एक सिद्ध आचार्य अपने शिष्यों के साथ तीर्थ यात्रा पर निकले। कुछ देर चलने के बाद वे थकान निकालने बीच घने जंगल में ही रूक गये। इतने में आचार्य को कुछ आवाज़ें सुनाई दी। ध्यान से सुनने पर आचार्य को समझ आया कि यह कुछ लोगों के रोने की आवाज़ है। उन्होंने शिष्यों को बोला बालकों! सुनो ये आवाज़ें कहाँ से आ रही हैं? तब शिष्य एक-दूसरे का मुँह देखने लगे क्योंकि उन्हें कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। फिर भी गुरु के आदेशानुसार उन्होंने थोड़ी दूरी पर आकर देखा।
केवल आचार्य को एक गहरे, अंधेरे कुएँ से कुछ लोगों के रोने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। आचार्य ने कुएँ में झाँक कर देखा तो उन्हें 5 लोग बहुत ही बुरी दशा में रोते हुए दिखाई दिए, लेकिन शिष्यों को ना आवाज़ सुनाई दी और ना ही कुछ दिखाई दिया।
तब आचार्य ने उन पाँच लोगों को मुस्कुराते हुए देखा और पूछा- भाई किन कर्मों का भोग रहे हो? तब वे पाँचों और ज़ोर-ज़ोर से रूदन करने लगे।
तब आचार्य ने शिष्यों को बताया- यहाँ 5 प्रेत आत्मायें हैं। यह सुनकर शिष्य डर गये। तब आचार्य बोले बालकों डरो नहीं। तुम सभी इनसे ज्य़ादा शक्तिमान हो क्योंकि तुम सब कर्मों से महान हो और ये सभी आज अपनी पिछली करनी का भोग रहे हैं। आज के समय में इनसे दुर्बल कोई नहीं है।
तब शिष्य ने पूछा, इन्होंने क्या किया है? तब पहली आत्मा ने उत्तर दिया कि वह पिछले जन्म में ब्राह्मण था। भिक्षा मांगता था लेकिन उस भिक्षा को भोग विलास में खर्च करता था। दूसरे ने उत्तर दिया वह क्षत्रिय था और अपनी शक्ति का दुरुपयोग निर्बल, असहाय गरीबों पर करता था। तीसरे ने उत्तर दिया कि वो बनिया था। बस खुद के फायदे की सोचता था और हमेशा मिलावट करके सामान बेचता था। जिस कारण कई लोग मारे गये। चौथे ने उत्तर दिया वह क्षुद्र था। बहुत आलसी और जि़म्मेदारी से भागता था। अपने माता-पिता को पिटता था और दिन-रात नशा करता था। पाँचवें ने उत्तर दिया वह एक लेखक था। अश्लील कथायें लिखता था। उसने समाज को वासना का पाठ सिखाया था। इस तरह वे सभी पापी अपने पापों को भोग रहे हैं। उन्होंने आचार्य से निवेदन किया। आप गुरु हैं आप दुनिया वालों को समझायें कि बुराई का रास्ता क्षण की खुशी देता है, लेकिन इसका दंड कई जन्मों तक अंधकार में भोगना पड़ता है।
शिक्षा : मनुष्य को कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है फिर वो किसी भी जन्म में हो। कहते हैं जिस तरह ईश्वर हैं वैसे ही भूत भी होते हैं लेकिन वे जितने दुर्बल होते हैं उतना कोई नहीं। व्यक्ति कितना भी इतरा जाये, नियति उसके कर्मों का हिसाब रखती ही है,इसलिए सदैव सद्मार्ग पर चलें अगर गलती हुई भी है तो उसे सुधारें।