जिन्होंने जन्म-जन्म भगवान की भक्ति की या देवी-देवताओं की भक्ति की, उन्हें भक्ति का फल देने के लिए भगवान को आना पड़ता है। और अब वे भक्ति का फल दे रहे हैं। हज़ारों वर्ष की भक्ति का फल होता है…भगवान से मिलन। और भगवान आकर देते हैं ज्ञान। और ये दोनों प्राप्तियां अब हो रही हैं। आप उन्हें जानो और पहचानो।
शिवालयों से सुनाई देती घण्टों की गूंज, शिव पर जल चढ़ाने हेतु आतुर भक्तगण, माताओं के झुण्ड के झुण्ड जिस ओर प्रस्थान करते हैं और अनन्य भक्त जिस दिन शिव दर्शन की कामना रखते हैं, वो महाशिवरात्रि का पर्व पुन: हमारे समक्ष है। यूं तो भारत में पर्व ही पर्व हैं परंतु इस पर्व को महाशिवरात्रि कहा जाता है। भक्त विभिन्न अर्थों में इसे शिव की महारात्रि समझ लेते हैं। परंतु शिव तो रात-दिन से परे हैं और न ही उन्हें कैलाश पर तपस्या करने की आवश्यकता है। वे तो सम्पूर्ण हैं, सदा कर्मातीत हैं, सभी सिद्धियों के स्वामी हैं, उन्हें तपस्या नहीं करनी है। ये महान कार्य तो महादेव का है जबकि शिव तो देवों के भी देव हैं।
कौन हैं शिव और क्यों मनाई जा रही है शिवरात्रि?
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर के भी रचयिता हैं शिव, इसलिए उन्हें त्रिमूर्ति कहा जाता है। ú के प्रतीक चिन्ह में ऊपर दिखाई जाने वाली बिन्दी उन्हीं की यादगार है, यह रहस्य विदूषकों को भी ज्ञात नहीं। वे ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को ही सर्वोपरि मान लेते हैं, परंतु विवेक भी कहता है कि तीनों के ऊपर भी कोई महासत्ता होनी ही चाहिए और वह परमसत्ता है सर्वशक्तिवान शिव, जो निराकार है अर्थात् अशरीरी है, महाज्योति है, स्वयं प्रकाशमान है, सूक्ष्मातिसूक्ष्म है, इसलिए उन्हें बिन्दु स्वरूप में ही दर्शाया जाता है, परंतु उस अति सूक्ष्म बिन्दु से अनंत एनर्जी निरंतर चहुं ओर फैलती है।
वे अजन्मा हैं, स्वयंभू(शम्भू) हैं, उनका नाम शंकर नहीं, कल्याणकारी होने के कारण शिव है। वे ब्रह्मलोक अर्थात् परमधाम के वासी हैं, वे इस धरा पर अवतरित होते हैं। जब-जब धर्म की ग्लानि होती है, जब चारों ओर पाप बढ़ जाता है तब वे आते हैं। जब सभी मनुष्यात्माएं पतित बन जाती हैं, तब वे आते हैं उन्हें पावन बनाने। जब चहुं ओर अज्ञान का अंधकार छा जाता है, तब वे आते हैं ज्ञान का प्रकाश देकर सबके मन के अंधकार को हरने। जब पाँच विकारों की माया सभी को अपने पंजे में जकड़ लेती है और विकारों के नशे में मनुष्य गहरी नींद सो जाता है, तब वे आते हैं उन्हें जगाने। जब संसार दु:ख व अशांति से त्राहि-त्राहि करने लगता है तब वे आते हैं सबके दु:ख हरने। उनके आने का निश्चित समय है। हाँ, केवल एक बार। वे भला युग-युग में क्यों आयेंगे! हर युग में तो धर्म की ग्लानि होती ही नहीं। शास्त्र अनुसार भी सतयुग में धर्म के चार चरण, त्रेता में तीन, द्वापर में दो तथा कलियुग में एक चरण धर्म का होता है। कलियुग के अंत में जब वह एक चरण भी दस प्रतिशत रह जाता है, तब वे आते हैं सत्य देवी-देवता धर्म की पुनस्र्थापना करने। और वो समय अब है। ये कलियुग का प्रथम चरण नहीं, अंतिम चरण है।
