बाबा ने हर स्थान पर कैसे अपने बच्चों को ईश्वरीय सेवा के निमित्त बनाया है, वो इस संगठन को देख स्पष्ट समझ सकते हैं। और हम सबका लक्ष्य एक ही है कि हमें स्व परिवर्तन से विश्व का परिवर्तन करना है। यह बहुत बड़ा ठेका है, सब ठेकेदार बैठे हैं। इसको निभाने के लिए समय प्रति समय बापदादा हमें इशारा देते रहते हैं। अब उन इशारों को, उस लक्ष्य को लक्षण के रूप में प्रत्यक्ष करना है। हरेक जो भी निमित्त बने हुए विशेष आत्मायें हैं वो यह ज़रूर समझते हैं कि हमें परिवर्तन होना ही है और विश्व को भी परिवर्तन करना ही है। लेकिन बाबा आजकल हमारी चलन और चेहरे से प्रत्यक्ष रूप देखने चाहते हैं क्योंकि लोग आजकल ज्ञान को इतना कैच नहीं कर सकते हैं जितना चेहरे और चलन से कैच कर सकते हैं। हमारी आंतरिक भावनायें, आन्तरिक स्मृति-स्वरूप का हरेक को अनुभव है लेकिन बाबा कहते हैं जब बाप की प्रत्यक्षता होगी तब विश्व परिवर्तन होगा।
तो आप सभी यह लक्ष्य तो रखते ही हो कि बाबा को प्रत्यक्ष करना ही है, यह पक्का है? करना ही है, होना ही है या हो जायेगा… समय आयेगा अपने आप हो जायेगा यह तो नहीं सोचते हो? हमें करना है। इस कार्य में मैं अर्जुन हूँ, हरेक यह समझकर आगे बढ़ करके बाबा को प्रत्यक्ष करें। और बाबा ने भी यही कहा कि बहुत समय से बाबा वायदे कराते रहते हैं और बच्चे भी वायदे सदा लिख करके देते ही हैं। तो बाबा यही चाहता है कि मेरी एक ही आशा है और उस आशा के दीपक तो हम सब हैं ही। तो सभी मिलकर ऐसा संगठन बनाओ जो कोई भी आवे तो ऐसा समझे कि यह दुनिया में रहते हुए कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, यह कोई अलौकिक हैं। अलौकिक आत्मा का हर कर्म ऑटोमेटिकली अलौकिक हो जायेगा, तो अभी लक्ष्य और लक्षण में आप देखें कि उसमें अभी तक अन्तर है या समान हो गये हैं? जैसे बाबा कहते मेरा एक-एक बच्चा राजा बच्चा है, तो राजा का अर्थ ही है कंट्रोलिंग पॉवर और रूलिंग पॉवर। तो बाबा यही चाहता है कि इसमें पहले खुद को प्रत्यक्ष करके फिर बाबा को प्रत्यक्ष करें। इस संकल्प को साकार करना ही है। आप पाण्डव नहीं करेंगे तो कौन करेगा? ऐसे दृढ़ संकल्प के द्वारा हम हलचल में आने के बजाय अचल बन जायें। अचल बनकरके बाबा की आशाओं को प्रत्यक्ष कर्म में लायें। संकल्प तो करते हैं लेकिन कर्म में भी वही संकल्प प्रैक्टिकल में आये, उसका अटेन्शन रखकर के हम बाबा को दिखायेंगे कि बाबा, अभी जो आप चाहते हैं, जो उम्मीदें हमारे में रखते हैं, वो हम प्रैक्टिकल कर रहे हैं। लेकिन उसमें भी देखना है कि एक-दो के तरफ देखते भी आत्मा रूप का पाठ बहुत पक्का करना है। यह आत्मा बाबा का बच्चा है। पुरुषार्थी महारथी है। उस दृष्टि से हम एक-दो में संगठन में चलेंगे और अभ्यास करेंगे और बार-बार अपने को चेक करेंगे।
तो हमें यह करना है कि मैं आत्मा और यह मेरे साथी कर्मचारी कर्मेन्द्रियां जो हैं, उसको चला करके बाबा ने जो हमें साक्षीदृष्टा का तख्त दिया है, उस पर बैठ करके खेल देखने का अभ्यास करें। समय हमारा सदा ही याद में और फरिश्ते की लाइफ में जाये। परिवर्तन का प्रैक्टिकल हम सबूत दें।