संकल्पों को बनायें पॉवरफुल

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फीलिंग आना तो जैसे आधी मृत्यु है। ज्य़ादा सोचने की आदत को लगाम लगायें। हमें जब चाहे कोई परेशान कर दे हम ऐसे कमज़ोर क्यों बनें!

आज मनुष्यों के जीवन में संबंधों में टकराव के कारण बहुत व्यर्थ बढ़ गया है। हमें चिंतन करना है कि हमारे संबंध बड़े महत्त्वपूर्ण चीज़ है। टकराव, इससे हम इन संबंधों के रस को, संबंधों के सुखों को नष्ट न होने दें। सब जानते हैं, सबको कहीं न कहीं अनुभव है अगर संबंधों में टकराव है, पति-पत्नी के बीच में टकराव है, बाप-बेटे के बीच में टकराव है या बहनों-बहनों के बीच में टकराव है, सास-बहू के बीच में, ननंद-भाभी के बीच में सभी इन चीजों को जानतेे हैं। यदि टकराव है तो जीवन का सुख समाप्त हो जाता है। बुद्धि भी मलीन होने लगती है, भारी होने लगती है। उसपर एक दबाव बना रहता है। कई तो कहते हैं कि इच्छा होती है कि भाग जायें यहाँ से कहीं। सुख नहीं मिल रहा है। रात-दिन आपको कोई कुछ बोल रहा है, पीछे ही पड़ा है। उन्होंने कसम खा ली है कि आपको सुख-चैन से सोने ही नहीं देंगे। उसके बोल व्यर्थ संकल्पों को बहुत बढ़ावा देते हैं। मनुष्य सोचता ही रहता है, सोचता ही रहता है। उसके बोल ज्य़ादा याद रहते हैं भगवान के बोल भूल जाते हैं। तब मनुष्य सोचता है कि मैंने इसका क्या बिगाड़ा है। कई केस तो ऐसे होते हैं कि ये व्यक्ति उस व्यक्ति को जो बहुत बोल रहा है उसको सहयोग देता है, सम्मान करता है। प्यार भी देने की कोशिश करता है, लेकिन मौका मिलते ही वो व्यक्ति आलोचना करने में, बुरा बोलने में, अपमान करने में चूकता नहीं है। ऐसे में क्या करें? व्यर्थ संकल्प बहुत चल जाते हैं। और मनुष्य उनको कंट्रोल नहीं कर पाता। हम अपने को सरलचित्त बनायेंगे।
अब व्यर्थ तो बहुत चलता है। मनुष्य न जाने क्या-क्या सोचता है, लेकिन हमें तो उसका समाधान भी करना है न! संबंधों को मधुर बनाना है और अपने मन को भी शांत करना है। तो हमें एक तो दूसरों की बातों को हल्के में लेना चाहिए। कई इतने सेंसिटिव होते हैं कि ज़रा-सा कोई कुछ कह देता है तो उन्हें अपमान फील होता है। तो ज्य़ादा सोचने लगते हैं। दूसरे का अपमान करने का कोई इरादा नहीं, लेकिन मनुष्य जो सेंसिटिव है वो ज्य़ादा सोचता है। ये बार-बार मुझे बोलते हैं, ये बार-बार मेरा अपमान करते हैं। ये शायद मुझे खुश नहीं देखना चाहते। इससे कैसे छुटकारा पाऊं। इससे तो अच्छा मर जाऊं। क्या-क्या सोचने लगता है मनुष्य! और एक संकल्प उठते ही उसके साथ दूसरा, तीसरा, फिर चौथा… और हज़ारों संकल्प चल जाते हैं। चारों ओर का वातावरण कमज़ोर हो जाता है और जो लोग सेंसिटिव हैं उन्हें जानना चाहिए इससे उनकी सेंसिटिविटी और बढ़ती जायेगी। मन और निर्बल होता जायेगा, उनका मन और कमज़ोर होता जायेगा। इसलिए ये बात बहुत पक्की कर दें कि मन की शक्ति सबसे बड़ी शक्ति है।

