सत्य… सत्य ही रहता है

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समाज किसी को भी तुरंत अपनाने को राज़ी नहीं होता। हमेशा भावनात्मक बहाव में या अपनी शक्ति की कमी के कारण या धर्म के बहाव में बिना कुछ सोचे-समझे विरोध करना, ये हमारी नियति है। और इसी नियति की वजह से हम दु:खी हैं। अगर ये दुनिया में कहा गया है कि परमात्मा ने अपने जैसा इंसान बनाया, तो कुछ तो इसमें सच्चाई होगी। वैसे इंसान दिखने भी तो चाहिए। वैसे दिखाई नहीं दे रहे हैं। क्योंकि जब ऐसे इंसान होंगे, तो हमारे जैसे नहीं होंगे। इसलिए सत्य तो सत्य है। उसमें कुछ भी मिलावट नहीं हो सकती। सबको पता है, पत्थर में भगवान नहीं होते। सबको पता है भगवान इधर-उधर नहीं हो सकते। फिर भी कोई भी इस चक्रव्यूह से बाहर निकले तब तो समझे ना!
मूर्ति पूजक बहुत हुए इस संसार में, और उनकी भक्ति भी बहुत प्रगाढ़ थी। लेकिन वे सबके लिए हर जगह प्रसिद्ध नहीं हुए। कारण, सही रूप से उन्होंने भगवान का सिमरण नहीं किया। कोई आंचलिक स्तर पर, कोई प्रादेशिक स्तर पर, तो कोई राष्ट्रीय स्तर पर ज़रूर प्रसिद्ध हुए होंगे, लेकिन उनका उदाहरण भक्ति हेतु थोड़ा बहुत दिया जाता है, उन्हें पढ़ाया नहीं जाता। पढ़ा या पढ़ाया उनको जाता है, जो हमेशा सत्य होता है, सत्यता की बात करता है, सत्यता के साथ रहता है और सत्य को जीता है। अर्थात् सत्य शुरू में ज़रूर स्वीकार्य नहीं होता लोगों को, लेकिन बाद में उनके गुण सभी को बहुत आकर्षित करते हैं। इसीलिए जितने भी वास्तविक संत-महात्मायें हुए, उन्हीं को आज पाठयक्रमों में शामिल कर पढ़ाया जाता है, औरों को नहीं। सत्य को पहचानना पहली वरियता, उसपर अमल करना दूसरी, और यही इन संतों ने किया। आज भी कुछ जागृत लोग हैं, जो इन आडम्बरों का विरोध करते तो हैं, लेकिन अपने निजी स्वार्थ के लिए।
सत्य क्या है? सत्य की परिभाषा क्या है? सत्य जो सर्व स्वीकार्य हो, मान्य हो वो होता है ना! तो आप अपने से शुरुआत करें, देखें कि क्या आप सभी को मान्य हैं, स्वीकार्य हैं? हमारे हिसाब से तो नहीं। क्योंकि सभी को आपसे कुछ न कुछ शिकायत ज़रूर है। इसका मतलब कुछ झूठ है जो हमारे साथ जुड़ा हुआ है। तभी तो लोग हमसे संतुष्ट हैं। सब लोग सत्य सुनना चाहते हैं, सत्य के साथ रहना चाहते हैं, सत्य बोलने के लिए कहते हैं, लेकिन आस-पास का माहौल देखते हुए उसमें ढलने के कारण उसको स्वीकार करते हुए कह देते हैं कि आज तो झूठ का बोलबाला है, सच्चे का मुँह काला है। इसका मतलब आज जो सच बोले वो इस दुनिया से कहीं और डोले। लोग उसे अपनी बिरादरी का नहीं मानते। कहते हैं ये तो इस दुनिया में रहने लायक नहीं हैं, ये तो राजा हरीशचन्द्र है। इसका मतलब आज भी राजा हरीशचन्द्र सत्य का एक मिसाल है, जो सबके लिए एक उदाहरण है। इसलिए सच क्या है? क्यों सबको इतना आकर्षित करता है? आप भी सोचो, हम भी सोचेेंगे।
उपरोक्त बातों से आपको ये नहीं लगता कि जिन्होंने अपने ऊपर काम किया, सत्य को जाना, उस परम सत्य को पहचाना, अपने दिल की सुनी, समाज, मान्यता, आडम्बर का पुरजोर विरोध किया, लोगों ने उन्हीं को स्वीकार किया, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति का हो। आप हमारे सामने बैठकर परम सत्य के बारे में बहस को लेकर विरोध ज़रूर कर सकते हैं, लेकिन आप इन सब आत्माओं को स्वीकार तो करते हैं ना! ये है सत्य और उससे जुड़ी हुई एक अद्भुत, अकल्पनीय मान्यता, जिसे सब स्वीकार करेंगे ही करेंगे। और यही परमात्मा चाहता है कि बहुत कम लोग मुझे और तूझे समझ पायेंगे। क्योंकि सत्य की राह पर चलना बहुत आसान होता है, क्योंकि इस राह पर भीड़ कम होती है। आज हम भीड़ में भेड़ चाल चल रहे हैं, क्योंकि हम डर रहे हैं। अरे भाई! कुछ अलग दिखना चाहते हो और देखना चाहते हो, तो कुछ अलग हटकर, सत्य को पहचानकर उसे अपनाना पड़ेगा।

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