मन की बातें – राजयोगी बी के सूर्य भाई जी

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प्रश्न : मेरा नाम पुनीत है। मैं शर्मीले नेचर का हूँ। मैं इंट्रोवर्ट हूँ इसीलिए ऑफिस में मेरा सब मज़ाक उड़ाते हैं और इसके कारण मैं कई नौकरी छोड़ चुका हूँ। कृपया बतायें कि ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तर : नौकरी छोडऩे की तो कोई बात नहीं। जब वो मज़ाक उड़ायें तो आप भी मुस्कुरा दें। इसका अच्छा तरीका ये है। जितना आप उनकी बातों से चिड़ेंगे उतना वो आपको चिड़ायेंगे। प्रैक्टिकल तरीका इसको लाइटली लें और मुस्कुराकर आगे बढ़ें और अपना काम चालू रखें। तो वो समझ जायेंगे कि हमारी बातों से इसको कोई फर्क नहीं पड़ता,इसको छोड़ दो। ये साइकोलॉजी का प्रयोग आपको अवश्य करना चाहिए। लेकिन आपकी जो शर्मीली नेचर है, आप जो किसी से मिलते-जुलते नहीं इसके लिए आपको कुछ प्रैक्टिस अवश्य कर लेनी चाहिए। इसकी जो प्रैक्टिस है हमारे ईश्वरीय ज्ञान में वो है स्वमान की प्रैक्टिस। स्वमान से हम खुल जाते हैं। हमें अपनी विशेषताओं का आभास होता है, हमें अपनी शक्तियों का आभास होता है। वो जागृत होने लगती हैं। और ये जो शर्मीली नेचर है वो समाप्त होने लगती है। हमारे यहाँ सेवाओं के बहुत प्रोग्राम चलते हैं वहाँ बहुत एग्ज़ीबिशन भी लगते हैं तो वहाँ जाकर आप उनमें हिस्सा लेने लगें और चित्रों पर जब आप समझायेंगे तो आपमें जो शर्मीलापन है वो थोड़ा खुलने लगेगा। थोड़ा-सा लोगों से आपस में घुलने-मिलने लगें। तो आप निर्भय भी बन जायेंगे और पॉवरफुल भी बन जायेंगे। मुस्कुराना भी सीख लेंगे और दूसरों से बात करने में हिचक भी नहीं होगी।

प्रश्न : मैं रजनी चंबा से हूँ। मैं कुछ समय से ब्रह्माकुमारीज़ विद्यालय में जा रही हूँ। योग में मेरी रूचि है लेकिन योग मेरा लगता नहीं, और एकाग्रता भी नहीं है। कृपया बतायें कैसे योग करें?
उत्तर : कोई व्यक्ति ऐसा होता है बचपन से ही उसका स्वभाव बहुत अच्छा, उसकी नेचर बहुत अच्छी, खुश रहने की नेचर, सरल स्वभाव। एकाग्रता बहुत अच्छी है। ऐसे लोग तो राजयोग के मार्ग पर आते ही तुरंत सफल होने लगते हैं। लेकिन ऐसे बहुत हैं जो अपने साथ लाये हैं निगेटिविटी। जिनका बचपन से लेकर और युवा काल बुरे संग में बीत गया है, उन्होंने मन को बहुत भटका दिया है। कुछ गलत काम भी कर लिए हैं। कुछ लोग तो हमारे पास ऐसे आते हैं जिन्होंने जीवनभर शराब पी है। एकाग्रता बिल्कुल नहीं होती। शराबी का ब्रेन एकाग्र नहीं हो सकता। वो तो विचलित होता रहेगा। आपको पहला ध्यान तो ये देना है कि 4 बजे सूर्योदय से बहुत पहले उठना है। क्योंकि सवेरे का प्रकृति का जो सौन्दर्य है वो सुन्दर होता है। और दूसरा परमात्म शक्तियां हमें बहुत मिलती हैं। यानी हमारा परमपिता हमें बहुत कुछ देने के लिए तत्पर रहता है। सारा दिन नहीं, सारा दिन तो हम भी अपने में बिज़ी हैं। उसकी ओर देखने का कम मौका मिलता है। सवेरे तो हम भी उसकी ओर देखते हैं। और वो भी बहुत सारे वरदान, बहुत सारी सिद्धियां, बहुत सारी शक्तियां हमें देने के लिए तत्पर रहता है। उसका फायदा हमें मिलेगा। अगर आपका योग न लगे तो आप ईश्वरीय महावाक्यों का अध्ययन कर लें या फिर उठते ही शांत में 108 बार लिखें कि मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। लिखते-लिखते आपके ब्रेन को बहुत एनर्जी जायेगी और दो-चार दिन में आपको फील होने लगेगा कि मन एकाग्र होने लगा है। आपेही योगयुक्त हो जायेगा। योग करने को मन करेगा। जब आप ऐसा लिखेंगी तो आपको एक सुख का आभास होने लगेगा। और बहुत अच्छी फीलिंग आपको योग में मदद करेगी। आप रोज़ ईश्वरीय महावाक्य सुनें। क्योंकि उससे सुन्दर विचार हमें मिलते हैं। कई तो ऐसे मिलते हैं जो हमारी बुद्धि की गांठों को खोल दे। उसको सुनने से आपको सुख भी मिलेगा, आपको आनंद भी आयेगा। पाँच-पाँच, दस-दस मिनट इस तरह धीरे-धीरे प्रैक्टिस करें। दस-दस मिनट तीन बार या पाँच बार करें। इस तरह आप प्रैक्टिस करें तो सबकुछ सहज होता चला जायेगा।

