बाबा हम बच्चों को हर दिन कोई न कोई अनुभव कराते ही रहते हैं। इन अनुभवों के आधार पर ही हमारी स्थिति बनती है। बाबा जैसे कहते हैं कि जितना हो सके एकांत में रहो। एकांत माना एक के अंत में। एकांत के आगे तीन चीज़ें और होती हैं। तीन चीज़ें कौन-सी? तो पहली है इकॉनमी, दूसरी है एकनामी और तीसरी है एकांतप्रिय।
पहली जो इकॉनमी है वो हमें अपने व्यर्थ विचारों की करनी है। अपने विचारों को व्यर्थ न जानें दें। इतना सुंदर खज़ाना बाबा ने हमें संकल्पों का दिया है। इन संकल्पों के खज़ाने की इकॉनमी चाहिए। कलियुग के अन्दर तो मनुष्य के संकल्प बहुत वेस्ट जाते हैं, लेकिन ब्राह्मण बनने के बावजूद भी कभी-कभी वो पुराने संस्कार इस तरह से इमर्ज होने लगते हैं कि रियलाइज़ नहीं होते। और जब रियलाइज़ होने लगते हैं तो अपने आपको सावधान कर देते हैं। तो पहले-पहले चाहिए कि अपनी जो एनर्जी है, उसकी हम बचत करते जायें। संकल्पों के खज़ाने की, एनर्जी की, हमारी जो ऊर्जा है उस ऊर्जा को एकत्रित करें।
दूसरा एकनामी अर्थात् एक परमात्मा से ही सर्व सम्बन्धों का अनुभव करना। इसीलिए एकांत के साथ सदा एकांतप्रिय। प्रिय कब होंगे जब हमारे सर्व सम्बन्ध बाबा के साथ होंगे। एक शिव बाबा के प्रिय बन जायें हम। तो बाहर की दुनिया के अन्दर बुद्धि का जो भटकाव है वहाँ से उसको मोड़ करके एकनामी फोकस बहुत ज़रूरी है। और जब ऐसा हम बाह्य तरफ से बुद्धि को समेट करके एक बाबा में एकाग्र करते हैं, एकाग्रता धीरे-धीरे बढऩे लगती है और उस एकाग्रता से वो एकांतप्रिय, वो इतनी सुंदर अवस्था होने लगती है जिस अवस्था में व्यक्ति समाये रहना चाहता है। इसलिए एकांत से पहले
ये स्टेजेस जो हैं उसको पार करते ही हम एकांतप्रिय हो सकते हैं। अगर हमें अपने संकल्पों का बचाव, इकॉनमी करना नहीं आया तो एकांत का अनुभव नहीं कर सकते। साथ ही साथ मन भी एकाग्र नहीं होगा। इसीलिए ये स्टेजेस बहुत ज़रूरी हैं।
जैसे बाबा हमें कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति को एकांत का अनुभव करना है तो अंडरग्राउंड होना ज़रूरी है। बाहर की दुनिया से डिटैच होने के लिए अंडरग्राउंड चले जाओ। जितना अंडरग्राउंड जायेंगे उतने सुन्दर विचार मन के अन्दर आरम्भ होंगे। जैसे किसी भी साइंटिस्ट को कोई नई इन्वेंशन(खोज) करनी होती है तो वो अंडरग्राउंड चला जाता है। अगर वो बाहर के लोगों से मिलता रहा तो उसकी स्थिति बनेगी ही नहीं, विचारों को एकाग्र नहीं कर पायेगा। इसीलिए उसको अंडरग्राउंड जाना ही पड़ता है। तब एकाग्रचित्त होकर उसको डेवलपमेंट जो करनी है, इन्वेंशन जो करनी है उसके लिए उसे जो विचार चाहिए वो उन विचारों को अपने अन्दर सहज निर्मित कर सकता है, क्रियेट कर सकता है। तो ठीक इसी तरह हमें भी अंडरग्राउंड होना बहुत ज़रूरी है। तो बाहर की बातों को, विचारों को फुल स्टॉप करना आसान हो जायेगा। तब जाकर मन की एकाग्रता से,जिस तरह समुद्र का, धरती का या