बाबा ने ज्ञान रत्नों से श्रृंगार ब्रिह्माकुमारी संस्था की मुख्य प्रशासिका दादी रतनमोहिनी ने अपने अनुभव में बताया कि जब मैंने पहली बार ब्रह्मा बाबा को देखा तो मुझे बाबा में विष्णु का साक्षात्कार हुआ। मुझे लगा कि शायद मैं स्वप्न देख रही हूँ, लेकिन वो स्वप्न तो नहीं था। वास्तव में बाबा साक्षात विष्णु स्वरूप दिखाई देते थे। बाबा हम छोटे बच्चों को हर बात बड़े प्यार से सिखाते थे। गलती होने पर भी बाबा ने हमें कभी भी नहीं डांटा और ही प्यार के सागर बाप ने हमें बड़े प्यार से राजकुमारी की तरह पालना दी। शिक्षाएं भी बहुत प्यार से समझाते थे। जिन्हें हम सहर्ष स्वीकार करते थे। यज्ञ की हर प्रकार की सेवा बाबा स्वयं खुद करके हमें सिखाते थे। बाबा को देखकर हम भी चाहे कर्मणा, चाहे वाचा, छोटी-बड़ी सेवा बड़े प्यार से करते थे, क्योंकि मेरा लक्ष्य था कि मुझे इस अविनाशी रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ में सम्पूर्णतया स्वाहा होना है।
हमें तपस्वीमूर्त बनाया
हम आत्माओं को शक्तियों से तथा गुणों से सम्पन्न बनाने के लक्ष्य से खास वतन से शिवबाबा ने तपस्या अर्थात् भी का प्रोग्राम भेजा। हम दिन-रात योगाभ्यास करते थे। कभी-कभी 8-8 घंटे भी तपस्या करते थे। जिसमें फरिश्तेपन की स्थिति का तथा शक्तिशाली स्थिति का अनुभव होता था। मैं वो ही शक्ति हूँ जिसकी मन्दिरों में पूजा-अर्चना होती है, ऐसा स्वयं को शक्ति स्वरूप अनुभव होता था। बाबा हमें भविष्य में होने वाली घटनाएं सुनाते थे कि कैसे विनाश होगा, कैसी भयानक परिस्थितियां पेपर के रूप में आपके सामने आयेंगी और कैसे उस समय तुम्हें अपनी शक्तिशाली अचल-अडोल स्थिति रखनी होगी। हम इस योग की भी में विशेष मौन भी रखते थे। जिससे हमें योगाभ्यास में सुन्दर अनुभूतियां होती थीं। भ_ी में स्वर्गिक जीवन के अनोखे दृश्य भी दिखाई देते थे जिससे बुद्धियोग पुरानी दुनिया से स्वत: ही हटता था। वही कठिन तपस्या जो बाबा ने
14 वर्ष के कालावधि में कराई, जीवन में मददगार बन गई। उससे योग हमें सहज अनुभव होता है।
बाबा ने हमें ज्ञान रत्नों का दान करना सिखाया
बाबा सदैव कहते थे,बच्चे, ये एक-एक ज्ञान रत्न अमूल्य है। जो इन्हें धारण करेगा वो कौड़ी से हीरे तुल्य बन जाएगा। जितना तुम महादानी बनकर अनेकों को ये खज़ाना बांटोगे उतनी ही ये वृद्धि को पायेगा और अनेकों की दुआयें तुम्हें आगे बढ़ायेंगी। कया