प्रश्न : मेरा नाम सतीश साहू है। मेरी पत्नी बहुत क्रोधी स्वभाव की है। यदि उनकी बात न मानी जाये तो गुस्से में बिल्कुल अन्कंट्रोल्ड हो जाती है। घर के सामान तोडऩे-फोडऩे लगती हैं, अपशब्द बोलती हैं, बच्चों को भी मारने लगती हैं और कभी-कभी मुझे और मेरी माँ को भी मार देती हैं। तो आए दिन क्लेश से अच्छा क्या मुझे तलाक पर विचार करना चाहिए?
उत्तर : हर व्यक्ति क्रोध करने के बाद पश्चाताप की अग्नि में जलता है और अपने किए क्रोध पर पछताता है। क्रोध तो एक बहुत बुरी चीज़ है इससे हमें बचना ही चाहिए। अगर आप राजयोग का अभ्यास करते हैं, अगर नहीं तो किसी भी सेवाकेन्द्र पर जाकर सीख लें और उस आत्मा को रोज़ 15 मिनट बहुत अच्छे शान्ति के वायब्रेशन दें। राजयोग में इन सबका बहुत अच्छा समाधान है। रोज़ सवेरे राजयोग का अभ्यास कर लें, शिव बाबा से कनेक्शन जोड़ें, कभी फील करें मैं परमधाम में उसकी किरणों के नीचे हूँ, उसकी सारी शक्तियां, किरणें मुझ में समा रही हैं। कभी अभ्यास करें कि मैं आत्मा भृकुटि में हूँ, मैं पीसफुल हूँ, मैं इस देह से न्यारी हूँ, बहुत गुड फीलिंग इस डिटेचमेंट की होनी चाहिए। ये देह अलग है और मैं आत्मा अलग हूँ, फिर आप अपनी पत्नी को इमर्ज करेंगे, देखेंगे ये आत्मा है, फिर उसको संकल्प देंगे तुम तो भगवान की संतान हो, तुम्हारा पिता तो शांति का सागर है। तुम भी शांत स्वरूप हो, शांत हो जाओ। पाँच बारी ये संकल्प दे दें कि तुम तो शांत स्वरूप हो, शांत हो जाओ… इसका इफेक्ट अच्छा होगा और ये काम रोज़ सेम टाइम पर करना है। कम से कम 21 दिन तक। लेकिन अगर केस ऐसा बड़ा है, नहीं ठीक हो रहा तो आगे भी करना पड़ेगा। इससे क्या होगा जब वो सोके उठेंगी उसके मन में वही विचार आयेंगे जो यहाँ से भेजे गए थे। फिर उनको भी संकल्प आयेगा कि मैं तो क्रोध करती हूँ ये तो अच्छा नहीं है, हम रियलाइज़ करा सकते हैं, दूसरे की पॉवर ऑफ रियलाइज़ेशन को बढ़ा सकते हैं कि ये तो बिल्कुल अच्छा नहीं है। इसका मेरे बच्चों पर क्या असर होगा। वो कहीं क्रोधित होकर लड़ाई-झगड़ा करने लगें, मारामारी करके घर में आयें, कोर्ट केस हो जाये। कुछ और बुरा हो जाये इसलिए मुझे शांत रहना चाहिए। तो हर रोज़ जब इस तरह से शांति के वायब्रेशन उस आत्मा को जायेंगे तो इसका परिणाम बहुत पॉजि़टिव होगा।

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