मन की बातें – राजयोगी बी.के. सूर्य

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प्रश्न : आप कहते हैं कि आपके पास भगवान आते हैं। यों तो सभी अपने गुरुओं को भगवान कहते हैं, हम कैसे मानें कि आपके यहाँ भगवान आते हैं?
उत्तर : आपका प्रश्न करना उचित है। अनेक भगवान देखकर सच्चे भगवान के बारे में भ्रम होना स्वाभाविक है। पहले तो हमें ये जान लेना चाहिए कि भगवान है कौन? तभी हम निर्णय कर सकेंगे कि भगवान कहाँ आते हैं। भगवान निराकार है, वे देह रहित, जन्म-मरण से न्यारे, ब्रह्मा विष्णु रुप है, ज्ञान के सागर, प्रेम के सागर, सर्वशक्तिवान हैं, वे सर्व गुणों के सिन्धु हैं। अत: किसी भी देहधारी को भगवान नहीं कहा जा सकता। हम ब्रह्मा बाबा को भगवान नहीं कहते, बल्कि उनके तन में भगवान प्रवेश करते थे। जो गुरु स्वयं को भगवान कहते हैं, उनसे पूछिये, क्या वे ब्रह्मा-विष्णु-शंकर के रचयिता हैं, क्या वे निराकार हैं, क्या वे ज्ञान के सागर हैं, क्या वे सम्पूर्ण हैं? स्पष्ट है कि नहीं हैं। भगवान आकर ज्ञान देते हैं, वे राजयोग सिखाकर मनुष्यात्माओं को सम्पूर्ण बनाते हैं, वे सतयुगी नई सृष्टि की स्थापना करते हैं, वे शिष्य नहीं अपने बच्चे बनाते हैं। वे सबकी प्यार से पालना करते हैं, वे शास्त्र नहीं पढ़ते, मुख्य बात वे सभी को पवित्र व सात्विक बनाते हैं। जहाँ ये लक्षण दिखाई दें, समझ लो वहीं भगवान अपना कत्र्तव्य कर रहे हैं।

प्रश्न : आप कहते हैं भगवान भारत में ही आते हैं- ऐसा क्यों? फिर तो भगवान भी पक्षपाती माने जाएंगे। भारत में ऐसा क्या है जो यहीं वे आते हैं?
उत्तर : भारत महान देश है, ये देवभूमि है, यही स्थान दो युग तक स्वर्ग था। यहीं पर पवित्रता की मान्यता है। यही धर्मभूमि व अध्यात्म की भूमि है। विदेशों में कहीं भी यदि किसी को शान्ति की प्यास उठती है, जो भी अध्यात्म की खोज करना चाहते हैं या जो भी योग सीखना चाहते हैं, तो वे भारत में ही आते हैं। भारत ही दो युग तक स्वर्ग था। भारत पवित्र भूमि है, इसलिए भारत को पुन: स्वर्ग बनाने के लिए उन्हें यहीं आना पड़ेगा। पाश्चात्य देशों में तो अति तामसिकता, अति अपवित्रता व अति भौतिकवाद है। आज तो वहाँ ये स्थिति है कि वे भगवान का नाम लेना भी पसंद नहीं करते, तब भला वहाँ भगवान कैसे आयेगा! भारत में ही सबसे ज्य़ादा भक्ति, पूजा पाठ देखने को मिलता है। इसलिए भारत ही भगवान की जन्मभूमि व कर्मभूमि है। भारत ही ऐसा देश है जहाँ सर्व धर्मों का सम्मान होता है, इसलिए सर्व का कल्याण करने हेतु भगवान यहीं आते हैं।

प्रश्न : क्या भगवान से मिलना संभव है? सुना है प्रभु-मिलन के लिए तो हज़ारों वर्ष कठिन तपस्या करनी पड़ती है। आज तक वह किसी को मिला ही नहीं। आप तो कहते हैं, वे हमसे मिलने आते हैं।
उत्तर : यह सत्य है कि 2500 वर्ष से हमने भक्ति व तप किये, परन्तु हम प्रभु से न मिल पाये और न उनको जान पाये इसलिए उन्हें ही हमसे मिलने आना पड़ा। पहले वे आकर हमें अपनी सत्य पहचान देते हैं। जब हम भगवान को जानते ही नहीं तो भला हम उन्हें ढूंढेंगे कहाँ… सोचो हमारे मन में प्रभु मिलन की इच्छा होती है, इससे ही सिद्ध है कि हमें वे मिलते अवश्य हैं। परंतु हम उनसे मिलने नहीं जा सकते, वे ही हमसे मिलने आते हैं। उनके आने का एक समय भी निश्चित होता है। जब कल्प का अन्त होता है और कलियुग समाप्ति की ओर जाता है, तब वे स्वयं आते हैं- केवल हमसे मिलने के लिए नहीं, बल्कि हमें मनुष्य से देवता बनाने के लिए और कलियुगी दुनिया को सतयुग में बदलने के लिए। इस समय प्रभु मिलन हो रहा है, वह अपना पुनीत प्यार दे रहा है, वह शक्तियां दे रहा है, वह राजयोग सिखा रहा है, परन्तु इसके लिए स्वयं को पवित्र बनाना होगा।

