कुमार जीवन कमाल का जीवन…!!!

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हमने सुना है, पढ़ा है, स्टूडेंट लाइफ इज़ द गोल्डन लाइफ। पर उसमें भी हमारा जीवन बालब्रह्मचारी जीवन हो तो सोने पे सुहागा है। क्योंकि बालब्रह्मचारी जीवन होना इस जीवन का एक श्रेष्ठतम चिन्ह है। यह हमारी अनमोल निधि है। हमारा परम सौभाग्य है कि कुमार जीवन में हमें ईश्वरीय सानिध्य प्राप्त है। जिसकी सराहना स्वयं शिव बाबा ने प्रजापिता ब्रह्मा के मुखारविंद द्वारा की है। ऐसे जीवन में हमारे अन्दर उत्पन्न होने वाले हर सृजनात्मक संकल्प सही दिशा में हों तो कोई भी कार्य असम्भव नहीं। पहचानें इस अनमोल निधि को…

गीत की लाइन है ना कि ”बाबा तुम्हारी शिक्षायें सदा हैं संग हमारे…” लेकिन प्रश्न यह आता है कि इस विद्यार्थी जीवन में जब हम आगे बढ़ते हैं, तो कुछ अनुभव पाने के बाद वह शिक्षा सामने नहीं आती, भूल जाती है। अगर वो शिक्षा सदा हमारे संग रह जाये तो वह हमें फरिश्ता बनाने वाली, अव्यक्त स्थिति में ले जाने वाली है। वह शिक्षा इतनी शक्तिशाली है, इतनी महान् है कि पुराने जीवन को मुड़कर कभी नहीं देखेंगे और उसकी कभी याद आयेगी भी नहीं, लेकिन 63 जन्मों के पुराने संस्कार जो पड़े हुए हैं, वो सबसे पहले आक्रमण करते हैं कि वह शिक्षा सामने न आये।
यह जो कुमार जीवन है, इसकी कितनी महिमा है! कुमार जीवन है ही विद्यार्थी जीवन। शिक्षा को सदा संग रखने वाला जीवन। हमें याद आता है कि बाबा किस प्रकार बार-बार इस जीवन की महिमा करते थे! कई दफा बाबा, मम्मा से तुलना करते हुए कहते, देखो, मम्मा, बाबा से आगे है। फिर उदाहरण देते हुए बाबा कहते कि देखो, मम्मा ने वो सीढ़ी उतरी नहीं, बाबा सीढ़ी उतरा है और उनको चढऩा पड़ता है। बाबा की भाषा तो आप समझते ही हैं, इसका अर्थ आप समझ ही गये होंगे। बालब्रह्मचारी होना इस जीवन का एक श्रेष्ठतम चिन्ह है। यह हमारी अनमोल निधि है। यह हमारा परम सौभाग्य है कि कुमार जीवन में हम इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय में आ गये जिसकी सराहना स्वयं शिवबाबा ने ब्रह्मा के मुखारविन्द द्वारा की। भगवान भी इस जीवन की महिमा करता है कि ‘गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ इज़ द बेस्ट लाइफ'(ईश्वरीय विद्यार्थी जीवन सर्वोत्तम जीवन है)। स्टूडेन्ट लाइफ में भी यह जो बालब्रह्मचारी जीवन है, उससे श्रेष्ठ और कोई जीवन है ही नहीं। यह है हमारे जीवन की प्लस प्वॉइंट, एक जबरदस्त सहायक प्वॉइंट है। लेकिन जैसे एक सीढ़ी होती है, उससे चढ़ा भी जा सकता है और उतरा भी जा सकता है। वह दोनों कामों के लिए इस्तेमाल हो सकती है। यह जो हमारा कुमार जीवन है, इसमें एक मुख्य बात है एनर्जी ग्रोथ। हम विज्ञान में पढ़ते हैं, डॉक्टरी में भी बताते हैं कि इस जीवन का विशेष एक चिन्ह है, विशेष एक लक्षण है विकास होना। वे कहते हैं कि शरीर का विकास होता है। बचपन और जवानी में यही अन्तर है, जवानी में शरीर का विकास होता, ग्रंथियों का विकास होता है जिससे मनुष्य के हाव-भाव, चेहरा और उसकी आकृति-प्रकृति बदल जाती है। उसके आचार, विचार और संस्कार, मस्तिष्क पर प्रभाव डालने लगते हैं। उसकी ध्वनि पर, उसके जीवन पर प्रभाव पड़ता है। एक शब्द में कहें तो उसके विकास पर प्रभाव पड़ता है। वही एनर्जी है, वही उसके समग्र विकास की सीढ़ी है। अगर उस एनर्जी को विकास की तरफ सीढ़ी चढऩे के लिए इस्तेमाल न करें तो वही एनर्जी उतरने या पतन की ओर जाने की सीढ़ी है।
