सिम्पल बात को बड़ी नहीं बनाओ… बड़ी को छोटी बना दो

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बाबा बहुत अच्छा है, क्यों? हमारा बाप टीचर बन गया, कभी बोलता विचार सागर मंथन करो, कभी बोलता बुद्धि को सतोप्रधान बनाओ। कभी कुछ, कभी कुछ बाबा ऐसा बताता है ताकि हम बिज़ी रहें, अच्छे से अच्छे ज्ञान को धारण करो। इम्पॉसिबल बात को बाबा पॉसिबल कर देता है। बुद्धि सालिम(सम्पूर्ण)है, बाबा बहुत अच्छा है। एक बाबा दूसरा न कोई तो विक्ट्री है। व्हाय नहीं कहना है, ऐसे बनना है। विज़डम माना शॉर्टकट वे है, सिम्पल वे सिर्फ सैम्पुल बनना है, वर्ड ऑफ विज़डम। कैसे करूँ, क्या करूँ, ऐसे नहीं बोलो। सिम्पल बात को बड़ी बात नहीं बनाओ। बड़ी को छोटी बना दो तो दोष नहीं है और औरों का दोष निकालके छोटी बात को बड़ा बनाया तो मेरा दोष हो जायेगा। ऐसा यह क्यों करता? सम्भलके बोल, यह सोचो भी नहीं, मुख से नहीं बोलो। यह वर्डस मुख से निकलता है तो विज़डम कैसी है, कितनी है, अन्दर से दिखाई पड़ता है। अन्दर के चेहरे से दिखाई देता है। इसलिए बुद्धि को सतोगुणी सेे सतोप्रधान बना दो। थोड़ा भी सोचने, बोलने में एक्यूरेट नहीं है तो बाबा देखेगा मैं कुछ और चाहता हूँ यह करता कुछ और है। बात को थोड़ा भी बनाने में नुकसान है, बड़ी को छोटा बनाने में बहुत फायदा है।
मुख से शब्द ऐसे निकलें जो 20 साल पहले वाले शब्द भी याद आवें तो खुशी की आवाज़ निकले क्योंकि संगमयुग का महत्त्व है। जितनी पढ़ाई उतनी कमाई। अन्दर संकल्प की जो शुद्धि है ना, वह औषधि है। यह औषधि जो जितना यूज़ करता है उसके लिए उतना अच्छा होगा। अन्त मते तक बाप, टीचर, सतगुरू तीनों को खुश करना है तो धर्मराज को भी खुश करो। मेरे से तीनों खुश हैं, यही विज़डम है। तीनों को खुश करना माना धर्मराज को खुश करना। है रूप तीन ही लेकिन उसके अन्दर में धर्मराज छिपके ऐसा बैठा है, अभी सुबह-शाम हरेक देखें, मेरी खुशी गुम क्यों हुई? धर्मराज ने सजा दी। अभी देता है थोड़ा कान पकड़के सावधान करने के लिए, जो बाबा ने कहा था मुरली सुनने समय अगर बुद्धि इधर-उधर गयी तो योग नहीं है।
देखा जाता है सुनता यहाँ है, पर बुद्धि बाहर है तो बात अन्दर नहीं गयी इसलिए बाहर में सबके साथ रहते हुए भी अन्तर्मुखी है तो वो सदा सुखी है। मेरे संग सेवा करने वाले भी सुखी हों। परमात्मा तो सबको सुख-शान्ति में सम्पन्न बना देता है माना सुख शान्ति ही सम्पत्ति है। तो विज़डम बाबा की है, सुनने वाले आप हैं, अगर आप न सुनते तो मैं कोई काम की नहीं होती। अपनी बुद्धि को अभिमान से फ्री रखो। अपमान की फीलिंग कभी न आवे, यह मंजि़ल ऊंची है।

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