राम वाली दीवाली

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हमने जि़ंदगी की जंग को जीता नहीं है। अगर आप निरन्तर जि़ंदगी की जंग को जीतो, बाहर की दुनिया को जीतो, बाहर की माया को जीतो, बाहर की एक-एक चीज़ को, परिस्थितियों को जीतो तब माना जायेगा कि आप भी एक राम की तरह ही तो भूमिका निभा रहे हैं। और ये जो बाहर के राम की भूमिका है वो यही है कि हर पल, हर क्षण उन सारी चीज़ों से लड़ाई की है लेकिन कभी भी हार क्यों जाते हैं,क्योंकि हमारे अन्दर विकारयुक्त स्थिति है। हम भी वैसा ही कार्य कर रहे हैं जो लोग कर रहे हैं।

अभी हम सभी की पूर जोर तैयारी उस एक खास मौके के लिए जिसका हम पूरे साल इंतज़ार करते हैं, जिसके लिए हम बहुत कुछ इंतज़ाम भी करते हैं। करने का सबके अन्दर एक जोश होता है, एक जुनून होता है, एक जज़्बा होता है कि नहीं इस बार दीवाली कुछ ऐसे मनायेंगे। जो दीवाली हम आज तक मनाते हैं उसमें पता है कि सारे लोग अपने आप को नये-नये वस्त्रों से खुद को सजाते हैं, लडिय़ों से घरों को सजाते हैं, दीपों से अपने द्वार को सजाते हैं, लेकिन एक ऐसी स्थिति बनती है जिसमें सभी एक-दूसरे के साथ उस समय मिलते भी हैं तो एक सबसे खास चीज़ क्या होती है, उसमें लोग एक-दूसरे को कुछ सौगात देते हैं, मिलते हैं, दीवाली की शुभ मिठाई देते हैं और उनको देने के बाद विश(कामना) करते हैं और एक-दूसरे से मिलने के बाद धन्यवाद भी देते हैं कि आपसे मिलकर खुशी हुई का मतलब इस दीवाली पर जिसमें सभी बुरी चीज़ों को छोड़कर नई चीज़ों को अपनायेंगे इसीलिए शायद नये वस्त्र, नये बर्तन, नये कपड़े और नई-नई कुछ कीचन की चीज़ों को भी लोग खरीदते हैं। क्यों, क्योंकि शायद पहले का जो कुछ है वो पुराना है ऐसा नहीं है, लेकिन वो इसलिए करते हैं ताकि हमें याद रहे कि इस दीवाली पर हमने ये वाला काम किया था।
तो क्यों न हम इसको थोड़ा अलौकिक बनाते हैं। अभी तक आपने ये सारा कुछ किया, लेकिन क्या कुछ हम एक-दूसरे को विश करते हुए इस दीवाली पर राम की तरह कुछ एक्ट कर सकते हैं? क्योंकि दुनिया में दिखाया जाता है कि रामचन्द्र जी जब रावण पर विजय प्राप्त करके आये तो सबने उनके स्वागत में दीप जलाये। तो क्या हम सभी एक-दूसरे के अन्दर उमंग-उत्साह का दीप जला सकते हैं इस बार! जो अपनी शक्तियों को भूल गया है, जिसके अन्दर बल नहीं है, जिसके अन्दर पवित्रता का बल नष्ट हो गया है क्या हम उन सबके अन्दर कुछ ऐसी चीज़ें पैदा कर सकते हैं, जो उठना चाहता है लेकिन किसी कारणवश उठ नहीं पा रहा है। जिसके अन्दर बहुत सारे ऐसे भाव हैं लेकिन उन भावों को जगा नहीं पा रहा है। उन भावों को उठाने के लिए क्या हम एक बार उसके साथ मिलके फिर से वो सारी चीज़ें पैदा कर सकते हैं! दूसरे को आजतक हम गिफ्ट देते आये लेकिन उपहार में हम गुणों का दान करें। अगर गुणों का दान न कर पायें तो भी गुण उसकी याद दिलाये। ताकि उस गुण की याद दिलाने के बाद आपके अन्दर भी वो गुण आ जाये। दीवाली को खुशियों का त्योहार शायद इसीलिए कहते हैं क्योंकि हर पल, हर क्षण हमारे अन्दर जो दीपक जलता है पवित्रता का उससे जो खुशी पैदा होती है ना वो इन तेल के दीपकों से नहीं होती।
ये सारे आध्यात्मिक त्योहार ही हैं लेकिन हमने इनको आज एक परम्परा के रूप में मनाना शुरू किया और आजतक वैसे के वैसे ही मनाते आ रहे हैं, लेकिन श्रीरामचन्द्र जी जो दुनिया में दिखाये जाते हैं वो जब अयोध्या वापिस आये तो ऐसा कार्य किया गया। हम सब रोज़ अपने घर को लौटते हैं वापिस, ऑफिस से लौटते हैं या कहीं गये हैं वहाँ से घर वापिस आते हैं वहाँ से आने के बाद क्या हमारी खुशी हमेशा कायम रहती है? क्या हमारे अन्दर उमंग-उत्साह के दीपक जलते रहते हैं? शायद नहीं। कारण, हम उलझे हुए हैं जि़ंदगी में। हमने जि़ंदगी की जंग को जीता नहीं है। अगर आप निरन्तर जि़ंदगी की जंग को जीतो, बाहर की दुनिया को जीतो, बाहर की माया को जीतो, बाहर की एक-एक चीज़ को, परिस्थितियों को जीतो तब माना जायेगा कि आप भी एक राम की तरह ही तो भूमिका निभा रहे हैं। और ये जो बाहर के राम की भूमिका है वो यही है कि हर पल, हर क्षण उन सारी चीज़ों से लड़ाई की है लेकिन कभी भी हार क्यों जाते हैं,क्योंकि हमारे अन्दर विकारयुक्त स्थिति है। हम भी वैसा ही कार्य कर रहे हैं जो लोग कर रहे हैं।
परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने का एकमात्र आधार है पवित्रता की शक्ति। और वो पवित्रता की शक्ति आती है आत्मा की ज्योति जगने से। आत्मा राम को परमात्मा राम से मिलने के बाद वो शक्ति और गहरी हो जाती है। ये है राम वाली असली दीवाली, जिसमें आत्मा चैतन्य रूप से उस परमात्मा राम के साथ जुड़ती है। और अपने इस दीपक को निरन्तर जगाये रखती है ताकि जितनी भी बाहर की परिस्थिति है उनको जीतकर अपने घर रूपी अयोध्या में प्रवेश करें। जहाँ पर कोई भी उसको हरा न सके।
अयोध्या का सीधा-सा अर्थ जहाँ कभी युद्ध नहीं होता। जहाँ पर कभी लड़ाई नहीं होती। तो ऐसे जगहों पर जाने के लिए, ऐसे स्थानों पर हम अपने स्थान को अयोध्या क्यों न बनायें! इन बड़ी-बड़ी कहानियों से, बड़ी-बड़ी किवदंतियों से सीख लेकर हम एक नया साम्राज्य बना सकते हैं। उस राम राज्य की दीवाली को अपनी दिनचर्या में शामिल करके मनायें तो शायद राम वाली असली दीवाली आपके साथ जुड़ जायेगी।

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