समय के पहले सर्व लगाव व झुकाव से मुक्त कर लेना ही समझदारी

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पेपर में पास होने के लिए तैयारी अभी ही करनी होगी। अन्यथा तो फेल होने से खुद को बचा नहीं पाएंगे।

अब मुझे बहुत आत्मग्लानि महसूस हो रही है इसीलिए कल से मैं भिक्षा के लिए नहीं जाऊंगा,भिक्षुक ने कहा। तो महात्मा बुद्ध ने कहा कि नहीं, अब तो तुम्हें खास जाना चाहिए। लेकिन कल तक जाने से पहले तुम अभ्यास करो। अपने मन को इतना शांत करो और अपने मन के हर संकल्प को सारा दिन देखते जाओ कि मेरे मन में क्या संकल्प चल रहे हैं। और अपने संकल्पों के ऊपर इतना अटेंशन रखो कि आपके मन के अंदर कोई भी ऐसा भाव उत्पन्न ना हो, ऐसा कोई भी विचार उत्पन्न ना हो, ऐसा तुम अभ्यास करो। उसने सारा दिन अभ्यास किया, सारा दिन अपने संकल्पों को देखते हुए मन को शांत करता गया।
दूसरे दिन जब फिर से भिक्षा मांगने के लिए गया उसी स्थान पर गया और जैसे ही उस बहन ने दरवाज़ा खोला तो उसने साक्षी होकर अपने संकल्पों को देखना शुरू कर दिया कि मेरे मन के अंदर किसी भी प्रकार के शुद्ध संकल्प के सिवाय कोई संकल्प उत्पन्न नहीं होना चाहिए और इतना शुद्ध संकल्प कि खाने के लिए कोई आशक्ति न हो। उसने खाली इतना कहा- भिक्षामदेही। बहन ने फिर उसको कहा अंदर आकर भोजन कर लीजिए उस समय भी साक्षी हो करके वह बैठा और मन में संकल्प किया कि जो जैसा खाना आज मुझे मिलेगा उसे स्वीकार करना है। उसने स्वीकार किया, उसके बाद बहन ने कहा तुम यहीं विश्राम करो तो उस समय भी उसने अपने मन को देखना आरंभ किया और अलग हो गया अपने आप से। मन में उठने वाले हरेक भाव को देखता रहा। शुद्ध भाव और शुद्ध भावना को जैसे सारे वातावरण के अंदर प्रवाहित करता रहा। फिर जब वहाँ से वापिस आया तो उस समय उस बहन ने कहा कि आज तुम अपनी स्थिति में पास हो गए। जब हम अपने अंतर के भाव को बहुत स्पष्ट देख सकते हैं, अपने संकल्पों को खुद अलग हो करके देख सकते हैं, और जब उसको देखेंगे तो नैचुरल है कोई भी जब नकारात्मक संकल्प नहीं होगा तो नकारात्मक भावना नहीं होगी, नकारात्मक दृष्टि नहीं होगी, नकारात्मक बुद्धि का इंटरफेयर नहीं होगा, तब हमारी स्थिति सतोप्रधान अवस्था वाली स्थिति हो जाएगी। इसीलिए बाबा कई बार कहते हैं कि साक्षी दृष्टा होने के लिए न्यारा और उपराम बनना बहुत ज़रूरी है। साधन-सुविधाओं से हमारा लगाव हो जाता है, चीज़-वस्तुओं से हमारा लगाव हो जाता है, उससे भी अपने आप को ऊपर कर देना ही साक्षी स्थिति है। अब इसी तरह हमारे वृत्ति और स्वभाव से भी झुकाव होता है। चाहे व्यक्ति के प्रति, कोई भी इंसान के स्वभाव संस्कार को देखते हुए या उसकी विशेषता को देखते हुए जब वो व्यक्ति बहुत अच्छा लगने लगता है कि यह व्यक्ति बहुत अच्छी सेवा करता है, इसके अन्दर बहुत विशेषताएं हैं, उसके अन्दर गुण बहुत हैं, इस तरह से उसके प्रति झुकाव हो जाता है। तब हम साक्षी दृष्टा नहीं हो सकते। इसलिए स्वभाव, लगाव, झुकाव, दबाव, प्रभाव की बातों से अपने आपको मुक्त रखने वाला ही साक्षी दृष्टा बन सकेगा।
तनाव, पुराना स्वभाव-संस्कार, प्रभाव, लगाव और झुकाव तो यह पांचों बातों से मुक्त जो हो जाता है वही उपराम या उससे न्यारा हो सकता है। वह सहज ही साक्षीदृष्टा स्थिति को क्रियेट कर लेता है। जिसकी बहुत काल तक यह स्थिति बनने लगेगी तब जाकर के हर अंतिम समय के पेपर से वो पास हो जायेगा, क्योंकि इन पांच रूपों से अंतिम समय में पेपर आने ही आने हैं। चारों तरफ का नकारात्मक वातावरण इतना होगा जो वह इफेक्ट करेगा, वो हमारे अंदर भी नकारात्मक संकल्प क्रिएट कर सकता है, हमने अपने संकल्पों पर अगर अभी ध्यान नहीं दिया, डिटैच होकर देखा नहीं तो नैचुरल है हमारी स्थिति को इफेक्ट करेगा। इसी तरह पुराने स्वभाव-संस्कार फुल फोर्स में आएंगे और दूसरों के भी टक्कर खायेंगे। उसके साथ में अगर टकरा गए तो भी फेल हो जाएंगे इसीलिए बाबा ने कहा जो ओरिज़नल सतोप्रधानता के संस्कार हैं, सात्विक संस्कार हैं उनको इमर्ज रुप में रखो। जितना ज्य़ादा उनको इमर्ज रखेंगे उतना इससे फ्री हो जाएंगे।

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