आकाश का अंत पाना मुश्किल है पता ही नहीं है इसका अंत कहाँ है! ठीक इसी तरह शिव बाबा का अंत पाना भी मुश्किल है। लेकिन उस अंत में अपने मन को ले जाते हुए एक क्षण ऐसा भी आता है जब शिव बाबा का जो विशाल स्वरूप, जो तेज है उस तेज में, बाबा के प्रेम में हम अपने आपको समा सकते हैं। तो एकांतप्रिय होने के लिए उस प्रेम के सागर में, बाबा के साथ इतना गहरा प्यार हमारा हो तब एकांतप्रिय हम सहजता से बन सकते हैं और उसका सहजता से अनुभव कर सकते हैं।
तीसरी बात कि एकांतप्रिय होने के लिए आवश्यकता है बेहद की वैराग्य वृत्ति। जितना बेहद की वैराग्य वृत्ति है, एक रियल तपस्या की दृढ़ता जो है वो आरंभ होती है। इसीलिए बाबा कहते तुम बच्चों को तपस्या करनी है, तपस्या का आधार है बेहद की वैराग्य वृत्ति। बिना बेहद की वैराग्य वृत्ति के तपस्या हो ही नहीं सकती। भले कोई भ_ी में बैठ जाये सारा दिन, लेकिन अगर मन से वैराग्य नहीं होगा तो मन से दुनिया में घूमता रहेगा। तो इसके लिए बेहद की वैराग्य वृत्ति ऐसी चाहिए कि उस बेहद की वैराग्य वृत्ति से ही हम उस एकांतप्रिय, बाबा के प्यार में सहजता से समा सकें। जो न पाने वाला असम्भव है उसको पाना भी सहज हो जायेगा। इसलिए बाबा हमारा बार-बार उस ओर ध्यान खिंचवाते हुए कहते हैं कि बच्चे तुम्हें उस बेहद की वैराग्य वृत्ति को ले आना होगा।
एक बार हमारी आदरणीय गुल्ज़ार दादी से ऐसे ही चिटचैट हो रही थी। दादी से हमने कहा कि दादी बाबा तो कहते हैं कि समय आपके लिए रूका हुआ है क्योंकि हम बच्चे तैयार नहीं है इसलिए समय विनाश ज्वाला प्रज्वलित नहीं हो रही है, समय रूका हुआ है और दूसरी ओर हम ब्राह्मणों को देखते हैं, इस ब्राह्मण संसार को देखते हैं वहाँ ऐसा नज़र आता है कि ब्राह्मणों की चाल जिस तरह से है सतोप्रधानता की तरफ जाने की बजाय कभी कभी लगता है दुनिया के आकर्षणों में जा रहा है तो क्या कभी विनाश होगा ही नहीं! अगर समय हमारे लिए रूका हुआ है लेकिन हम तैयार होने के बजाय हम दूसरी ओर जा रहे हैं तो क्या विनाश होगा ही नहीं। क्योंकि मैंने दादी से कहा कि जब बाबा साकार में थे और आप सभी ने जो तपस्या की है वो सतोप्रधानता तपस्या थी वो समय को जल्दी ले आती। लेकिन अब वो तपस्या कहाँ है?ब्राह्मणों के जीवन में तपस्या कहाँ है? तो दादी मुस्कुराकर कहने लगी कि समय तो आयेगा और ब्राह्मण ही लायेंगे। लेकिन कोई धर्म को चार अवस्था से गुजरना पड़ता है ब्राह्मण भी धर्म है। ब्राह्मणों का घराना नहीं कहा जाता है। घराना राजाई को कहा जाता है। तो ब्राह्मणों का घराना नहीं है ब्राह्मणों का कुल है। ब्राह्मण एक धर्म है। तो कोई भीधर्म को चार स्टेजेस से गुजरना पड़ता है। जैसे देवी-देवता धर्म वाली आत्मायें भी चारों अवस्थाओं से गुजरी। इसी तरह ब्राह्मण भी धर्म है। इसीलिए बाबा के समय भी वो सतोप्रधानता थी, फिर धीरे धीरे सतो आई, फिर रजो आई, और अब तमो और अब और भी कुछ देखना बाकी