मुख पृष्ठकथा सरिताहमारा व्यवहार ही हमारी पहचान है

हमारा व्यवहार ही हमारी पहचान है

बहुत समय पहले की बात है। घने जंगल किनारे एक गाँव बसा हुआ था। उस गाँव में दो भाई रहा करते थे। दोनों भाइयों के व्यवहार में बड़ा अंतर था। छोटा भाई बड़े भाई से बहुत प्यार करता था लेकिन बड़ा भाई स्वार्थी, लालची और दुष्ट था। वह छोटे भाई से चिढ़ता था और सदा उससे बुरा व्यवहार किया करता था। बड़े भाई के इस व्यवहार से छोटा भाई दु:खी हो जाता था लेकिन उसके प्रति प्रेम के कारण वह सबकुछ सह जाता था और कभी कुछ नहीं कहता था।
एक दिन बड़ा भाई लकड़ी काटने जंगल गया। वहाँ इधर-उधर तलाशने पर उसकी नज़र एक ऊंचे पेड़ पर पड़ी। आज इसी पेड़ की लकड़ी काटता हूँ ये सोचकर उसने कुल्हाड़ी उठा ली। लेकिन वह कोई साधारण पेड़ नहीं बल्कि एक जादुई पेड़ था। जैसे ही बड़ा भाई पेड़ पर कुल्हाड़ी से वार करने को हुआ, पेड़ उससे विनती करने लगा, ”बंधु! मुझे मत काटो, मुझे बख्श दो। यदि तुम मुझे नहीं काटोगे तो मैं तुम्हें सोने के सेब दूंगा।”
सोने के सेब पाने के लालच में बड़ा भाई तैयार हो गया। पेड़ ने जब उसे सोने के कुछ सेब दिए, तो उसकी आँखें चौंधिया गई। उसका लालच और बढ़ गया। वह पेड़ से और सोने के सेब की मांग करने लगा। पेड़ के मना करने पर, वह उसे धमकाने लगा, ”यदि तुमने मुझे और सेब नहीं दिए, तो मैं तुम्हें पूरा का पूरा काट दूंगा।”
यह बात सुनकर पेड़ को क्रोध आ गया। उसने बड़े भाई पर नुकीली सुईयों की बरसात कर दी। हज़ारों सुईयां चुभ जाने से बड़ा भाई दर्द से कराह उठा और वहीं गिर पड़ा। इधर सूर्यास्त होने के बाद भी जब बड़ा भाई घर नहीं आया, तो छोटे भाई को चिंता होने लगी। वह उसे खोजने जंगल की ओर निकल पड़ा।
जंगल पहुंचकर वह उसे खोजने लगा। खोजते-खोजते वह उसी जादुई पेड़ के पास पहुंच गया। वहाँ उसने बड़े भाई को जमीन पर पड़े कराहते हुए देखा। वह फौरन उसके करीब पहुंचा और उसके शरीर से सुईयाँ निकालने लगा। छोटे भाई का प्रेम देखकर बड़े भाई का दिल पसीज गया। उसे अपने व्यवहार पर पछतावा होने लगा। उसकी आँखों से आँसू बह निकले और वह अपने छोटे भाई से माफी मांगने लगा। उसने वचन दिया कि आगे से कभी उसके साथ बुरा व्यवहार नहीं करेगा।
छोटे भाई ने बड़े भाई को गले से लगा लिया। जादुई पेड़ ने भी जब बड़े भाई के व्यवहार में बदलाव देखा तो उसे ढेर सारे सोने के सेब दिए। उन सोने के सेबों को बेचकर प्राप्त पैसों से दोनों भाइयों ने एक व्यवसाय प्रारंभ किया, जो धीरे-धीरे अच्छा चलने लगा और दोनों भाई सुख से रहने लगे।
सीख : दूसरों के प्रति सदा दयालु रहें। दयालुता सदा सराही जाती है।

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