अब है… पूजने के साथ पूजनीय बनने का समय

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परमपिता परमात्मा ज्ञान के सागर, सुख के सागर, शांति के सागर, सर्वशक्तिवान, प्रेम के सागर तथा खुशियों के भंडार हैं, तो भला उनका पुत्र, उनके बच्चे कैसे अशांत हो सकते हैं, कैसे अपने पिता के प्यार से वंचित रह सकते हैं! कैसे निर्धन, बलहीन हो सकते हैं!

मैं रोज़ उनपर दूध की लोटी चढ़ाता हूँ। मैं रोज़ पूजा-पाठ करता हूँ, ध्यान भी लगाता हूँ, और मैंने चारों धामों की यात्रा भी की, कथा भी करता हूँ, फिर भी मुझे जो चाहिए, वो संतुष्टता मुझे अपने जीवन में अनुभव नहीं होती। कहीं न कहीं ऐसा लगता कि मैं जो कर रहा हूँ, उसका सीधा तारतम्य मेरे जीवन के साथ नहीं जुड़ पा रहा है। मन में कभी-कभी विचार आता कि जिसको मैं पूजता हूँ, याद करता हूँ और खोजता हूँ, क्या मेरी कभी उनसे मुलाकात भी होगी! क्या मैं कभी उनसे बात भी कर सकूंगा! क्या मैं अपने दिल की बात उनसे कर अपने जीवन में सुकून महसूस कर सकूंगा! मेरी दिली इच्छा है कि मेरे जीवन में सुख, शांति, प्रेम, आनंद और समृद्धि सदा प्रचुर मात्रा में बनी रहे। क्या ऐसा भी कभी समय आयेगा!
मैंने शास्त्रों एवं पुराणों में भी पढ़ा कि परमात्मा का अवतरण होता है, और वो परकाया प्रवेश कर फिर से भक्ति का फल देने इस सृष्टि पर आते हैं। भक्ति का फल ज्ञान, अर्थात् समझ देते हैं कि तुझे जीवन मिला ही है खुशियों से जीने के लिए।
अब वे न सिर्फ अपना परिचय देते हैं, बल्कि स्वयं हमारा भी सही परिचय हमें देते हैं। साथ ही साथ हमारा और उनके बीच का सम्बन्ध क्या है, ये भी बताते हैं। जैसे कि हमारा और उनका सम्बन्ध पिता और पुत्र का ही होगा ना! भक्ति में हम गाते ही रहते हैं, त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव… लेकिन सम्बन्ध की पहचान न होने के कारण उनसे हम रूबरू हो नहीं पाते थे। अब वो कहता है, तुम जाने-अनजाने मुझे याद भी करते थे और पूजते भी थे। अब मैं आया हूँ, अब मुझे तथा स्वयं को वास्तविक स्वरूप में जान और पहचान कर मुझे याद करो। तुम सिर्फ पूजते ही न रहो, बल्कि मैं तो तुम्हें पूजनीय बनाने आया हूँ। तुम तो मास्टर हो ना! पिता ज्ञान के सागर, सुख के सागर, शांति के सागर, सर्वशक्तिवान, प्रेम के सागर तथा खुशियों का भंडार हैं, तो भला उनका पुत्र, उनके बच्चे कैसे अशांत हो सकते हैं, कैसे अपने पिता के प्यार से वंचित रह सकते हैं! कैसे निर्धन, बलहीन हो सकते हैं!
अगर किसी धनवान व्यक्ति की तरह हम भी धनवान बनने की इच्छा रखते हैं तो सिर्फ उसके नाम की माला जपने से तो नहीं बन जायेंगे ना! तो हमें भी उन जैसे कर्म करने होंगे, उन जैसे गुणों को अपने जीवन में अपनाना होगा। इसी तरह हमें भी अगर परमात्मा से मिलन मनाना है, तो न सिर्फ उन्हें पूजते ही रहना है, बल्कि उन जैसा पूज्य स्वरूप, देवत्व को अपने जीवन में धारण करना होगा। तभी हम उन जैसा और उनके लायक बन पायेंगे।

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