जागरण, उपवास, विषैले फूल चढ़ाना और भांग पीना…. इनका शिवरात्रि से क्या है सम्बंध?

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अपने आप से पूछना होगा कि जो सर्वशक्तिवान है, जो ऑलमाइटी अथॉरिटी है, जो शंाति का सागर है, जो प्रेम का सागर है, पवित्रता का सागर है वो मेरे अंदर बैठा है?

हम परमात्मा को तलाशेंगे कैसे? कौन हमें उनसे मिलवायेगा? ये प्रश्न हमारे मन में हमेशा उठता रहता है पर आज हम उस पर थोड़ा सा विचार करेंगे। अगर हम आपके परिवार के उन सदस्यों को यहाँ पर बुलाते हैं, जो आपको बहुत अच्छी तरह से जानते हैं और उनको कहें कि आपका परिचय दें। वे सब एक ही व्यक्ति के बारे में बतायेंगे, लेकिन एक जैसा नहीं बतायेंगे। जो सबसे ज्य़ादा करीब हैं, जो आपको बहुत ही अच्छी तरह से जानते हैं, वे भी आपका परिचय एक तरह से नहीं देंगे। उनका अपने रिश्ते के अनुसार परिचय बदलता जायेगा। वे सभी आपके बारे में एक जैसा नहीं सुनायेंगे लेकिन उनमें से कोई भी गलत नहीं होगा। क्योंकि फर्क आ रहा है, तो इसका मतलब कोई भी 100 प्रतिशत सही नहीं होगा। इसलिए सबके विचारों में अंतर होगा। आपका यथार्थ परिचय कि आप असल में कौन हैं? क्या महसूस करते हैं? क्या सोचते हैं? आप सारा दिन क्या करते हैं? आपका सही परिचय कौन देगा? आप खुद देंगे ना! वो सब आपके इतने करीब हैं लेकिन वे यथार्थ परिचय नहीं दे पा रहे हैं। कोई गलत नहीं होगा,लेकिन कोई भी 100 प्रतिशत सही भी नहीं होगा। जब तक आप अपना 100 प्रतिशत सही परिचय खुद नहीं देंगे तब तक स्पष्ट नहीं होगा। हज़ारों वर्षों से धर्मात्माओं ने, महात्माओं ने, संत आत्माओं ने, अलग-अलग लोगों ने आकर हमें उस परमात्मा का परिचय दिया है। हरेक ने उसे जिस दृष्टि से देखा, जिस सम्बन्ध से उसको पहचाना और जिस सम्बन्ध से उसको जाना उसी अनुसार उसका परिचय दिया। अलग-अलग किसी की बात नहीं कर रहे थे, वे सब एक ही शक्ति का परिचय दे रहे थे। उनमें से कोई भी गलत नहीं था जिन्होंने भी परमात्मा का परिचय दिया, लेकिन फिर भी सबके परिचय में थोड़ा-थोड़ा अन्तर आ गया, इसका मतलब कोई भी 100 प्रतिशत सही नहीं था। उन्होंने जिस दृष्टिकोण से देखा वैसा परिचय दिया। तो अब परमात्मा का सही 100 प्रतिशत यथार्थ परिचय कौन देगा? परमात्मा खुद देंगे। अगर आपको परमात्मा का सही परिचय चाहिए तो वो आपको तभी मिलेगा जब वो खुद आकर अपना परिचय देगा। अगर हम में से कोई भी उसका परिचय देते हैं तो फिर भी थोड़ा-सा अंतर आयेगा। परमात्मा जब स्वयं आकर अपना परिचय देते हैं तो वो परिचय बड़ा सरल होगा। हमने तो परमात्मा का परिचय बड़ा जटिल कर दिया था क्योंकि हम सत्य नहीं जानते हैं। लेकिन इस सारे सृष्टि चक्र में एक ऐसा समय आता है जब परमात्मा स्वयं आकर अपना परिचय देते हैं और वो परिचय बहुत आसान और 100 प्रतिशत यथार्थ होता है। और जब आप 100 प्रतिशत यथार्थ रूप से किसी को जान लेते हैं, फिर उसके साथ रिश्ता जोडऩा बहुत सरल हो जाता है। भगवान रचयिता है और प्रकृति उसकी रचना है फिर उसकी रचना को ही रचयिता हम कैसे मान सकते हैं? जैसे एक कुम्हार है बहुत सुंदर-सा मटका बनाता है, उस मटके को देखकर हमें उसकी याद आ सकती है,लेकिन वो परमात्मा नहीं है। फिर हम कहते हैं आत्मा सो परमात्मा मतलब आत्मा ही परमात्मा है।
एक तरफ हम कहते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे और फिर दूसरी तरफ कहते हैं आत्मा ही परमात्मा है। बच्चा पिता के जैसा हो सकता है,लेकिन बच्चा ही पिता बन जाये, वो संभव नहीं है। वो किसी और रचना का पिता बन सकता,लेकिन वो अपना ही पिता नहीं बन सकता। उसका पिता उसका अपना ही रहेगा। फिर कहते हैं कि परमात्मा के ही अंश हैं हम और परमात्मा में ही समा जायेंगे या हम कहते हैं कि कण-कण में परमात्मा है। अधिकतर लोग आजतक ये मानते हैं कि हरेक के अंदर परमात्मा है और उसके पीछे भी कुछ भाव रहा होगा। लेकिन हमें अपने आप से पूछना होगा कि जो सर्वशक्तिवान है, जो ऑलमाइटी अथॉरिटी है, जो शंाति का सागर है, जो प्रेम का सागर है, पवित्रता का सागर है वो मेरे अंदर बैठा है? अगर वो मेरे अंदर बैठा है तो मेरा मनोभाव क्या होना चाहिए? अगर शांति का सागर आपके अंदर बैठा है तो क्या क्रोध आ सकता है, दु:ख आ सकता है, चिंता हो सकती है, जो दृष्टिकोण आज हमारा है उसका अंश भी नहीं हो सकता।

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