अब न सिर्फ परफॉर्मेंस, मार्क्स देखा जायेगा बल्कि इमोशनल कोशेंट भी देखा जायेगा

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परमात्मा को परम शिक्षक भी कहा जाता है। उनके महावाक्य सिर्फ हमारा जीवन ही नहीं बल्कि हमारे द्वारा अनेकों का जीवन बदल देते हैं। हम सबके अलग-अलग नियम होते हैं। अलग-अलग रेस्पॉन्सिबिलिटी होती है, लेकिन टीचर की रेस्पॉन्सिबिलिटी बहुत महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि वह फ्यूचर का जेनरेशन तैयार करता है। टीचर की एनर्जी फिल्ड हर बच्चे के माइंड के ऊपर प्रभाव डालती है। हम देखते हैं कि टीचर हर सेक्शन में, हर क्लास में, हर 40 मिनट के बाद कम से कम 30-40 माइंड के ऊपर प्रभाव डाल रहे हैं। भले हमें पढ़ा रहे हैं गणित, भौतिक, रसायन, इतिहास, अंग्रेजी, स्पोर्टस, जिम, योगा, म्यूजि़क, डांस। उस समय हम जो पढ़ा रहे हैं , हमारा जो औरा है, हमारे जो वायब्रेशन हैं, हमारी जो मन की स्थिति है वो एनर्जी की तरह उन बच्चों की तरफ जा रही होती है। ये हमें भी दिखाई नहीं देती और उन्हें भी दिखाई नहीं देती, लेकिन टीचर की सारी एनर्जी उनके ऊपर ही जा रही है। हम कहते भी हैं देखो आजकल के बच्चे कैसे हो गए हैं। छोटी-छोटी बातों में रियेक्ट करते हैं। पैरेंट्स कहते हैं बच्चे आजकल कहना ही नहीं मानते। ये हमारा आजकल का स्टैंडर्ड(मानक) बन गया है। बच्चे हमारा कहना नहीं मानते।
जब आप और हम छोटे थे तो कहते थे मम्मी-पापा ने बोला है तो करना ही है। हमारे पास कोई ऑप्शन नहीं होता था उस समय। आज हम कहां से कहां शिफ्ट हो गए, ये क्यों हुआ? क्यों बच्चे ऐसे हो रहे हैं- विल पॉवर कम है, डिस्टर्ब हो जाते हैं, स्टे्रस्ड हो जाते हैं, परीक्षा से पहले एंग्जाइटी हो जाती है। कोई भी शिक्षक या पैरेंट्स से हम पूछते हैं कि आजकल बच्चे ऐसे क्यों हो गए हैं तो कहते हैं कि क्या करें आजकल बड़ा कम्पीटिशन है। आजकल बड़ा पढ़ाई का प्रेशर है, और ये बोलकर हम सारा ब्लेम पढ़ाई पर, एजुकेशन पर और उस सिस्टम पर डाल देते हैं। और हम कहते हैं इसलिए हमारे बच्चे ऐसे हो गए। ये वास्तव में सच नहीं है।
इसका मुख्य कारण है हमारे में आध्यात्मिक पॉवर की कमी। मोबाइल की बैटरी जब कम होती है तो हम उसे चार्ज कर लेते हैं क्योंकि वो हमें दिखाई देती है कि यह कितना परसेंट बची हुई है। उसी तरह से हमारी आत्मा भी बैटरी की तरह काम करती है। जिसको हम सोल पॉवर कहते हैं। आत्मा की शक्ति, जिसको बच्चे कभी-कभी विल पॉवर भी कहते हैं वो भी आत्मा की शक्ति है। वो हमें दिखाई नहीं देती है कि यह बैटरी फुल चार्ज है, या 50 प्रतिशत है या 10 प्रतिशत है, लेकिन आत्मा रूपी बैटरी हमारे बिहेवियर में दिखाई दे सकती है कि यह कितना प्रतिशत चार्ज है।