प्रश्न : हमने सुना है ब्रह्माकुमार-कुमारियां कहते हैं कि हमें भगवान पढ़ाते हैं। हमने प्रभु मिलन का सुख लिया है। वे अब भी हमसे मिलने आते हैं, परन्तु विश्वास नहीं होता। कहीं आप भ्रमित तो नहीं हो गये हो। भला भगवान से मिलना इतना सस्ता है क्या?
उत्तर : लाखों बुद्धिमान लोग इसके साक्षी हैं कि हमें भगवान ही पढ़ाते हैं। भगवान ही ज्ञान के सागर हैं, वे शास्त्रों का ज्ञान नहीं देते, बल्कि शास्त्रों का सार समझाते हैं। उनका ज्ञान लेकर कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता, सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है व सत्य की खोज समाप्त हो जाती है।
वे हज़ारों की सभा में आते हैं। उनके अवतरित होते ही सबको परमात्म मिलन का सुख अनुभव होने लगता है। सभी प्रभु-प्रेम में मग्न हो जाते हैं, सभी को वरदान प्राप्त होते हैं व सभी के चित्त शान्त हो जाते हैं। प्रत्यक्ष अनुभूतियों से सिद्ध हो जाता है कि सामने कोई महान आत्मा नहीं बल्कि स्वयं परमात्मा ही मनुष्य तन में अवतरित हैं। आप बुद्धिमान हैं। आपने परमात्मा के आने की बात सुनी। यह सुनकर क्या आपके मन में ये विचार नहीं उठा कि देखें तो सही। ये सब क्या है, कैसे आते हैं भगवान। परन्तु इसके लिए भी एक वर्ष तक पवित्र रहकर ईश्वरीय ज्ञान लेना होगा।

प्रश्न : वर्तमान समय चारों ओर भय, पापाचार, भ्रष्टाचार व आसुरीयता का बोलबाला है। क्या यही उचित समय है परमात्मा के अवतरण का?
उत्तर : सत्य कहा आपने धर्म का एक चरण अब समाप्त होता दिख रहा है। यद्यपि चारों ओर असंख्य मंदिर हैं, हर मंदिर में भीड़ भी ज्य़ादा ही है। युवकों में भी धर्म की दौड़ दिखाई देती है। परन्तु धर्म मनुष्य के जीवन में नहीं है। स्वार्थ, लोभ, पाप और भ्रष्टाचार ने मनुष्य की बुद्धि को भी भारी कर दिया है। मनुष्य अपने हर अंग से पाप कर रहा है। सचमुच हम महाभारत काल में प्रवेश कर चुके हैं। मिसाइल्स वही अग्निबाण हैं, एटम बम वही ब्रह्मास्र हैं। दुर्योधन व दु:शासन की तो कहीं कमी नहीं है। अनेक द्रोपदियों के चीर हरण हो रहे हैं। धर्मगुरु मौन हैं। पापी सिंहासन पर बैठे हैं, पुण्यात्माएं भूखी हैं। अधर्म का ही चहुं ओर बोलबाला है। यह सम्पूर्ण सत्य है कि यही समय कलियुग का अंत है और शिव भगवान अवतरित होकर अपना दिव्य कार्य कर रहे हैं।

