साल बीते, क्या सीखे – ब्र.कु.उर्वशी बहन,नई दिल्ली

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हाल ही में हमारे दो वर्ष कोरोना महामारी में गुज़र गए जिन्होंने हमें बहुत कुछ प्रेरणाएं दीं हमारे आने वाले वर्षों के लिए। बहुत लोग हिम्मत हार कर बैठ गए और बहुतों के दिल में आज भी मशाल जल रही है, और जलनी भी चाहिए क्योंकि जि़ंदगी का सार हारना और हार कर, थक कर बैठ जाना नहीं है। जि़ंदगी का सार है सामना करना, लडऩा, जीतना और अगर हार भी जायें तो भी फिर से उठना और फिर लडऩा। फौज़ी को देखा है कभी? क्या सीख मिलती है उससे? क्या वे अपनी सेना के सैनिकों को जब दम तोड़ते या घायल होतेे देखते हैं तो क्या वो स्वयं को भी समर्पित कर देता है अपने दुश्मन सेना के सामने या हार मानकर बैठ जाता है? नहीं ना, वो ऐसा तो हरगिज़ नहीं करता। वो लड़ता है अपने आखिर दम तक।
ऐसा ही हमें करना चाहिए। अगर हमारे अपने हमें छोड़कर भी चले गए तो क्या उनके गम में स्वयं हार कर बैठना सही है? ये समझदारी नहीं है। क्योंकि हमारा जीवन भी तो कर्मक्षेत्र है उस सैनिक की तरह। वहाँ(उस युद्ध के मैदान में) हमला होता है दूसरे देश की सेना का और यहाँ हमला होता है स्वयं की सेना का। स्वयं की सेना माना अपने ही मन, बुद्धि जिसके राजा हम स्वयं हैं और ये हमारी प्रजा है। वहाँ हमला करने वाले हथियार हैं- बंदूक, तोप और यहाँ हमला करने वाले हथियार हैं- व्यर्थ व नकारात्मक संकल्प क्योंकि यही तो हमें मार गिराते हैं। एक सैनिक तब तक नहीं हारता जब तक वो स्वयं से न हार माने चाहे फिर सामने से हमला कितना ही भयंकर क्यों न हो ठीक ऐसे ही यहाँ भी एक आत्मा तब तक नहीं हारती जब तक वो स्वयं से न हार मान ले। जैसे वहाँ के सैनिक की प्रतिदिन टे्रनिंग होती है और साथ ही साथ उनके भोजन का ख्याल हर वक्त रखना होता है। अब सवाल आता है कि हमारी टे्रनिंग और भोजन क्या है? आइए जानते हैं, देखिये मन का भोजन हमारे संकल्प, बुद्धि का भोजन है ज्ञान। हमारे मन का कार्य है सोचना, इसको हम रोक नहीं सकते परंतु हम इसको दिशा दे सकते हैं। इसकी दिशा हम हर रोज़ ज्ञानामृत का पान करने से बदल सकते हैं और ये ज्ञानामृत है मुरली, जो प्रत्येक दिन हमें, हमारे मीठे बाबा सुनाने आते हैं। वास्तव में यही ज्ञान ऐसा है जो हमें यथार्थ निर्णय लेने में मददगार है। अब हमारी टे्रनिंग है, हमारा योगाभ्यास। जितना हम मन, बुद्धि की ड्रिल करते हैं माना योग करते हैं उतना हम तंदरूस्त बनते हैं। और सरल शब्दों में कहेें कि जितना हम अपने मन की तार परमात्मा से जोड़ते हैंना ही हम शक्तिशाली बनते हैं। पिछले दो साल में जो व्यक्ति स्वयं के मन से जीत गया वो कोरोना से भी जीत गया था और जो स्वयं से हारा था वो कोरोना से भी हार कर दम तोड़ गया था।
पिछले दो साल में सब कैसे अस्त-व्यस्त था, न किसी को अपने कल की कल्पना थी और न ही अपने परिवार की, परंतु आज हम देखें तो सब कुछ फिर से सुधरने लगा है। जो जि़ंदगी अपनी पटरी से उतर चुकी थी वो आज पुन: समय रूपी इंजन लगाकर अपनी पटरी पर पहुंच रही है। कोरोना हमें हराकर, एक कोने में बिठाने नहीं आया था ये तो हम सभी को हिम्मत और विश्वास के पंख देने आया था कि समय कितना भी बदले परंतु आप ये दो पंख कभी मत खोना। कहते हैं किसी के वर्तमान को देख उसके भविष्य की कल्पना मत करना क्योंकि भविष्य में इतनी ताकत है कि वो कोयले की खान को हीरे में बदल सकता है। तो क्या हमारा जीवन नहीं बदल सकता! देखिये मेरा खुद का अनुभव ये कहता है कि समस्या आती ही जाने के लिए है परंतु हम ही उसे सदाकाल का समझ कर हिम्मत खो देते हैं। पहले भी न जाने कितनी महामारियां आई संसार में, तो क्या सभी सदाकाल के लिए रहीं? नहीं ना! वो 2,4,6 वर्षों में खत्म हो ही गयीं ना! सभी यही सिखाकर गयी कि समय भी अपना समय आने पर बदल ही जाता है। कुछ भी स्थाई नहीं है जीवन में।
जो भी हमारे जीवन में होता है सब कल्याणकारी है, ये लाइन भी सदैव याद रखिये। और हाँ जि़ंदगी कभी विद्यालय के अध्यापक की तरह सीधे-सीधे नहीं पढ़ाती, यह सदैव पहले परिस्थिति का उदाहरण देती तत्पश्चात् समझाती है ताकि आपको सदैव काल के लिए इसके पढ़ाये हुए पाठ याद रह सकें। अब आगे कभी परिस्थिति आये तो यही स्मृति रखना कि ये जि़ंदगी अब फिर से नया पाठ, नये उदाहरण के साथ समझा रही है और विशाल बुद्धि बन, धैर्यता से समझने का प्रयास करना और फिर एक दिन आप फतह का झंडा निश्चित रूप से लहरायेंगे, ये हमारा विश्वास है।

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