एक बार एक चिडिय़ा अपना खाना चौंच में दबाकर ले जा रही थी,उसकी चौंच से पीपल के पेड़ का बीज नीम के तने में गिर गया। उस बीज को नीम से भरपूर पोषक तत्व, पानी और मिट्टी मिल गई और वो पीपल का बीज पनपने लगा और नीम के आश्रय में बड़ा होने लगा चूँकि वह नीम पर आश्रित था इसलिए उसे फलने-फूलने एवं उसकी जड़ों को पर्याप्त जगह नहीं मिल रही थी। उसका विकास ठीक से नहीं हो पा रहा था।
एक दिन पीपल को गुस्सा आया और उसने नीम से लडऩे की ठानी और बोला- ऐ! दुष्ट तू खुद तो फैलता ही जा रहा है। तेरा कद गगन छू रहा है और जड़ें पसरे जा रही हैं और मुझे तू ज़रा भी पनपने नहीं दे रहा। मुझे भी जगह और खनिज दे वरना तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।
उसकी बात खत्म होने पर नीम ने हँसकर उत्तर दिया, हे मित्र! दूसरों की दया पर इतना ही विकास संभव है और अगर अधिक की अपेक्षा है तो स्वयं का भार खुद वहन करो, अपनी नींव बनाओ, अपने पैरों पर खड़े हो। यह सुनकर पीपल को बहुत गुस्सा आया पर बात सच थी इसलिए वो बस नीम को कोसने में लगा रहा।
एक दिन बहुत आंधी तूफान आया। नीम का वृक्ष तो ज्यों का त्यों खड़ा रहा, लेकिन वह आश्रित पीपल अपनी कमज़ोरी के कारण धराशाही हो गया और ज़मीन चाटने लगा। उसका क्षण का अस्तित्व भी खत्म हो गया। तभी दूर से एक बुजुर्ग ये सब देख रहा था। उन्होंने ये देख कर कहा- जो दूसरों के बल पर अपना आशियाना बनाते हैं वो इसी तरह मुँह के बल गिरते हैं।
शिक्षा : कभी-कभी परिस्थिति वश हम दूसरों पर आश्रित हो जाते हैं, लेकिन अगर हम उसे अपना हक मानने लगें तो गलत है, क्योंकि किसी की योग्यता का पता तब ही चलता है जब वह स्वयं के बल पर कुछ करता है।