सदैव जो कोई भी कत्र्तव्य करते हो व मुख से शब्द वर्णन करते हो तो पहले चेक करो कि रहम और रूहाब- दोनों समान रूप में हैं? दोनों को समान करने से एक तो अपना स्वमान स्वयं रख सकेंगे, दूसरा सर्व आत्माओं से भी स्वमान की प्राप्ति होगी। स्वमान को छोड़ मान की इच्छा रखने से सफलता नहीं हो पाती है। मान की इच्छा को छोड़ स्वमान में टिक जाओ तो मान परछाई के समान आपके पिछाड़ी में आयेगा। जैसे भक्त अपने देवताओं व देवियों के पीछे अन्धश्रद्धा वश भी कितनी भागदौड़ करते हैं। वैसे चैतन्य स्वरूप में स्थित हुई आत्माओं के पीछे सर्व आत्माएं मान देने के लिए आयेंगी, दौड़ेंगी। भक्तों की भागदौड़ देखी है? आप लोगों के यादगार जड़ चित्र हैं। उनमें भी चित्रकार मुख्य यही धारणा भरते हैं- एक तरफ शक्तियों का रूहाब भी फुल फोर्स में दिखाते हैं और साथ-साथ रहम का भी दिखाते हैं। एक ही चित्र में दोनों ही भाव प्रकट करते हैं ना! यह क्यों बना है? क्योंकि प्रैक्टिकल में आप रूहाब और रहमदिल मूर्त बने हो। तो जड़ चित्रों में भी यही मुख्य धारणाएं दिखाते हैं। तो आप लोग अभी जब सर्विस पर हो तो सर्विस के प्रत्यक्षफल का आधार इन दो मुख्य धारणाओं के ऊपर है। रहमदिल ज़रूर बनना है, लेकिन किस आधार पर और कब? यह भी देखना है। रूहाब रखना ज़रूर है, लेकिन कैसे और किस तरीके से प्रत्यक्ष करना है, यह भी देखना है। रूहाब कोई वर्णन करने व दिखाने से दिखाई नहीं देता, रूहाब नैन-चैन से स्वयं ही अपना साक्षात्कार कराता है। अगर उसका वर्णन करते हैं तो रूहाब बदलकर रोब में दिखाई देता है। तो रोब नहीं दिखाना है, रूहाब में रहना है।
रोब को भी अहंकार व क्रोध की वशांवली कहेंगे। इसलिए रोब नहीं दिखाना है,लेकिन रूहाब में ज़रूर रहना है। जितना-जितना रहमदिल के साथ रूहाब में रहेंगे तो फिर रोब खत्म हो ही जायेगा। कोई कैसी भी आत्मा हो, रोब दिलाने वाला भी हो, तो रूहाब और रहमदिल बनने से रोब में कभी नहीं आयेंगे। ऐसे नहीं कि सरकमस्टान्सेज़ ऐसे थे व ऐसे शब्द बोले तो यह करना ही पड़ा। करना ही पड़ेगा, यह तो होगा ही, अभी तो सम्पूर्ण बने ही नहीं हैं- यह शब्द अथवा भाषा इस संगठन में नहीं होनी चाहिए। क्योंकि आप निमित्त सर्विस के हो इसलिए इस संगठन को मास्टर नॉलेजफुल और सर्विसएबुल, सक्सेसफुल संगठन कहेंगे। जो सक्सेसफुल हैं वह कोई कारण नहीं बनाते। वह कारण को निवारण में परिवर्तन कर देते हैं। कारण को आगे नहीं रखेंगे। जो मास्टर नॉलेजफुल, सक्सेसफुल होते हैं वह अपनी नॉलेज की शक्ति से कारण को निवारण में बदली कर देंगे, फिर कारण खत्म हो जायेगा। निमित्त बनने वालों को विशेष अपने हर संकल्प के ऊपर भी अटेन्शन रखना पड़े। क्योंकि निमित्त बनी हुई आत्माओं के ऊपर ही सभी की नज़र होती है। अगर निमित्त बने हुए ही ऐसे-ऐसे कारण कहते चलते तो दूसरे जो आपको देख आगे बढ़ते हैं, वह आप को क्या उत्तर देंगे? इस कारण से हम आ नहीं सकते, चल नहीं सकते। जब स्वयं ही कारण बताने वाले हैं तो दूसरे के कारण को निवारण कैसे करेंगे? क्योंकि लोग सभी जानने वाले हो गये हैं। जैसे यहाँ दिन-प्रतिदिन नॉलेजफुल बनते जाते हो, वैसे ही दुनिया के लोग भी विज्ञान की शक्ति से, विज्ञान की रीति से नॉलेजफुल होते जाते हैं। वह आप लोगों के संकल्पों को भी मस्तक से, नयनों से, चेहरे से चेक कर लेते हैं। जैसे यहाँ ज्ञान की शक्ति भरती जाती है, वहाँ भी विज्ञान की शक्ति कम नहीं है। दोनों का फोर्स है। अगर निमित्त बनने वालों में कोई कमी है तो वह छिप नहीं सकते। इसलिए तुम निमित्त बनी हुई आत्माओं को इतना ही विशेष अपने संकल्प, वाणी और कर्म के ऊपर अटेन्शन रखना पड़े।