शक्तियों को सभी अनुभव करना है। बापदादा इसका भी त्याग कर यह भाग्य पाण्डवों और शक्तियों को वरदान में देते हैं। इसलिए शक्तियों की पूजा बहुत होती है। अभी से ही शक्तियों को भक्तों ने पुकारना शुरू कर दिया है। आवाज़ सुनना आता है? जितना आगे चलते जायेंगे उतना ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कोई मूर्ति के आगे भक्त लोग धूप जलाते हैं व गुणगान करते हैं, वह प्रैक्टिकल खुशबू अनुभव करेंगे और उनकी पुकार ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कि सम्मुख पुकार। जैसे दूरबीन द्वारा दूर का दृश्य कितना समीप आ जाता है। वैसे ही दिव्य स्थिति दूरबीन का कार्य करेगी। यही शक्तियों की स्मृति की सिद्धि होगी और इस अन्तिम सिद्धि को प्राप्त होने के कारण शक्तियों के भक्त शक्तियों द्वारा रिद्धि-सिद्धि की इच्छा रखते हैं। जब सिद्धि देखेंगे तब तो संस्कार भरेंगे ना! तो ऐसा अपना स्मृति की सिद्धि का स्वरूप सामने आता है? जैसे सन शोज़ फादर है, वैसे ही रिटर्न में फादर का शो करते हैं? बापदादा प्रत्यक्ष रूप में यह पार्ट नहीं देखते, लेकिन शक्तियों और पाण्डवों का यह पार्ट है। तो इतना वफादार और फरमानबरदार बनना है जो एक सेकण्ड भी, एक संकल्प भी फरमान के सिवाय न चले। इसको कहते हैं फरमानबरदार। और वफादार किसको कहते हैं? सम्पूर्ण वफादार वे कहलायेंगे जिसको संकल्प में भी व स्वप्न में भी सिवाय बाप के और बाप के कत्र्तव्य व बाप की महिमा, बाप के ज्ञान के और कुछ भी दिखाई न दे, ऐसे को सम्पूर्ण वफादार कहते हैं।
एक बाप दूसरा न कोई – दूसरी कोई बात स्वप्न में, स्मृति में दिखाई न दे। उसको कहते हैं सम्पूर्ण वफादार। ऐसे फरमानबरदार की प्रैक्टिकल चलन में परख क्या होगी? सच्चाई और सफाई। संकल्प तक सच्चाई और सफाई चाहिए, न सिर्फ वाणी तक। अपने आप को देखना है कि कहाँ तक वफादार और फरमानबरदार बने हैं? अगर एक संग सदा बुद्धि की लगन है तो अनेक संग का रंग लग नहीं सकता। बुद्धि की लगन कम होने का कारण अनेक प्रकार के संग के आकर्षण अपने तरफ खींच लेते हैं। तो और संग तोड़, एक संग जोड़ – यह पहला-पहला वायदा है। उस वायदे को निभाना, इसको ही सम्पूर्ण वफादार कहा जाता है।