मुख पृष्ठब्र. कु. सूर्यईश्वरीय यज्ञ सेवा से बनता श्रेष्ठ भाग्य -ब्र. कु. सूर्य

ईश्वरीय यज्ञ सेवा से बनता श्रेष्ठ भाग्य -ब्र. कु. सूर्य

यज्ञ सेवाओं को सफल करना, यज्ञ सेवाओं को निर्विघ्न रूप से चलाना, यज्ञ में अगर कोई विघ्न डाल रहा है उन विघ्नों को समाप्त कराना, यज्ञ में श्रेष्ठ पुरूषार्थ के वायब्रेशन्स फैलाना ये इस यज्ञ को सफल करने का सबसे बड़ा आधार है।

पिछले अंक में आपने पढ़ा कि मान लीजिए पानी की कमी पड़ रही है तो हमने कम पानी से काम चलाया। बचे हुए पानी से आने वाले को सुख मिला ये हमारी बचत हो गई है। यह बहुत बड़ा पुण्य जमा होगा। कहीं कोई चीज़ वेस्ट हो रही है भोजन में, सब्जियों में हमने उस वेस्टेज को ठीक किया, वो हमारा धन जमा हो जायेगा। तो हम तन से भी खूब सेवा करें, मन से भी खूब सेवा करें, धन भी जितना जो लगा सकते हैं वो इस महान कार्य में लगायें। अब आगे पढ़ें…
कई सोचते हैं हमारे पास तो कम पैसा है। बाबा ने कहा गरीब का एक रूपया और साहूकार के सौ बराबर माने जायेंगे। कहीं कहा साहूकार के हज़ार एक रुपये के बराबर होगा? यहां भावना देखी जाती है। भगवान अगर चाहे तो धन की बरसात नहीं कर सकता क्या? लेकिन वो गरीबों की पाई-पाई से इस यज्ञ को सफल करता है। ताकि उन गरीबों का श्रेष्ठ भाग्य बन सके। अगर वो भावनाओं से अपना धन सेवा में अर्पित करते हैं तो बहुत बड़ा भाग्य बनता है। यज्ञ सेवाओं को सफल करना, यज्ञ सेवाओं को निर्विघ्न रूप से चलाना, यज्ञ में अगर कोई विघ्न डाल रहा है उन विघ्नों को समाप्त कराना, यज्ञ में श्रेष्ठ पुरूषार्थ के वायब्रेशन्स फैलाना ये इस यज्ञ को सफल करने का सबसे बड़ा आधार है। कई लोग मान लो सवेरे नहीं उठते, फोन पर रहते हैं तो इसे यज्ञ कमज़ोर होगा, उनका भाग्य भी नष्ट होगा। हालांकि यज्ञ कभी कमज़ोर होता नहीं। क्योंकि यज्ञ को स्तम्भ बनाने वाली बहुत आत्मायें यहां हैं। उनके योग के वायब्रेशन्स, उनकी प्युरिटी इस यज्ञ को बहुत स्ट्रॉन्ग स्तम्भ की तरह बनाए हुए है। लेकिन हमारा ये कत्र्तव्य है हम इस यज्ञ में सुख-शांति, प्रेम-खुशी का माहौल बनाए रखें। समस्या क्रिएट न करें और अगर कोई क्रिएट करता है तो उसे सहज भाव से समाप्त करें। सबको अपनी-अपनी सेवाएं हैं, अपनी-अपनी सेवाओं को इस तरह पूर्ण करना कि कोई कम्पलेन्ट न हो, कोई शिकायत न करे। ये है सेवाओं की सम्पूर्ण सफलता। और किसी की सेवाओं में बार-बार शिकायत होती रहे, बार-बार विघ्न पड़ता रहे, लोग संतुष्ट न हो तो उस सेवा का फल भी बहुत कम हो जाता है। मन लगाकर हम सेवा करें, मन से बहुत अच्छे वायब्रेशन्स हम चारों ओर फैलायें। धन के बारे में हमने बहुत कुछ कह ही दिया है।
कई लोग सोचते हैं कि हमारे पास तो वाचा की सेवा है ना तो और सेवा हम क्यों करें! हम तो वाचा में या मैनेजमेंट में बहुत ज्य़ादा बिज़ी रहते हैं। हमारा तो पूरा समय इन सेवाओं में सफल हो रहा है। ठीक बात है, सेवाओं में पूरा समय, पूरा जीवन सफल हो रहा है लेकिन अगर श्रेष्ठ भाग्य को पाना है तो यज्ञ सेवा भी आवश्यक है। योग के द्वारा यज्ञ में वायब्रेशन्स फैलाना, यज्ञ के वातावरण को मोस्ट पॉवरफुल बनाना, टकराव से मुक्त रखना ये भी परम आवश्यक है। ये भी बहुत महत्वपूर्ण जि़म्मेदारी है। कई लोग केवल वाचा की सेवा में रहते हैं लेकिन मैंपन बहुत रहता है। मेरा ही नाम हो, मैं ही ये करूँ, मेरे बिना कोई न करे, मेरे से आगे कोई नहीं जाना चाहिए, सारे चांस मुझे ही मिलने चाहिए या मुझे ये चांस न मिले, मुझे कोई पूछता नहीं है, निराशा वाले संकल्प। इससे भी हमें कोई विशेष ज्य़ादा फायदा नहीं होगा।
हम ध्यान दें, जो सेवा हमें मिली है उसको हम यदि सम्पूर्ण करते हैं, किसी को कोई चीज़ कहने की ज़रूरत न पड़े, उसमें यदि हम इकानामी करते हैं, उसके द्वारा सभी आत्मायें संतुष्ट हो जाएं तो ये उस सेवा की बहुत बड़ी सफलता है। किसी के पास कोई भी डिपार्टमेंट है और कोई चीज़ लेने चला गया तो चीज़ भी नहीं दी और डांट भी लगा दी। इससे यज्ञ के वातावरण में निगेटिविटी फैलती है।
तो आओ हम सभी यज्ञ वत्स इस यज्ञ को बहुत स्ट्रॉन्ग बनाएं, ऐसा पॉजि़टिव, पॉवरफुल और प्युअर वायब्रेशन्स यहां से फैलाएं कि सारे संसार में जो माया है, जो पाप बढ़ रहा है, जो हिंसक वृत्ति बढ़ रही है वो समाप्त हो जाए। सभी में आपस में प्रेम बढ़े, सभी एक-दूसरेको सम्मान दें। भारत की जो प्राचीन परम्पराएं बताई हैं, सभ्यताएं हैं उनकी पुनस्र्थापना हो जाए। तो ये हम यज्ञ निवासियों का बहुत बड़ा कत्र्तव्य है क्योंकि संसार हमें देखता है, हमें फॉलो करता है तो वो हमसे अच्छा-अच्छा ही सीखकर जाए। यही हमारी जीवन की और यज्ञ की सम्पूर्ण सफलता है।

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