सार में, मनुष्य पतित बन जाता है, विकारी बन जाता है। मनुष्य किसी भी विकार के वश यदि हो, उसको पतित कहा जाता है। विकारों में जो सबसे पहले वाला है काम विकार, उसके वशीभूत को विशेष रूप से पतित कहा गया है। जो एनर्जी है उससे जो सीढ़ी नहीं चढ़ता बल्कि उससे उतरता है तो उसका नाम है पतन। हमें जो यह जीवन मिला है संगम का, इसमें सीढ़ी चढऩे में इस शक्ति का इस्तेमाल करें। यह तभी हो पाता है जब बाबा की शिक्षा सदा हमारे संग रहे। अगर सदा साथ न रहे तो मनुष्य की जो पुरानी आदतें हैं, पुराने संस्कार हैं वे उसको खींचकर ले जाते हैं। इस कुमार जीवन में जहाँ शरीर का विकास या एनर्जी ग्रोथ मुख्य गुण होता है, वहाँ दूसरी बात हमने यह भी देखी है कि मनुष्य की एम्बिशन(महत्त्वाकांक्षा) होती है कि इस जीवन में हम कुछ न कुछ कर लें। हरेक व्यक्ति में एक जोश होता है कि हम कुछ करके दिखायें। कोई न कोई नवीनता हम करके दिखायें, कोई न कोई काम करके दिखायें। जहाँ एनर्जी होती है, वहाँ एनर्जी को इस्तेमाल करने की बात आती है जिसको हम इच्छा कहें या आकांक्षा कहें। लेकिन आप देखेंगे कि अन्य मनुष्यों की मत में और शिवबाबा की मत में महान् अंतर है। इच्छा के बारे में भी वहाँ और यहाँ अन्तर है। जैसे मनुष्य कहेंगे, जगत् बना ही नहीं है। बाबा क्या कहते हैं? जगत् हमारे सामने है, बना हुआ कैसे नहीं? वो कहेंगे कल्प की आयु करोड़ों-अरबों वर्ष है, बाबा कहते हैं, केवल पाँच हज़ार वर्ष है। वे कहते हैं कि आत्मा निर्लेप है, बाबा कहते हैं कि लेप-क्षेप आत्मा को ही लगता है। यह सारा अन्तर है।
इसी प्रकार मनुष्य-आत्मायें क्या कहती रहीं? इच्छाओं का दमन करते रहो। इच्छा को दबाने की कोशिश करो। लेकिन बाबा ने हमें क्या कहा? इच्छा मात्रम् अविद्या बनो। लेकिन बिना इच्छा के कोई कार्य होता ही नहीं। जब मनुष्य कोई कार्य करता है, पहले-पहले उसके मन में इच्छा ही उत्पन्न होती है। लेकिन कुमार अवस्था, युवा अवस्था की सशक्तविशेषता है कि मनुष्य की आकांक्षायें, इच्छायें बहुत प्रबल होती हैं, उत्कट(तीव्र) होती हैं। एक नहीं, अनेक उत्कट इच्छायें हैं। यह कर डालें, वो भी कर डालें, फलानी परीक्षा भी पास कर लें। फलाने तरीके से पैसा भी कमा लें। फलाने तरीके से ईश्वरीय सेवा भी कर लें। ये भी कर लें, वो भी कर लें। मनुष्य इतने प्लैन्स तो कर लेगा फिर कर पायेगा या नहीं, वह अलग बात है लेकिन बुद्धि चलती है, एनर्जी होती है, मन करता है कि हम कुछ करें, हमारा समय व्यर्थ जा रहा है, हमारी शक्ति व्यर्थ जा रही है, लेकिन ईश्वरीय सेवा करने से हमारा सौभाग्य बन जाता है।


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