परमात्म ऊर्जा

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जब तक त्याग नहीं तब तक सेवाधारी हो नहीं सकेंगे। सेवाधारी बनने से त्याग सहज और स्वत: हो जायेगा। सदैव अपने को बिज़ी रखने का सही तरीका है। संकल्प से, बुद्धि से, चाहे स्थूल कर्मणा से जितना फ्री रहते हो उतना ही माया चान्स लेती है। अगर स्थूल और सूक्ष्म- दोनों ही रूप से अपने को सदैव बिज़ी रखो तो माया को चान्स नहीं मिलेगा। जिस दिन स्थूल कार्य भी रूचि से करते हो उस दिन की चेकिंग करो तो माया नहीं आयेगी, अगर देवता होकर किया तो। अगर मनुष्य होकर किया, फिर तो चान्स दिया। लेकिन सेवाधारी हो और देवता बन अपनी रूचि, उमंग से अपने को बिज़ी रखकर देखो तो कभी माया नहीं आवेगी। खुशी रहेगी। खुशी के कारण माया साहस नहीं रखती सामना करने का। तो बिज़ी रखने की प्रैक्टिस करो। कभी भी देखा आज बुद्धि फ्री है, तो स्वयं ही टीचर बन बुद्धि से काम लो। जैसे स्थूल कार्य की डायरी बनाते हो, प्रोग्राम बनाते हो कि आज सारा दिन यह-यह कार्य करेंगे, फिर चेक करते हो। इसी प्रमाण अपनी बुद्धि को बिज़ी रखने का भी डेली प्रोग्राम होना चाहिए। प्रोग्राम से प्रोग्रेस कर सकेंगे। अगर प्रोग्राम नहीं होता है तो कोई भी कार्य समय पर सफल नहीं होता। रोज़ डायरी होनी चाहिए। क्योंकि सभी बड़े ते बड़े हो ना! बड़े आदमी प्रोग्राम फिक्स करके फिर कहाँ जाते हैं। तो अपने को भी बड़े ते बड़े बाप के समझकर हर सेकण्ड का प्रोग्राम फिक्स करो। जिस बात की प्रतिज्ञा की जाती है, तो उसमें विल-पॉवर होती है। ऐसे ही सिर्फ विचार करेंगे, उसमें विल-पॉवर नहीं होगी। इसलिए प्रतिज्ञा करो कि यह करना ही है। ऐसे नहीं कि देखेंगे, करेंगे। करना ही है। जैसे स्थूल कार्य जितना भी ज्य़ादा हो लेकिन प्रतिज्ञा करने से कर लेते हो ना! अगर ढीला विचार होगा, न करने का ख्याल होगा तो कभी पूरा नहीं करेंगे। फिर बहाने भी बहुत बन जाते हैं। प्रतिज्ञा करने से फिर समय भी निकल आता है और बहाने भी निकल जाते हैं। आज बुद्धि को इस प्रोग्राम पर चलाना ही है- ऐसी प्रतिज्ञा करनी है। भिन्न-भिन्न समस्याएं, पुरुषार्थहीन बनने के व्यर्थ संकल्प, आलस्य आदि आयेंगे लेकिन विल-पॉवर होने कारण सामना कर विजयी बन जायेंगे। यह भी डेली डायरी बनाओ, फिर देखो, कैसे रूहानी राहत देने वाले रूह सभी को देखने में आयेंगे। रूह क्रआत्माञ्ज को भी कहते हैं और रूह क्रइसेन्सञ्ज, को भी कहते हैं। तो दोनों हो जायेंगे। दिव्य गुणों के आकर्षण अर्थात् इसेन्स, वह रूह भी होगा और आत्मिक स्वरूप भी दिखाई देंगे। ऐसा लक्ष्य रखना है। तो रूप की विस्मृति, रूह की स्मृति। बिल्कुल ऐसा अनुभव हो जैसे यह शरीर एक बॉक्स है। इनके अन्दर जो हीरा है उनसे ही सम्बन्ध स्नेह है। तो निवास स्थान का भी आधार लेकर स्थिति को बनाओ।

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