी से हम सभी को समझ में आती है। इसका अर्थ क्या हुआ कि हम सबको भी क्या सिर्फ जीविकोपार्जन के लिए अपने प्रोफेशन को अपनाना चाहिए या समाज को देखते हुए, समाज के जनमानस तक अपनी बात को सत्यता और स्पष्टता के साथ बिना किसी लोभ के पहुंचाना चाहिए? आज सबके पास पैसा बहुत है चाहे वो किसी भी प्रोफेशन में है, लेकिन बरकत नहीं है। बरकत नहीं है का अर्थ जिस भाव से, जिस अर्थ को लेकर वो काम कर रहे हैं उसमें लोभ है, उसमें विकार है और जो इस भाव से पैसा कमाता है कि समाज में अलग-अलग भ्रांतियों और मान्यताओं को फैलाकर सबके मन को खराब कर देना, सबके अंदर दूसरी तरह की चीज़ें डाल देना, उसका असर आपके ऊपर भी तो पड़ता है ना, क्योंकि जो भी वो खबर पढ़ता है, वो बार-बार यही सोचता है कि अच्छा! ऐसा है समाज, ऐसे हैं समाज के लोग। तो हमने अपनी तरफ से एक बार भी ये नहीं सोचा कि जब लोग इसको पढ़ेंगे, तो उनकी मान्यताएं सबके लिए बदल जायेंगी। अब इस बात को अगर हम सकारात्मकता के रूप में लें तो क्या हम सबके अंदर अच्छी मान्यताएं, अच्छी सोच पैदा नहीं कर सकते! अरे, हम तो वो लोग हैं जो पत्थर के लिए भी भावना पैदा कर लेते हैं। तो इसका अर्थ ये हुआ कि हम सबके लिए वो कर सकते हैं जो अविश्वसनीय और अकल्पनीय हो। और आपको जानकर हैरानी होगी कि 85 वर्षों से परमात्मा ब्रह्माकुमारीज़ में एक सोच के आधार से क्रांति ला रहे हैं। उनका इतना सुंदर और सरल स्लोगन है कि सभी आत्माएं बहुत अच्छी हैं लेकिन संस्कारों से कड़ी हैं।
भावार्थ ये है इसका कि आत्माएं तो आत्माएं ही हैं लेकिन जब वो धरती पर आईं, कर्मक्षेत्र पर आईं तो उन्होंने इंद्रियों वश होकर जो कर्म किया, माना काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार के वश आकर जो कर्म किया उससे उनके अलग-अलग तरह के संस्कार बन गये। तो वो अपने बनाये हुए संस्कार हैं इसलिए वे दु:ख भोग रहे हैं। परमात्मा आकर के सबको सिर्फ इंद्रियों के वश होकर कर्म न करने की प्रेरणा दे रहे हैं। वो ये कह रहे हैं कि जो आप देख रहे हैं, सुन रहे हैं वो सब खत्म हो जाने वाला है। और इनके वश होकर अगर आप कर्म करेंगे तो आप भी उसी वर्ग में शामिल हो जायेंगे। परमात्मा अपने क्रमुरलीञ्ज मीडिया के माध्यम से हमें प्रतिदिन चार पन्ने का समाचार पत्र देते हैं जिसके अंदर आत्मा को शक्तिशाली बनाने की खुराक होती और वो खुराक लेकर हम प्रतिदिन अपने कर्मक्षेत्र पर जाकर कर्म करते हैं। आप सोचिए, बड़े-बड़े संगठन, बड़ी-बड़ी समाजसेवी संस्थाएं भी ये दावा नहीं कर सकतीं लेकिन परमात्मा के हम सभी बच्चे ये दावा कर सकते हैं कि हमने उन विचारों को सुबह-सुबह अपने अंदर डालकर परिवर्तन किया है और ये बातें इतनी साधारण और सरल हैं कि सबको समझ में आ जाती हैं। यहां कोई अनपढ़ बूढ़ी माता हो या कोई पढ़ा लिखा हो, सबको ये भाषा समझ में आती है। क्यों आती है, क्योंकि उसमें भाव सभी को आगे बढ़ाने के हैं।
इस दुनिया की मीडिया में सबको नीचे गिराने के, सबके बारे में अनाप-शनाप लिखने के, सबकी बातों को बढ़ा-चढ़ाकर लिखने के, आदि-आदि बातें होती हैं जो नीचे गिरायेंगी ही गिरायेंगी। तो एक मनुष्य परिवर्तन कैसे कर सकता है क्योंकि वो तो वश में है विकारों के। वो तो कहेगा कि हम कैसे जियेंगे ये नहीं करेंगे तो। तो ठीक है, इसीलिए तो परमात्मा का हम सभी को सहारा लेना चाहिए ताकि हममें शक्ति आ सके और हम वो कर सकें जो सही है और जो करना चाहिए। तो ऐसी स्वास्थपरक मीडिया बनें, जो खुद भी अच्छे रहें और औरों को भी अच्छा बनायें।

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