प्रश्न : आप कहते हैं कि भगवान आ गये हैं। परंतु हम उन्हें पहचानेंगे कैसे? वे तो निराकार निरंजन है। आप श्रीकृष्ण की बात करते तो कुछ समझ में आता भी।
उत्तर : परमात्मा देह से न्यारे हैं। परंतु अपने दिव्य कार्य करने के लिए उन्हें देह का आधार लेना पड़ता है। इसलिए वे प्रजापिता ब्रह्मा के साधारण तन में प्रवेश करते हैं। वे अवतरित होते हैं व ज्ञान देकर अपने धाम चले जाते हैं। वे सदा ही तन में रहते नहीं। और जब वे आते हैं तो ज्ञान देेते हैं। ज्ञान से ही मनुष्य की सद्गति होती है। ज्ञान व योगबल से वे आत्माओं को व प्रकृति को पावन बनाते हैं और इस तरह सतयुगी दुनिया की स्थापना करते हैं। उनकी पहचान उनका सत्य ज्ञान है। उनके ज्ञान से सत्य की खोज समाप्त हो जाती है। उनका ज्ञान सम्पूर्ण ज्ञान है, वो ज्ञान भक्ति का ज्ञान नहीं बल्कि आत्मा, परमात्मा व सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान है। उनके ज्ञान से आप उन्हें पहचान सकते हैं। वे आत्माओं को पवित्र बनाते ैं। जहाँ सब पवित्र बन रहे हों, वही उनकी पहचान है। वे आकर मनुष्य को देवता बनाते हैं – इससे आप उनकी पहचान कर सकते हैं। अन्य गुरुओं के कार्यों में व परमात्मा में महान अंतर है। वे किसी से पैर नहीं छुाते। वहाँ सभी में आत्मिक भाव जागृत होता है। वहाँ भक्ति का अंश नहीं होगा।

प्रश्न : क्या परमात्मा सृष्टि रचना के साथ साथ महापरिवर्तन भी कराते हैं? यदि हाँ तो ऐसा क्यों? महा-परिवर्तन का कृत्य तो अति भयानक है। प्यार के सागर, दु:खहर्ता व कल्याणकारी परमात्मा ये कर्म क्यों कराते हैं?
उत्तर : जैसे पाप पुण्य को व पुण्य पाप को नष्ट कर देता है। वैसे ही पवित्रता अपवित्रता का संहार करा देती है। ईश्वरीय शक्ति पाप व पापियों को नष्ट करा देती है। कलियुगी दुनिया का परिवर्तन को पूर्व निश्चित है क्योंकि सतयुग का आगमन सृष्टि चक्र के नियम अनुसार होना ही है। जैसे सुर्योदय से अंधकार का नाश हो जाता है, वैसे ही ज्ञान सूर्य के उदय से कलियुगी पाप युक्त दुनिया का विनाश हो जाता है। परमात्मा राजयोग सिखाते हैं, अविनाशी रूद्र यज्ञ रचते हैं, उससे प्रकट हुई विनाश ज्वाला पाप की दुनिया को नष्ट कर देती है। विनाश का कृत्य अति भयावह है परन्तु ये मनुष्य के पापा का ही परिणाम है। अल्पकालीन दु:ख सदा काल के लिए दु:खों से मुक्ति का साधन है। ये परमात्मा का कल्याणकारी कत्र्तव्य ही है इससे नया नवयुग का उदय हो जाता है। अत: इसका दोष परमात्मा पर कदापि नहीं आता।

प्रश्न : परमात्मा का कार्य दिव्य अलौकिक है। वे कौन से कार्य है?
उत्तर : युग परिवर्तन करना, पाप आत्माओं को पावन, पुण्यात्मा बनाना, मनुष्य को देवता बनाना है। ये कार्य लौकिक रूप से नहीं हो सकते। मानवीय कृत्य हैं भी नहीं इसलिए उन्हें दिव्य अलौकिक कर्म कहा जाता है। ये कार्य केवल एक परमात्मा ही करने में समर्थ हैं। सभी आत्माओं के योगबल से पाप नाश कराकर उन्हें कर्मातीत व सम्पूर्ण बनाना ये कार्य लौकिक नहीं दिव्य हैं। जो काम मनुष्य न कर सके उन्हें अलौकिक कहेंगे। गुरु आदि चमत्कार दिखा सकते हैं, वे किसी की अल्पकालीन इच्छा पूर्ण करा सकते हैं परंतु युग नहीं बदल सकते। गुरु लोग अल्प ज्ञान की देते हैं जबकि परमात्मा ही ज्ञान के सागर हैं। वे ही सम्पूर्ण सत्य का प्रकाश फैला सकते हैं।
हमने उसे इस धरा पर दिव्य कर्म करते देखा है।आप भी देख सकते हैं परंतु उसके लिए ज्ञान के दिव्य चक्षु चाहिए व पवित्रता चाहिए।

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