मुख पृष्ठब्र.कु. शिवानीजैसे हमारे संस्कार होते, वैसे ही हमारी दूसरों से अपेक्षाएं रहती

जैसे हमारे संस्कार होते, वैसे ही हमारी दूसरों से अपेक्षाएं रहती

अगर कोई सफाई नहीं रखता और आप बहुत सफाई पसंद हैं तो आप कहेंगे कि ये सफाई ही नहीं रखते हैं लेकिन कई लोग ऐसे हो सकते हैं, जो आपसे भी ज्य़ादा सफाई रखते हों। जो मेरे से कम हैं, वो भी मुझे अच्छा नहीं लगता और जो मेरे से ज्य़ादा हैं, वो भी नहीं। इसका मतलब हम जो भीतर से हैं यानी कि हमारा जैसा संस्कार है वैसा ही हम दूसरों से चाहते।

बचपन से ही हमारा सोचने का एक तरीका बन जाता है। जैसे कि अपेक्षाएं करना सही है। जबकि जैसे ही ये समझ में आएगा कि हम आत्मा हैं, हमने अनेक जन्म लिए हैं, हमारे संस्कार अलग-अलग हैं, तो फिर एक्सपेक्टेशंस यानी अपेक्षाएं नहीं, बल्कि एक्सेप्टेंस यानी स्वीकार्यता हमारे लिए स्वाभाविक हो जाएगी।

जो संस्कार मेरे मन पर रिकॉर्डेड होगा, वो ही मुझे सही लगेगा। जैसे किसी सभागार में इकट्ठे होने का समय सुबह 9:00 बजे का है। तब समय के पाबंद होने की सबकी परिभाषाएं अलग-अलग होगी। जैसे ईमानदारी की परिभाषा लोगों के लिए अलग-अलग होती है। संजीदगी की अलग, साफ-सफाई की अलग, कार्यदक्षता की अलग। अगर कोई सफाई नहीं रखता और आप बहुत सफाईपसंद हैं तो आप कहेंगे कि ये सफाई ही नहीं रखते हैं। लेकिन कई लोग ऐसे हो सकते हैं, जो आपसे भी ज्य़ादा सफाई रखते हों। जो मेरे से कम हैं, वो भी मुझे अच्छा नहीं लगता और जो मेरे से ज्यादा हैं, वो भी नहीं। तो सबको कैसे होना चाहिए? बिल्कुल मेरे जैसा होना चाहिए? कोई झूठ बोलता है तो आप कहते हैं बिल्कुल अच्छा नहीं है, झूठ बहुत बोलता है। कोई सच्चा मिल जाए तो कहेंगे ज़रूरत से ज्य़ादा सच्चा है, इतना भी सच्चा किसी को नहीं होना चाहिए।

संस्कार यानी शब्द वो ही हैं लेकिन उसकी परिभाषाएं अलग-अलग हैं। अलग होने पर हमने ये नहीं कहा कि उनका संस्कार मुझसे अलग है। हमने कहना शुरू कर दिया कि आप गलत हैं कि आप लेट आए आप गलत हैं, आपने झूठ बोला आप गलत हैं, आपने ऐसा किया आप गलत हैं। अब देखना कि जैसे ही यहां से वाइब्स भेजी कि आप गलत हैं तो आपने डिसरिस्पेक्ट या अपमान की एनर्जीभेजी। मैंने एक थॉट क्रिएट किया कि जो मुझसे अलग है, वो गलत है। तो मुझे बहुत लोग गलत दिखने लगते हैं और कई बार तो पूरी दुनिया ही गलत दिखाई देने लग जाती है।

गलत शब्द डिसरिस्पेक्ट क्रिएट करता है। रिश्तों की बुनियाद परस्पर-सम्मान में ही हो सकती है। डिसरिस्पेक्ट अगर बार-बार बीच में आती गई तो रिश्ता बहुत ही कमज़ोर नींव पर टिका है। आज एक शब्द को बदलते हैं कि उनका संस्कार मेरे से अलग है। दो लोगों के संस्कार बिल्कुल अलग होकर भी अगर बुनियाद में सम्मान है तो रिश्ता मजबूत होगा। अगर दोनों में से एक भी संस्कार अलग होने पर बुनियाद में अपमान डाल दिया तो रिश्ता कमज़ोर।

दिन में बच्चों के लिए कितनी बार हम कह देते हैं वो गलत हैं। और बच्चे कह देते हैं आप गलत। फिर उसको हम कहते हैं- जनरेशन गैप। हर पीढ़ी ने अपनी पीढ़ी से यही कहा है आप गलत हैं। अगले ने भी कह दिया कि आप गलत। हमने कहा कि हम आपको नहीं समझ सकते तो उन्होंने भी कहा हम भी आपको नहीं समझ सकते। दुनिया ने कहा कोई बात नहीं, ये सबके साथ होता है- जनरेशन गैप। आज से सिर्फ एक शब्द को चेंज करना- उनके संस्कार हमसे अलग हैं। लेकिन वो संस्कार इस समय उनके लिए सही हैं। पूरी दुनिया भी कहे कि वो संस्कार गलत हैं लेकिन जिसका वो संस्कार होता है उसको वो ही ठीक लगता है। जब तक उसको खुद को नहीं लगेगा, वो अपने संस्कार को चेंज करने वाले नहीं हैं।

ब्र.कु. शिवानी बहन,जीवन प्रबंधन विशेषज्ञा

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