पुरुषार्थ का सबसे बड़ा दुश्मन है सुस्ती

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१. क्या थकावट का सुस्ती से सम्बंध है? सुस्ती तन की है या मन की? बदन टूटता है, चक्कर आता है, क्या इसमें स्वास्थ्य का कारण है या कुछ और?
२. कई लोग एक-दो कार्य करने के बाद कहते हैं कि अब हमसे और नहीं होता, किसी और को बताओ जबकि उनमें ताकत है।

  1. कोई सहयोग न देना- क्या यह उनकी सुस्ती है या दिव्य गुण की कमी? क्योंकि ईष्र्या होती है कि हम इन्हें सहयोग देंगे तो नामाचार इनका होगा, एक द$फा लोगों को पता तो चले कि हमारे सहयोग के बिना काम कैसे होगा? यह ईष्र्या है या द्वेष है या सुस्ती है?
  2. नींद आती है तो या तो कोई दवाई ऐसी खा रहे हैं या बीमारी ऐसी है? लोग कहते हैं कि यह कार्य कर दो, तो वो कहता है कि नींद आ रही है। क्या इसे सुस्ती कहेेंगे? परंतु शरीर से तो वे मोटे-ताजे हैं।
  3. कई व्यक्ति कार्य में पूरा मन नहीं लगाते, उसे काम चलाऊ करते हैं, क्या यह सुस्ती है? ऐसा भी नहीं है कि वो जल्दी में हैं। उनके पास समय भी है, फिर? सुस्ती एक प्रकार की होती है या अनेक प्रकार की? क्या यह उस व्यक्ति का स्वभाव(नेचर) है या क्षणिक है? कइयों के लिए लोग कहते हैं कि यह सुस्तीमिज़ाज़ है। तो भाव है कि उसका स्वभाव ही ऐसा है।
  4. कुछ लोग वैसे तो अलर्ट(चुस्त) होते हैं परंतु कुछ दिन ऐसे होते हैं जिनमें वे उदास होते हैं। कई अन्दर महसूस भी करते हैं कि यह हमारी सुस्ती है परंतु जानते हुए भी उसे भगा नहीं सकते क्योंकि हिम्मत नहीं होती। मन करता है कि यह काम कर लें, फिर सोचते हैं कि छोड़ो। यहाँ कोई छुट्टी तो होती नहीं। अभी मेरा मूड नहीं है। कुछ हँसेंं-बदलें भी तो सही। तो क्या इसे सुस्ती कहें? वह तो सोच रहा है कि जीवन में कुछ मनोरंजन भी होना चाहिए, नहीं तो जीवन ऊब जायेगा। वो तो यह सोच रहा है परंतु वास्तव में यह सुस्ती है। ऊपर से लगता है कि यह सब्ज़ बाग है परंतु पाँव रखो तो दलदल है।
    सुस्ती के बारीक स्वरूप का मालूम होना चाहिए क्योंकि यह साधक का बहुत बड़ा दुश्मन है। जो व्यक्ति अपना कत्र्तव्य नहीं करता, आध्यात्मिक साधना नहीं करता वो भी कुम्भकरण है। बस मज़ाक करते-करते समय खऱाब करना, एक से दूसरे के पास बैठे गप्पे मारना, कुछ खास काम न करना जैसे कि उम्र ही काट रहे हैं। करना कुछ नहीं है। इसको आलस्य भी कहा जाता है। आलस्य अर्थात् सुस्ती तो मीठा ज़हर है। चूहे के माफिक काट देती है कि पता ही नहीं पड़ता। सुस्ती जेब काट की तरह है, की हुई कमाई और सम्पत्ति को लूट लेती है। मन करता है कि बातें करें, हँसेंं, बहलें जीवन इसी का नाम है। बाबा के हम बने हैं, कुछ तो मिलेगा। इसी में वे खुश हो जाते हैं। जैसे कम्प्यूटर में वायरस घुस जाये तो उसे निकालना कितना मुश्किल होता है! ऐसे ही सुस्ती अगर एक बार मनुष्य में घुस जाये तो उनसे निकालना बहुत मुश्किल होता है। यह तो जैसे कि जंग लगा पड़ा है। कहानी है ना ऊँट वाला कहता है कि बेर मुँह में डाल दे।
    सुस्ती एक प्रकार की जड़ता है। जैसे किसी के शरीर में लचीलापन न रहे तो वह चेतन होते भी अधमरा है। जैसे मशीनरी जाम हो जाये। सुस्ती की बीमारी भी जब लग जाती है तो बुद्धि चलती नहीं। वह जड़ता में आ जाती है। बाबा कहते हैं, बच्चे, सेवा में हड्डी-हड्डी स्वाहा करो। हड्डी तो छोड़ो कुछ लोग तो थोड़ी भी सेवा नहीं करते। जिनके साथ दोस्ती, भागीदारी हो यदि वे सुस्त हों तो दूसरे भागीदार को बोझ लगता है, अच्छा नहीं लगता। भविष्य जिनका अच्छा न हो, भाग्य जिनका खोटा हो उनका यह हाल होता है। यज्ञ की कुछ-न-कुछ सेवा करना माना अपना भविष्य ऊँचा बनाना, समय को सफल करना क्योंकि यज्ञ-सेवा श्रेष्ठ कर्म है। संगमयुग का कोई भी श्रेष्ठ कर्म 21 जन्म फल देता है। दूसरों को मत देखो। आप कोई कर्म करेंगे तो भरपूर हो जायेंगे। ना करेंगे तो अंत खराब। कम से कम यह तसल्ली तो रहे कि हमने कुछ किया है। सुस्ती छोड़ चुस्ती में आओ, मस्ती में आओ। बाबा के बच्चों के लिए तो सेवा परमोधर्म है। मान लीजिये, आप अकेले कार्य कर रहे हैं, बाद में कर लेंगे। क्या यह सुस्ती नहीं है? संक्षेप में क्रसुस्तीञ्ज की व्याख्या ऐसे कर सकते हैं कि किसी कार्य को करने के लिए हमारे में शारीरिक, मानसिक क्षमता है, समय है, साधन हैं, फिर भी हम उसे नहीं करते हैं तो सुस्ती है। जितनी ताकत है उतना दिल लगा कर मेहनत करना, कार्य अधूरा न छोडऩा, सम्पूर्णता से करना, अपनी क्षमता से दत्तचित्त हो कार्य करना, बीच में न छोडऩा, इसे चुस्ती कहेंगे।
    कई बार सुस्ती के शारीरिक कारण भी होते हैं। भारी भोजन करना, एक्सरसाइज़ न करना जिससे गैस बनती है। व्यक्ति का स्वभाव सुस्ती का नहीं होता है लेकिन शरीर संभालने का सही ज्ञान न होने के कारण सुस्त बन जाता है। तीव्र पुरूषार्थी सुस्ती को भगा कर सेवा में लग जाता है। अच्छा पुरूषार्थी सुस्ती को अपने ऊपर काबू न पाने देगा। फिर कई जगह का वातावरण ही ऐसा होता है कि व्यक्ति न चाहते हुए भी सुस्तराम बन जाता है। जि़म्मेवार व्यक्ति कारणों को न देख, काम कर लेता है। उसे चुस्त व्यक्ति कहेंगे। अरूचि को भी लोग सुस्ती समझ लेते हैं। रूचि न होने पर अगर कोई काम नहीं करता तो वह सुस्ती नहीं है। अगर उसे प्रतिफल और भाग्य का एहसास कराकर रूचि पैदा करें, तो सुस्तराम चुस्तराम बन सकता है।

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