बाइबिल में तो ये लिख दिया कि तुम्हारे सामने अगर एक पहाड़ है और तुम दृढ़ संकल्प कर दो पक्के, सच्चे मन से कि ये चार फुट पीछे खिसक जाये बशर्ते तुम्हारे मन में ज़रा भी संशय न हो। सोचने से पहले ही संशय हो जाता है कि तुम क्या सोच रहे हो भला पहाड़ भी खिसका करता है! मन की शक्ति जबरदस्त है। अगर अपने में और अपने संकल्पों में पूर्ण विश्वास हो तो हम बहुत कुछ बदल सकते हैं। तो हमें इतना सेंसिटिव नहीं होना है कि दूसरा ज़रा-सा कुछ कहे और हम परेशान हो जायें। हमें बहुत पॉवरफुल बनना है। याद रखें जिन्हें स्वयं भगवान मिल गया हो, जिन्हें स्वयं भगवान सम्मान दे रहा हो मनुष्यों का सम्मान लेकर क्या करेंगे! और ये अपमान की फीलिंग वास्तव में देह अभिमान का प्रत्यक्ष प्रैक्टिकल, बाह्य स्वरूप है। मान लीजिए आप किसी के पास गये उसने ये कहने में कि भाई जी बैठ जाओ एक मिनट लगा दिया। आपको अपमान फील होगा कि देखा हम तो इतनी दूर से आये बैठने को भी नहीं कह रहे हैं। मान लो वो किसी काम में बिज़ी हैं, या ख्याल से उतर गया अपमान की फीलिंग आ जायेगी। बाहर निकल जायें इससे। शिवबाबा ने हमें बहुत सारे स्वमान दिए हैं और ये याद रखना कि जो स्वमान में बहुत अच्छी तरह स्थित हो जाते हैं उन्हें न तो अपमान की फीलिंग होती और सम्मान परछाई की तरह उनके पीछे आता है। और तीसरी बात उनका सूक्ष्म अभिमान भी धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है। हम अपने स्वमान को बढ़ाएं। भगवान ने हमें टाइटल दिया है कि तुम मास्टर सर्वशक्तिवान हो इसका अर्थ है मैंने तुम्हें अपनी सारी शक्तियां दे दी हैं। तुम भी बहुत शक्तिशाली हो। स्वीकार कर लें। अभ्यास करने से सेंसिटिविटी समाप्त होती जायेगी।
जिन लोगों के पास फीलिंग बहुत होती है वो कभी न तो खुश रह सकते और न ही जीवन में बड़ा काम कर सकते। न वो संगठन में रह सकते, न वो सफलता की ओर आगे बढ़ सकते। फीलिंग तो भगवान ने कहा कि ये तो जैसे आधी मृत्यु है। ज्य़ादा सोचने की आदत को लगाम लगायें। हमें जब चाहे कोई परेशान कर दे हम ऐसे कमज़ोर क्यों बनें! हम ऐसे पॉवरफुल बनें जो संसार हमें परेशान करे लेकिन हम परेशान होंगे ही नहीं।
एक ही ये पॉवरफुल संकल्प अनेक व्यर्थ संकल्पों को समाप्त कर देगा। फीलिंग की जो बीमारी है इससे बाहर निकलने का पॉवरफुल संकल्प करें कि भगवान मुझे मिल गया, उसका सत्य ज्ञान मुझे मिल गया। उससे मेरा नाता जुड़ गया। वो मेरा साथी बन गया। मुझे भी उस जैसा पॉवरफुल बनना है। अगर मैं इतनी कमज़ोर रही तो वो मुझे देखकर क्या कहेगा! क्या सोचेगा कि ये मेरे बच्चे हैं! फिर ये क्या करेंगे संसार में जिन्हें इतनी फीलिंग्स है। तो आओ हम सभी इस तरह के व्यर्थ संकल्पों को आज विदाई दे दें। अपने श्रेष्ठ स्वमान में स्थित हो जायें। स्वमान से पॉवरफुल संकल्प मन में आते रहेंगे। इन संकल्पों से फैलने वाले वायब्रेशन से चारों ओर के वातावरण को भी चार्ज करेंगे, हमारे ब्रेन को भी पॉवरफुल बनायेंगे, और अपने कार्यों को भी सफल करेंगे।

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