अगर हमें गुस्सा ज्य़ादा आता है, हम छोटी-छोटी बातों में रियेक्ट कर देते हैं, हम एडजस्ट नहीं कर पाते, हम सहन नहीं करते, हम क्षमा नहीं कर पाते, हम किसी की बात को भूल नहीं पाते, हम अपने आपको ही ज्य़ादा अच्छा समझते हैं, हमें दूसरों से ईष्र्या होती है, हम गै्रटिच्यूड(आभार) कम और शिकायत ज्य़ादा करते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके पास बहुत थोड़ी फेसिलिटी होती है लेकिन वो बहुत खुश रहते हैं, सदा भगवान का शुक्रिया करते हैं कि हमारे पास सबकुछ है। वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके पास सबकुछ होता है फिर भी कहते ये कम है, ये ठीक नहीं। तो हमारी पर्सनैलिटी क्या है, क्या हैं हम ग्रैटिच्यूड पर्सन या कम्पलेनिंग! ये डिसाइड करेगा कि आपकी आत्मा रूपी बैटरी कहाँ पर पहुंची हुई है। आजकल जो बच्चे हैं आपको क्या लगता है कि उनकी बैटरी कहाँ पर है? वो इंटेलेक्ट(बुद्धि) से नहीं डिसाइड होगा, ये नहीं सोचना कि आजकल के बच्चे बहुत इंटेलिजेंट हैं। आजकल के बच्चों का आईक्यू बहुत हाई है। वो कई बार इतना सबकुछ स्टडी करके आ जाते हैं इंटरनेट से कि आपको भी कई बार क्लास में आकर कुछ नई बात बता देंगे जो कि आपको नहीं पता होगी। तो इसके लिए शिक्षक स्टूडेंट का भी शुक्रिया कर सकते हैं। इंफॉरमेशन एक्वायर(प्राप्त करना) करना कोई बड़ी बात नहीं होती है। इंफॉरमेशन चारों तरफ है, हमें सिर्फ उसे एक्वायर(प्राप्त) करना है। लेकिन हमें जो अब चेक करना है वो है ईक्यू। इमोशनल कोशेंट कैसा है हमारा। इस साल जितने भी हेल्थ के प्रोफेशनल हैं, डॉक्टर्स हैं, हॉस्पिटल हैं, जितने भी बिजनेस हाउसेस हैं, इंडस्ट्रीज हैं सबने एक ही बात कही अब हमारी प्रायरिटी(प्राथमिकता) जब हम लोगों को हायर करेंगे, तो हमारी प्रायरिटी होगी इमोशनल कोशेंट। आप ये समझिए अब, अब से जो बच्चे जाएंगे बाहर या उनको कैंपस इंटरव्यू या कोई भी सिलेक्शन के लिए देखा जाएगा तो उनके सिर्फ माक्र्स, उनकी सिर्फ परफॉर्मेंस, सिर्फ ये फैक्टर नहीं होगा। उनका इमोशनल कोशेंट एक बहुत बड़ा फैक्टर होगा।
अब बच्चों का इमोशनल कोशेंट हाई बनाएंगे कैसे, उसके लिए कोई सब्जेक्ट नहीं होता है। भले हम लाइफ स्किल का सब्जेक्ट करते हैं। एक सब्जेक्ट से नहीं बनती है इमोशनल हेल्थ। इमोशनल हेल्थ बनती है उस एनर्जी से, उस वायब्रेशन से, जिस संग के अन्दर बच्चा पलता है, पढ़ता और बड़ा होता है। उस संग की एनर्जी से उसकी इमोशनल हेल्थ बनती है। जैसे डॉक्टर की वायब्रेशन पेशंट पर असर करती है, उसी तरह आपकी वायब्रेशन आपके बच्चों पर और आपके हर स्टूडेंट पर पड़ती है। 30 मिनट का लेक्चर है। भले ही आप कोई भी सब्जेक्ट पढ़ा रहे हैं, लेकिन 30 मिनट आपकी पूरी वायब्रेशन उस पूरी क्लास के ऊपर रेडिएट कर रही है।

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