18 जनवरी को एक बार फिर हम पिताश्री, प्रजापिता ब्रह्मा के बहुमुखी दिव्य जीवन का पुन: स्मरण कर देखेंगे कि उनके प्रेरणादायक जीवन से प्रभावित होकर हमें क्या दिव्य उपलब्धियां हुई। परंतु जब हम उनके जीवन से संबंधित संस्मरणों का मन में प्रादुर्भाव करते हैं तो देखते हैं कि इतनी सारी विशेषताएं इक_ी हो, आकर प्रगट होती हैं कि ये सोच पाना भी मुश्किल हो जाता है कि इनमें से किसको प्राथमिकता देकर हम उस पर विचार करें। अत: विशेषताओं के क्रम को एक ओर रखकर हम इस लघु संपादकीय में केवल एक दो ही ऐसे बिन्दुओं पर विचार करेंगे जिनसे उनके व्यक्तित्व, पुरुषार्थ या दिव्यता के कुछ पहलुओं का हमें सही महत्त्व ज्ञात होता है।
एक बात तो ये है कि जो लोग उनके निकट संपर्क में आए और जिन्होंने निष्पक्ष भाव से उनके मुखारविंद द्वारा ईश्वरीय ज्ञान का थोड़ा भी श्रवण कर उस पर मनन किया उनके जीवन में आशातीत परिवर्तन हुआ। जो पहले ये सोचे बैठे हैं कि वे पवित्र बन ही नहीं सकते या अपनी किन्हीं आदतों और व्यसनों को छोड़ ही नहीं सकते या कि वे परमात्मा की अनुभूति कम से कम इस जीवन में तो कर ही नहीं सकते, उनके जीवन में आध्यात्मिक परिवर्तन का एक ज्वार-भाटा आ गया। न केवल उन्होंने अपने जीवन में पवित्रता का वरदान प्राप्त किया और ईश्वरानुभूति तथा आनंद का रसास्वादन किया बल्कि आगे चलकर वे दूसरों के जीवन में भी ऐसा परिवर्तन लाने के योग्य बने। कुछेक वृतांत तो ऐसे हुए कि कुटुम्ब परिवार के सभी सदस्यों में एक अनुपम परिवर्तन आया और उन्हें ऐसा अतीन्द्रिय सुख मिला तथा वे आनंद से ऐसे विभोर हो गए कि समस्त परिवार ने ही अपना जीवन ईश्वरीय सेवा में जुटा दिया। उन्होंने तन-मन-धन सभी को विश्व सेवा के लिए प्रभु समर्पण कर दिया। संसार भर के धार्मिक, राजनीतिक या सामाजिक इतिहास में ऐसा उदाहरण ढूंढऩे से भी नहीं मिलेगा कि एक नहीं बल्कि कई परिवारों ने अपना सबकुछ समेटकर अपना सारा जीवन त्याग और तपस्या से व्यतीत करते हुए जन-जन को ईश्वरीय सुख की प्राप्ति के योग्य बनाने के कार्य में लगा दिया हो और स्वयं अपने देह के नातों से अतीत होकर एकसाथ रहे हों। भारत की स्वतंत्रता के संग्राम में कुछेक व्यक्तियों ने अपना सब कुछ देश की स्वतंत्रता के लिए लगा दिया परंतु केवल दो चार परिवारों को छोड़कर कुछ ऐसे परिवारों का उदाहरण नहीं है कि जिनके सभी सदस्य समर्पित हुए हों और इस पर भी ऐसा परिवार तो एक भी नहीं होगा कि जिसके सदस्य देहातीत दृष्टि से एक साथ कार्यरत रहे हों तथा जिन्होंने चर्म चक्षुओं से दिखाई न देने वाले परमात्मा के प्रति स्वयं को समर्पित किया हो, नैतिक मूल्यों के विकास के लिए और जन-जन को प्रभु संदेश देने के लिए अपने जीवन की भेंट की हो।
अन्यश्च, भारत की स्वतंत्रता संग्राम में तो केवल कुछ एक महिलाओं ने भाग लिया था। अधिक संंख्या में तो गांधी के ही व्यक्तित्व का ये प्रभाव था कि कुछ परिवार, कुछ महिलाएं और इतने सारे लोग उसमें जी जान लगाकर कार्य कर रहे थे। परंतु प्रजापिता ब्रह्मा के व्यक्तित्व की तो बात ही निराली है। उन्होंने विशेषतया मातृ-शक्ति को जागृत किया, त्याग और तपस्या पर बल दिया, सेवा के संस्कार को उजागर किया और इन चर्म-चक्षुओं के सामने अदृश्य परंतु हर मन में छिपे हुए काम, क्रोध आदि शत्रुओं से संग्राम करने के लिए रूहानी वीरों को तैयार किया। ऐसा शक्ति दल किसी ने तैयार किया हो और मनोविकारों का बिस्तरा गोल करने की चुनौती किसी ने दी हो तो कोई बताए? भारत से अंग्रेजों को निकालने के लिए क्रभारत छोड़ोञ्ज नामक घोषणा की गई और आंदोलन छेड़ा गया परंतु मनोविकारों को क्रविश्व छोड़ोञ्ज के उद्देश्य वाला एलान किसी ने नहीं किया। नि:संदेह, ब्रिटिश साम्राज्य भी शक्तिशाली था परंतु माया का साम्राज्य तो अत्यंत शक्तिशाली है- ऐसा कि सभी उसकी सेना में हैं। उस पर विजय पाने की दुदुम्भी तो प्रजापिता ब्रह्मा ही ने बजाई। यों संसार में अनेक धर्म स्थापक हुए हैं जिनके व्यक्तित्व से काफी लोग प्रभावित हुए परंतु कौन है जिसने योजनाबद्ध रीति से कन्याओं-माताओं को अग्रिम पंक्ति में रखकर माया की मजबूत बेडिय़ों को तोडऩे का व्रत लिया हो और स्थाई और सुचारू रूप से इस कार्य को आगे बढ़ाया हो?
विश्व के इतिहास में कई ऐसे भी धर्म प्रचारक हुए हैं जिन्होंने या जिनके शिष्यों ने देश की सीमाओं को पार करके अन्य देशों में अपने मन्तव्यों का प्रचार किया परंतु उनके इस प्रचार से कितने ऐसे लोग तैयार हुए जिन्होंने दृढ़तापूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन, आहार, विहार, व्यवहार तथा आचार, संग और अध्ययन की पवित्रता का पालन किया और जिन्होंने योगयुक्त होकर ईश्वरानुभूति की तथा माया को चुनौती दी कि वह संसार छोड़ दे। यह पिताश्री के त्याग और तपस्या एवं पवित्रता तथा आत्मनिष्ठा ही का फल था कि अनेकानेक परिवारों और नर-नारियों ने अपना जीवन ईश्वरीय सेवा में लगा दिया। जीवन एक बहुत बड़ी और मूल्यवान निधि है। अत: समस्त जीवन को एक ही लक्ष्य के प्रति लगा देना और स्वेच्छा से स्वयं को अनेक व्रतों में संकल्पबद्ध करके उसी में जीवन लगा देना कोई मासी का घर नहीं है। यह तभी संभव है जब जीवन में नित्य प्रगति और प्रेरणा का स्रोत था। वह पवित्रता, त्याग, तपस्या, सेवा का चतुर्मुखी मूर्त रूप था। स्वयं को तथा जगत को बदल देने का दृढ़ संकल्प लिया। ऐसे हम सबके अति स्नेही, अति प्यारे, ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त दिवस पर, उन जैसा बनने का दृढ़ संकल्प लेकर प्यार का सबूत दें।