बाप के प्यार का रिटर्न है… स्वयं को टर्न करना

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देखो, बाबा का हम बच्चों से कितना प्यार है। बच्चों की ज़रा भी कमी देख नहीं सकता है। जिससे भी प्यार होता है, उसकी छोटी-भी कोई ऐसी-वैसी बात सुनेंगे तो बुरा लगेगा। आपकी नहीं है, है दूसरे की लेकिन ऐसी बुरी लगेगी, जैसे मेरी है। तो बाबा का तो आत्मिक प्यार है, परमात्म प्यार है। तो बाबा ने यह विशेष प्रोग्राम बनाया कि जो भी कमज़ोरियां हैं, कमियां हैं क्योंकि यह अन्तिम काल है और सबका अन्तिम काल आना ही है। फिक्स नहीं है, कभी भी किसी के पास आ सकता है। मम्मा का बहुत अच्छा एक स्लोगन था- ”हर घड़ी को अन्तिम घड़ी समझो।” तो अन्तिम घड़ी में और कुछ याद नहीं आवे, कोई देवता याद आवे, अच्छी बातें याद आवें क्योंकि अन्त मति सो गति होती है ना! एवररेडी रहेंगे तो अन्त सुहानी होगी।
बाबा की ऐसी एलर्ट रहने की नेचर थी तो बच्चों को भी एलर्ट रखता था। तो हमें भी अभी ऐसा एलर्ट रहना चाहिए क्योंकि बाबा को बिल्कुल सुस्ती अच्छी नहीं लगती थी। कैसा भी पेपर आवे, उसमें हम पास होकर दिखावें। करेंगे, देखेंगे… यह शब्द बाबा को बिल्कुल अच्छे नहीं लगते हैं। लेकिन अगर बाबा से प्यार है, वो तो सबका 100 परसेन्ट है, उसके लिए तो बाबा ने हमें सर्टीफिकेट दिया। बाकी और कोई सब्जेक्ट में ऐसी रिजल्ट नहीं है। बाबा से प्यार है तब तो मजबूरी से ही सही, चल रहे हैं। परन्तु प्यार का रिटर्न केवल इतना ही नहीं होगा। बाकी जो सब्जेक्ट रहे हुए हैं, उसमें भी समान तो बनना पड़ेगा ना!
बाबा कहते मुझे और कोई रिटर्न नहीं चाहिए, एक शब्द में तुम अपने को टर्न कर लो। टर्न और रिटर्न। इसमें फायदा तो हमको ही होगा, तब बाबा कहते अपने को टर्न करो, इसमें दूसरे को नहीं देखना होता है क्योंकि अपने को बचाने के लिए, अपनी गलती दूसरे के ऊपर रखेंगे। दूसरे को देख के करने से दूर की नज़र तेज हो जाती है। फिर दूसरे की गलती सहज दिखाई देती है तो कहते हैं ये तो यह भी करते हैं इसलिए सब चलता है, होता है। अब चलेगा तो सही क्योंकि सब नम्बरवार हैं,लेकिन मेरे को क्या देखना है? तो जो दूसरों को ज्य़ादा देखते हैं, उन्हों के आधार पर जो अपनी गलती भी उनके ऊपर छोडऩे की कोशिश करते हैं, वो आलसी और अलबेले हो जाते हैं। ”मैंने किया” अन्दर समझ रहे हैं लेकिन बाहर से सिद्ध जो करेंगे वो यह कहेंगे यह हुआ ना, यह किया ना… इसलिए हुआ। यही तो पेपर है ना, हमारे सामने छोटी-छोटी बातों के माध्यम से पेपर आते हैं। जहाँ भी जायेंगे, वहाँ यह पेपर आयेंगे ज़रूर, कोई न कोई रूप चेंज होकर। इसलिए खुद को बदलो, औरों को बदलो, इसके लिए बदलना है ज्ञान और योग के हिसाब से न कि सेन्टर के हिसाब से या साथी के हिसाब से। तो यह थोड़ी हिम्मत रखो। थोड़ी-सी बात हुई तो क्या करें, कैसे करें… वेस्ट थॉट शुरू होते हैं।
बाबा ने कहा किसकी फालतू बातें, गन्दी बातें सुनना यह भी वास्तव में पाप है क्योंकि हमने अपना टाइम तो वेस्ट किया। सुनने से कुछ न कुछ बात याद आती है इसलिए बाबा कहते युक्ति से अपने को टालने की कोशिश करो। अभी यह सब बातें भूल के सेकण्ड में अशरीरी हो जाने की प्रैक्टिस करो।

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