है दादी ने कहा। अभी तो तमोप्रधानता भी देखेंगे ब्राह्मण धर्म में। जो कभी सोचा नहीं होगा, ऐसा होगा। मैंने कहा फिर दादी, फिर दादी ने कहा कि दो प्रकार के बच्चे हो जायेंगे एक हैं जिसको लगेगा इससे तो दुनिया अच्छी यहाँ जो हो रहा है इससे तो दुनिया अच्छी। वो दुनिया में चले जायेंगे माया उनको खींच लेगी। जो अंतिम दाव है माया का तो वो खींच लेगी। और दुनिया तो अच्छी ही होगी ना। क्योंकि ये आत्मायें तो पूरे 84जन्म साथ रही हैं। तो जो सबसे ज्य़ादा सतोप्रधान है वो सबसे ज्य़ादा तमोप्रधान भी तो बनेगी कि नहीं बनेगी। दुनिया पीछे से आई तो उनकी तमोप्रधानता भी तो कम है क्योंकि उनकी सतोप्रधानता भी ऐसी नहीं थी। इसलिए दुनिया तो अच्छी ही होगी। यहाँ जो देखने को मिलेगा वो वहाँ भी नहीं मिलेगा ऐसा भी होगा, ऐसा दादी ने कहा। जब मैंने ये सवाल पूछा था तो दादी ने कहा अभी तो ये कुछ नहीं है। लेकिन आगे चलकर ऐसा ऐसा दृश्य देखेंगे तो दो प्रकार बच्चे जो हो जायेंगे उसमें से एक होगा जो कहेंगे इससे तो दुनिया अच्छी, वो दुनिया की तरफ वापिस मुड़ जायेंगे। और जो दूसरी प्रकार के बच्चे हैं जो निश्चयबु8ि हैं जिन्होंने भगवान को देखकर अपने को बनाया है उनके अन्दर बेहद का वैराग्य आयेगा। और इतना वैराग्य आयेगा कि उसको लगेगा कि छोड़ो सब बातें अभी। अब तपस्या ही करो। और उस बेहद के वैराग्य से जो तपस्या आरम्भ होगी वो रियल तपस्या होगी। अभी जो योग कर रहे हैं वो तपस्या नहीं है दादी ने कहा। हाँ इतनी देर विकर्म नहीं कर रहे हैं लेकिन जो विकर्म भस्म होना चाहिए वो वाला योग भी नहीं है। वो तपस्या नहीं है क्योंकि तपस्या रियल उसको कहा जाता है बेहद की वैराग्य वृत्ति से तपस्या आरम्भ हो। अभी हम जो कर रहे हैं हाँ विकर्म बनता नहीं है लेकिन जो विकर्म दग्ध होना चाहिए वो भी नहीं है। ठीक है समय सफल हो रहा है, बाबा को याद करने बैठे हैं और इसीलिए याद साधारण होती है कभी पॉवरफुल होती है, कभी साधारण होती है, कभी नींद भी आ जाती है, झुटका भी आ जाता है। सब होता है इसमें। इसलिए इसको तपस्या शब्द नहीं कहेंगे, तपस्या तो तब होगी जब रियल में बेहद का वैराग्य देखने के बाद ये हो रहा है, ऐसा भी होता है, दादी ने कहा ये सब होगा। लेकिन अन्दर में वही एक वैराग्य क्रियेट करेगा कि बस अभी सब बातें छोड़ो बाबा को याद करो। और उस समय जो एकदम बेहद की वैराग्य वृत्ति से जो याद में बैठेेंगे तो एकटिक हो जायेंगे, एकाग्र हो जायेंगे। और उस स्थिति से समय को ले आयेंगे। वो आत्मायें विनाश ज्वाला को प्रज्वलित करेंगी। अभी जिस तरीके से चल रहे हैं ये कोई विनाश ज्वाला को प्रज्वलित नहीं करती है। इसीलिए ये सब होना है औश्र उसके लिए तैयार, मानसिक तैयारी चाहिए क्योंकि अगर नहीं होगी तो क्या होगा माया खींच कर दुनिया में ले जायेगी वापिस। इसीलिए ये तपस्या के लिए बेहद की वैराग्य वृत्ति बहुत ज़रूरी है। अभी से उसका अभ्यास ज़रूर करना है।