मुख पृष्ठब्र.कु. उषासम्बन्धों में मधुरता की महसूसता ही स्वीट साइलेंस

सम्बन्धों में मधुरता की महसूसता ही स्वीट साइलेंस

पिछले अंक में आपने पढ़ा कि जब बाह्य कर्मेन्द्रियों को समेट लिए, अन्तर्मुखी हो गये, भीतर चले गए और भीतर जाकर उस आनन्द का, क्योंकि ये सारी चीज़ है, अगर ये भरपूरता आई तो इसका फाइनल रिज़ल्ट क्या है? आनंद। उसका फाइनल रिज़ल्ट है कि योग में अतीन्द्रिय सुख या आनंद की अनुभूति होना। जो बाहर की कोई भी चीज़ मन को विचलित नहीं कर सके, ये है साइलेंस। अब आगे पढ़ेंगे…
दूसरा जब कहते हैं स्वीट साइलेंस। तो स्वीट साइलेंस मतलब, जिस साइलेंस के अन्दर बहुत सुख हो, मधुरता हो वो स्वीट साइलेंस है। तो वो किसमें मिलेगी? सीधा परमधाम थोड़े पहुंच जाना है! स्वीट साइलेंस कहाँ मिलती है? सम्बन्धों में। जिस व्यक्ति के साथ या जिस सम्बन्ध में अति समीपता है तो वहाँ से सुख की महसूसता होती है, सुख की फीलिंग मिलती है। जिस व्यक्ति के साथ आपका घनिष्ठ सम्बन्ध है, अति नज़दीक है, सम्बन्ध है उसके साथ जिस समय कुछ पल भी बिताते हैं तो भी वो सुखद पल हो जाते हैं। जिस सम्बन्ध की रसना हम ले रहे हैं उसमें जैसे आत्मा को सुकून मिल रहा है। तो जो सुकून है उसको कहते हैं स्वीट साइलेंस। इसीलिए बाबा बच्चों को बार-बार कहते हैं कि सर्व सम्बन्ध को मेरे साथ जोड़ो। यही कहा देह सहित देह के सर्व धर्म को भूल एक मेरी शरण में आ जाओ। गीता में भी कहा कि तू सर्व को भूल, मनुष्य के कितने धर्म होते हैं?
गीता ज्ञान दिया गया पाँच हज़ार साल पहले, अगर दुनिया के हिसाब से देखा जाये तो उस समय तो कोई न हिन्दु था, न मुसलमान था, न सिक्ख था, न ईसाई था, कोई था क्या? सारे तो हिन्दु थे महाभारत के युद्ध में। फिर अर्जुन को कहा कि सर्वधर्मान् परित्यज्य। तो कौन से धर्म को छोडऩे को कहा? देह के कितने धर्म हैं? एक व्यक्ति के देह के कितने धर्म हैं? मुझे याद आता है कि कुछ दिन पहले की मुरली में बाबा ने कहा कि एक होता है गृहस्थ धर्म, और एक होता है गृहस्थ आश्रम। सतयुग-त्रेता में गृहस्थ आश्रम है। गृहस्थ धर्म नहीं। लेकिन द्वापर के बाद गृहस्थ धर्म शुरू होता है। तो गृहस्थ धर्म है और कौन-सा धर्म है? और देह के कौन से धर्म हैं जिसको सबको छोडऩा है। गृहस्थ धर्म, पति धर्म, पत्नी धर्म, इसलिए धर्म पत्नी कहा जाता है। पुत्र धर्म, पिता धर्म, कितने धर्म हो गये? है कि नहीं ये सारे धर्म? इसीलिए कई बार कई गृहस्थी कि हमको पहला तो पति धर्म देखना पड़ेगा, तो पति धर्म अगर हुआ तो परमात्मा के प्रति जो धर्म है वो साइड में हो गया। वो सेकंड नम्बर हो गया। इसीलिए भगवान ने गीता में भी अर्जुन को कहा सर्वधर्मान् परित्यज्य। ये सर्व धर्म जो हैं तेरे, जो तूझे आकर्षित कर रहे हैं। अभी तेरा एक ही धर्म है ईश्वर के प्रति। और इसीलिए कहा कि सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं। सिर्फ मेरी शरण में आ जाओ और कुछ भी नहीं सोचो। तो बाबा भी हम बच्चों को रोज़ क्या कहते हैं कि मनमनाभव। जो ये सारे धर्म बनाकर रखे हैं, जिसके कारण तू उलझा हुआ है, इन सब धर्मों को क्या करो, बुद्धि से छोड़ो, भूलो, हाँ कर्तव्य जहाँ है वो कर्तव्य निभाओ, कर्म निभाओ, सम्बन्ध निभाओ लेकिन धर्म तुम्हारा किसकी तरफ हो? बाबा के प्रति हो। जब इस तरह से बाबा की शरण में आते हैं बाकी सब धर्मों को छोड़ करके तो सम्बन्धों को भी सहजता से निभाने की क्षमता रखेंगे, निभाने में सहजता हो जायेगी,कठिनाई महसूस नहीं होगी।
ये जो सारे रिश्ते हैं और उन रिश्तों के प्रति जो तुम्हारी, समझता है कि ये पहला होना चाहिए मेरा, ये मेरा पहला धर्म है, नहीं। बाबा कहे पहला धर्म है तुम्हारा ईश्वर के प्रति।

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