महाशिवरात्रि अर्थात शिवोदय एवं आत्मोन्नति का पर्व – ब्र. कु. प्रफुल्लचंद्र

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दुनिया का सबसे पुराना देश भारत, त्योहारों का देश है। भारत में मनाए जाने वाले लगभग हर त्यौहार के पीछे एक निश्चित आध्यात्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक रहस्य छिपा होता है। इसलिए देश में मनाया जाने वाला हर त्योहार इंसान में एक नई चेतना जगाता है। जीवन को आशाओं  से भर देता है। मनुष्य को अवसाद, निराशा, दु:ख, शोक, अशांति और आलस्य से मुक्त कर उसमें नवजीवन का संचार किया जाता है। सालभर में पड़ने वाले अनेक पर्वों में शिवरात्रि के पर्व का एक विशेष महत्व है। क्योंकि शिवरात्रि अर्थात शिव जयंती, भगवान शिव के अवतरण का पर्व है। हम सभी जानते है और स्वीकार भी  करते हैं कि परमात्मा शिव ज्योति स्वरूप है, जिसकी वैदिक काल से ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा होती हैl स्वयं श्री राम, श्रीकृष्ण, ब्रह्मा-विष्णु-शंकर जैसे त्रिदेव, देवों के गुरु बृहस्पति और दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य के भी वो आराध्य रहे हैं । राक्षसराज रावण ने भी उन्ही की आराधना की थी और वरदान प्राप्त किये थे l विश्व के सभी धर्म स्थापकों के भी वो आराद्य रहे है l सर्व मनुष्य आत्माओं के परमपिता परमात्मा  शिव का स्वीकार, निराकार, अजन्मा, अकर्ता, अभोगता  और अव्यक्त  रूप में किया गया है। यानी उनका कोई दैहिक रूप नहीं है। इसीलिए ज्योति स्वरूप परमात्मा शिव की लिंग के रूप में स्थापना करके पूजा की जाती है । यह महाज्योति स्वरूप परमात्मा शिव के अवतरण की यादगार में महाशिवरात्रि का पर्व शिवजयंती के रूप में मनाया जाता है
      शिवरात्रि में रात्रि शब्द बहुत ही सूचक है। अर्थात शिव अवतरण का रात्रि के साथ कुछ संबंध है। यह रात कौन सी रात है? इसे समझने के लिए हमें पृथ्वी रंगमंच पर पुरुष, प्रकृति और परमात्मा के बिच खेले जा रहे अनादि, अविनाशी विश्व नाटक के चक्र को समझना होगा। इस चक्र को दो भागों में बांटा गया है ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात। ब्रह्मा के दिन के दो भाग सतयुग और त्रेतायुग हैं और ब्रह्मा की रात के दो भाग द्वापरयुग और कलियुग हैं। इन चारों युगों का चक्र अनादि काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक चलता रहेगा। इस चक्र में ब्रह्मा का दिन यानि सतयुग , त्रेतायुग ज्ञान रूपी प्रकाश का प्रतीक है और ब्रह्मा की रात यानी द्वापरयुग, कलियुग अज्ञान रूपी अंधकार का प्रतीक है। उसमें भी कलियुग का अंतिम समय घोर अंधकार का समय है। इस समय संसार भर में दुख, अशांति, भय, चिंता, हिंसा, दुष्कर्म, पापाचार  और भ्रष्टाचार होता है। ऐसे समय में स्वयं भगवान शिव, गीता में दिए हुए अपने वचन  अनुसार, सृष्टि परिवर्तन अर्थ अवतरण करते है और कलियुगी दुनिया का विनाश  कर एक नई दुनिया-सतयुग की स्थापना करते है। अज्ञान रूपी  घोर अंधकार के समय भगवान शिव ब्रह्मा के साकार तन में अवतरित होते हैं।
      अगर आप आज के समय को देखेंगे तो आप निश्चित रूप से इस बात से सहमत होंगे कि आज का यह वर्तमान समय कलयुग का अंतिम  घोर अंधकार का समय है। ऐसे समय पर भगवान शिव ब्रह्मा के शरीर में अवतरित हो चुके हैं और हम सब आत्माओं को ज्ञान और योग की शिक्षा दे कर, हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे महाविकारों से मुक्त कर, एक नयी सतयुगी दुनिया की स्थापना कर रहे हैंl ऐसे समय पर शिवरात्रि का महत्व बढ़ जाता है।   वर्तमान समय परमात्मा शिव जब विश्वपरिवर्तन अर्थ कार्यान्वित है तब सच्ची  शिवरात्रि मनाई कही जाएगी जब हम शिव परमात्मा की ज्ञान योग की शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाए और दिव्य गुणों को धारण कर जीवन को श्रेष्ठ बनाएं।
       शिवरात्रि पर सामान्य रूप से हम शिव मंदिर में जाकर अनेक प्रकार से पूजा-अर्चन करते हैं। लेकिन ये क्रियाएं अधिक सार्थक और लाभकारी तब होंगी जब हम वर्तमान समय में भगवान शिव द्वारा दिए जा रहे ज्ञान-योग की शिक्षा को समझें।
    • भगवान शिव के शिवलिंग पर चंदन से बनी तीन आड़ी रेखा जिस को त्रिपुंड कहा जाता है उस का भी आध्यात्मिक रहस्य है। सृष्टिचक्र के कलियुग के अंत में परमात्मा शिव अवतरित हो कर, तीन देवताओं के माध्यम से, मुख्य रूप से तीन कर्तव्य करते हैं। शंकर द्वारा कलियुग तमोप्रधान सृष्टि का विनाश, ब्रह्मा द्वारा नई सतयुग दुनिया की स्थापना और विष्णु द्वारा नई सतयुग दुनिया की पालना। त्रिपुंड भगवान शिव द्वारा तीन देवताओं के माध्यम से किए गए इन तीन कर्तव्यों की ही यादगार है।

