शास्त्रों में वर्णित महाकुंभ का साक्षात् दर्शन यहाँ…

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कहा जाता है कि अगर हमको शांति की स्थापना करनी हो तो हमको शांति धारण करनी पड़ती है। शांति के सागर परमात्मा शिव निराकार के साथ असंख्य मास्टर शांति के सागर आत्मायें निरन्तर उन्हीं प्रकंपनों को पूरे विश्व में एक साथ, एक समय पर फैला रहे हैं। परमात्मा का ये पावन धाम माउण्ट आबू जहाँ पर साक्षात उस महाकुंभ को हम अनुभव कर सकते हैं जिसका वर्णन शास्त्रों में है और उसकी नींव 1936 में पड़ चुकी है, अब जल्द ही होगी वो स्वर्णिम दुनिया साकार। आप दर्शन नहीं करना चाहेंगे!

एक मान्यता प्रचलित है कि जब किसी चीज़ का विरोध होता है तभी परिवर्तन होता है। परंतु आज के समय में वो परिवर्तन सर्वमान्य व स्थायी नहीं माना जाता, क्योंकि उसे सहज भाव से लोगों ने स्वीकारा नहीं होता है। मदर टेरेसा भी उन रैलियों में नहीं जाती थीं जहाँ विरोध होता था। उनका कहना था कि यदि आप शांति स्थापन करना चाहते हैं तो उसे शांति से करें न कि विरोध से। इसी श्रृंखला में भारत भूमि पर बड़े सहज व शान्तिमय तरीके से महापरिवर्तन आरंभ हो चुका है। स्वयं परमात्मा ने इसका बीड़ा उठाया है। सुनकर आपको आश्चर्य ज़रूर लग रहा होगा, लेकिन ये बात सम्पूर्ण रूप से सत्य है। अरावली की श्रृंखला में बसा एक पवित्र स्थान माउण्ट आबू, महापरिवर्तन के लिए एक अनुपम उदाहरण बन चुका है। यहां पर स्वयं संकट हर्ता, सुख दाता, सर्व आत्माओं के पिता परमपिता शिव परमात्मा निराकार ज्योतिर्बिन्दु अपने साकार माध्यम पिताश्री प्रजापिता ब्रह्मा के तन में अवतरित हो, ब्रह्मा वत्सों ब्रह्माकुमार व ब्रह्माकुमारियों के द्वारा महापरिवर्तन का कार्य युद्ध स्तर पर कर रहे हैं। यह परिवर्तन स्वैच्छिक है अर्थात् यहां कोई दबाव जबरदस्ती नहीं है। परमात्मा सबसे पहले सभी आत्माओं को उसके स्वयं का परिचय देते कि तुम एक सुंदर, शक्तिशाली, अविनाशी आत्मा हो। परन्तु बहुत काल से इस अज्ञानता के कारण अपने आप को शरीर समझते हो लेकिन इसके कारण ही दु:ख व अशांति का माहौल बना हुआ है। बस यही एक परिवर्तन है जो हमें उस स्वर्णिम संसार की तरफ ले जाएगा। जब सभी इस महापरिवर्तन में ये समझ लें कि ‘मैं एक अविनाशी शांत आत्मा हँू और मेरे अंदर मेरे अविनाशी सातों गुण मौजूद हैं, मैं सतोगुणी हँू’ बस यही हमें स्वर्णिम संसार की तरफ रुख करने में मदद करेगा।
यह कार्य करीब 9 दशकों से निरंतर जारी है। यहां पर देश-विदेश के बहुत सारे कर्णधारों ने परिवर्तन कर स्वर्णिम दुनिया में आने हेतु अपना पंजीकरण करा लिया है। महापरिवर्तन की इस पावन वेला में परमात्मा शिव आप सबका भी आह्वान कर रहे हैं। आओ मेरे लाडले बच्चों, मैं आपके लिए ही तो इस धरा, कलियुगी संसार को सतयुगी संसार बनाने के लिए अवतरित हुआ हूँ। पूरे विश्व के 140 देशों में लगभग 8000 सेवाकेन्द्र, उसमें पच्चीस हज़ार से भी अधिक समर्पित भाई एवं बहनें अपनी सेवाएं जनहित के कार्य के लिए दे रहे हैं। एक चरणबद्ध तरीके से परिवर्तन हेतु निरंतर राजयोग का अभ्यास और उससे सम्बंधित बातें सीखने से हम अपने जीवन में आमूलचूल परिवर्तन कर सकते हैं। तो आओ इस दिशा में अपना पहला कदम तो बढ़ायें…!

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