कलियुग के इस घोर अंधकार में ज्ञानसूर्य प्रकट होकर इस महारात्रि को, सतयुगी दिन में बदलने का अपना दिव्य कार्य कर रहे हैं। उनका वाहन नंदी है। यह गुह्य रहस्य है। भला बैल पर निराकार कैसे विराजमान होंगे! वे प्रजापिता ब्रह्मा के मनुष्य तन में प्रवेश होकर अपने कार्य करते हैं। छोटे-बड़े दो नंदी भी दिखाये जाते हैं। इनका भी अद्भुत रहस्य है।
भक्ति का फल देने आ गये हैं शिव
जिन्होंने जन्म-जन्म भगवान की भक्ति की या देवी-देवताओं की भक्ति की, उन्हें भक्ति का फल देने के लिए भगवान को आना पड़ता है। और अब वे भक्ति का फल दे रहे हैं। हज़ारों वर्ष की भक्ति का फल होता है…भगवान से मिलन। और भगवान आकर देते हैं ज्ञान। और ये दोनों प्राप्तियां अब हो रही हैं।
हे प्रभु प्रेमी भक्तों, अपने से पूछो, जबकि भगवान भक्ति का फल देने आ गये हैं, तब भी क्या आप भक्ति ही करते रहेंगे? ये तो ऐसे ही है जैसे सूर्य के उदय होने के बाद व उसका प्रकाश चारों ओर फैलने के बाद भी दीपक जलाते रहना। तो आइये, अब भक्ति का फल पाइये। आइये, अब प्रभु मिलन का सुख पाइये। आओ, अपनी जन्म-जन्म की प्यास मिटाने। आओ, भगवान से वरदान पाने। आओ, भगवान से सर्व सम्बंध निभाने।
जगाने आ गये हैं शिव…
भक्तगण मंदिरों में शिवरात्रि पर सारी रात जागरण करते हैं। वे इंतज़ार करते हैं कि शिव आयेंगे, उन्हें दर्शन देंगे। वे नशा भी करते रहते हैं और समझते हैं कि हम महादेव को फॉलो कर रहे हैं। परंतु शायद ही किसी विरले सच्चे भक्त को उनके दर्शन होते हों। वैसे ही तामसिक नशे में चूर व्यक्ति भला भगवान के दर्शनों का अधिकारी है भी कहाँ! ये तो ईश्वरीय नशे की बात है। अब स्वयं ज्ञान के सागर आकर सभी भक्तों को जगा रहे हैं। वे कह रहे हैं कि हे मेरे प्यारे भक्तों, तुम तो मेरे बच्चे हो। तुम अज्ञान की व विकारों की नींद में सो गये हो। अब जागो, तुम तो देवता थे, महान थे, पवित्र थे। अब स्वयं को पहचानो। वे सत्य ज्ञान देकर आत्म-जागृति कर रहे हैं। यही सच्चा जागरण है। तो सभी जग जाओ और देखो तुम्हारा परमपिता शिव तुम्हारे सामने है, उसे पहचानो।
शिवरात्रि पर सदा के लिए व्रत लो
भोजन का व्रत ही पर्याप्त नहीं। शिव भक्तों को वैसा भोजन भी नहीं खाना चाहिए जो शिव को स्वीकार नहीं। एक दिन भोजन का व्रत कर लेना और पूरा वर्ष तामसिक भोजन खाना शिव को पसंद नहीं। इस शिवरात्रि पर सात्विक भोजन खाने का व्रत लें। हो सके तो सभी शिव के भक्त व शिव के वत्स इस महापर्व पर क्रोध को त्यागने का व्रत लें अथवा अपनी किसी बुराई को सदा के लिए त्यागने का संकल्प करें तो शिवरात्रि का पर्व आपके लिए वरदान बन जाएगा।
शिवरात्रि पर शिव-मिलन करें
कलियुग की इस महारात्रि में शिव स्वयं आकर मिलन मना रहे हैं। वे आपका आह्वान कर रहे हैं। जन्म-जन्म तो आपने उनका आह्वान किया। अब आ जाओ और अपने परमपिता से मिलन मनाओ, उनका सच्चा प्यार अनुभव करो और उनकी पालना का सुख लो। फिर ये न कहना कि हमको बताया नहीं।