खुशी से जीने में ही है जीवन जीने की कला

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गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। वह दुनिया के सबसे बदकिस्तम लोगों में से एक था। सारा गाँव उसकी अजीबोगरीब हरकत से थक गया था। क्योंकि वह हमेशा उदास रहता था। वह लगातार शिकायत करता था और हमेशा खराब मूड में रहता था। जितना अधिक वह जीवित रहा, उतना ही वो दु:खी रहता और उसके शब्द उतने ही जहरीले थे। लोग उससे बचते थे, क्योंकि उसका दुर्भाग्य संक्रामक हो गया था। उससे जो भी मिलता उसका दिन अशुभ हो जाता। उसके बगल में खुश रहना अस्वाभाविक और अपमानजनक भी था। इतना ज्य़ादा दु:खी होने की वजह से उसने दूसरों में दु:ख की भावना पैदा की। लेकिन एक दिन, जब वह अस्सी साल के हुए, एक अविश्वसनीय बात हुई। ये बात लोगों में आग की तरह फैल गयी।
”वह बूढ़ा आदमी आज खुश था, वह किसी भी चीज़ की शिकायत नहीं कर रहा था, बल्कि पहली बार वो मुस्कुरा रहा था, और यहाँ तक कि उसका चेहरा भी तरोताज़ा दिखायी पड़ रहा था।” ये देख कर पूरा गांव उसके घर के सामने इक_ा हो गया और सभी ने बूढ़े आदमी से पूछा कि तुम्हें क्या हुआ है? जवाब में बूढ़ा आदमी बोला- क्रक्रकुछ खास नहीं। अस्सी साल से मैं खुशी का पीछा कर रहा हूँ, और ये बेकार था, मुझे खुशी कभी नहीं मिली। और फिर मैंने खुशी के बिना जीने और जीवन का आनंद लेने का फैसला किया। इसलिए मैं अब खुश हूँ।”

सीख: इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि खुशी का पीछा मत करो। जीवन का आंदन लो।

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