    • शिव का अर्चन-पूजन तीन पत्तों वाले बेलपत्र  को चढ़ाकर किया जाता है। यह भी सांकेतिक है। वास्तव में, भगवान शिव उस व्यक्ति से प्रसन्न होते हैं जो स्वयं को मन, वचन और कर्म से  भगवान शिव को समर्पित करता है। यदि हम इस समझ और भावना के साथ बेलपत्र चढाते हैं तो हम पर भगवान शिव की अधिक कृपा बनी रहेगी।

    • शिवलिंग के ऊपर जलाधारी से बहने वाली जल धारा भगवान शिव की ब्रह्मा के मुख द्वारा निकली ज्ञानधारा  का प्रतिक है। भगवान शिव की महिमा का रहस्य ज्ञान के इन बिंदुओं के स्मरण में निहित है। शिवलिंग पर दूध चढ़ाना भी शुद्ध मन से शिव के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

    • शिव मंदिर में प्रवेश करते ही पहले नंदी की प्रतिमा नजर आती है। नंदी भगवान शिव का वाहन माना जाता है। दरअसल, कलियुग के अंत में भगवान शिव ब्रह्मा के शरीर में अवतरित होते हैं। तो यह नंदी वास्तव में ब्रह्मा की यादगार है।

    • शिवलिंग के गर्भ द्वार के पास कछुए की एक प्रतिमा भी स्थापित होती है। कछुए की विशेषता यह है कि वह अपना काम करने के बाद अपने अंगों को समेट लेता है। उसी प्रकार भगवान शिव की आराधना के लिए हमें भी अपने मन को सभी बातों से समेट कर कछुए की तरह मन को एकाग्र करने की आवश्यकता है।

    • देवताओं के मंदिर में जाने के लिए सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जबकि शिवलिंग तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं। इसमें भी अंतर्मुखी हो कर आत्मनिरीक्षण कर शिव को प्राप्त करने का संकेत है।

    • देवताओं के मंदिर में देवता की मूर्ति  को  मुख्य द्वार से प्रवेश करा कर  स्थापित की जाती है, जबकि शिवलिंग को मंदिर के ऊपर के हिस्से से नीचे उतार कर स्थापित किया जाता है। इसके पीछे का रहस्य यह है कि ज्योतिबिन्दु परमात्मा शिव परमधाम से अवतरित होते हैं, जब कि सतयुग में देवी-देवता पृथ्वी पर माँ के गर्भ से जन्म लेते हैं।

      यदि हम महाशिवरात्रि के उपरोक्त आध्यात्मिक रहस्यों को समझकर पर्व मनायेंगे तो यह पर्व अधिक सार्थक एवं फलदायी होगा।

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