शांति की गहन अनुभूति के लिए यह सहज योगाभ्यास करके देखें- बी.के प्रफुलचंद्रयु एस ए

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आज के इस अतिशय भौतिकवादी एवं तेज रफ़्तार जीवन में इंसान अपनी शांति खो बैठा है| उसका मूल कारण यह है कि पिछले कई जन्मों से इन्सान काम, क्रोध लोभ, मोह, अहंकार, स्वार्थ, इर्ष्या, द्वेष, नफरत जैसे विकारों के वशीभूत होकर कर्म करते आया है| परन्तु मनुष्य आत्मा का आदि-अनादि स्वभाव शांति है| इसलिए उसे शांति पसंद है, वह शांति चाहता है| आज विश्व में प्रत्येक व्यक्ति शांति के लिए तरस रहा है, ऐसा कहें तो भी यह गलत नहीं होगा|

हमारे ऋषि मुनियों ने तथा तत्वचिंतको ने शांति की अनुभूति के लिए अनेक प्रकार के ध्यान तथा योग के अभ्यास बताएं हैं| आंतरिक शांति की गहन अनुभूति करना यही प्राय सभी ध्यान के अभ्यास का उद्देश्य रहा है| इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हजारों वर्षों से अनेक मनुष्य आत्माएं ध्यान वा साधना करती रही हैं| परंतु आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित ध्यानाभ्यास किया जाए तो गहरी शान्ति की अनुभूति सहज हो जाती है | शांत स्वरूप आत्मा के चिंतन तथा दर्शन द्वारा; राजयोग के अभ्यास द्वारा शांतिसागर परमात्मा के साथ जुट जाने से; तथा आत्मा के अपने घर शांतिधाम के साथ के अनुसंधान से सहज रीति से नीरव और गहन शांति की अनुभूति हम कर सकते हैं| तो आइए हम ऐसा एक अभ्यास करके गहन शांति की अनुभूति करने का प्रयास करें|

ध्यान के लिए अभ्यास:

किसी भी आरामदायक आसन या स्थिति में बैठें| अपने शरीर तथा मन को संपूर्ण रूप से रिलेक्स कर दें| उसके बाद दोनों नासिका से गहरे साँस लेना शुरू करें| अपनी साँस लेने की गति को एक मिनट में १२ से १५ जितने साँस की कर दें| ऐसा करने से एक साँस की क्रिया के लिए साढ़े चार से पाँच सेकंड मिलेंगे| इस समय के दौरान नीचे दी गई चार क्रियाएं करनी हैं| दोनों नासिका के द्वारा करीब डेढ़ सेकंड में या 4 काउन्ट के लिए साँस अंदर लें| उसके बाद आधा या पौन सेकंड के लिए या दो काउन्ट के लिए साँस को फेफड़े में रोककर रखें| उसके बाद करीब दो सेकंड में अथवा 5 काउन्ट के लिए साँस को हल्के से धीरे-धीरे दोनों नासिका से बाहर निकालें| उसके बाद साँस का दूसरा नया चक्र शुरू करने से पहले आधा से पौन सेकंड या दो काउन्ट के लिए रुक जाएं|

साँस की इस पूरी क्रिया को पेट यानि उदर से करना है, इसीलिए इसे उदरीय श्वसन क्रिया भी कहा जाता है| जब आप साँस को अन्दर लें तब पेट को हल्के से बाहर आने दें और जब आप साँस को बाहर निकालते हैं तब पेट को अंदर की और जाने दें| साँस की रिधम सेट होने के बाद अब आप पूरा ध्यान साँस पर केन्द्रित कर दें| साक्षीभाव से, शांत चित्त से, प्रेम पूर्वक अंदर जानेवाली साँस को तथा बहार निकलते हुए उच्छ्वास को देखा करें | ध्यान साँस पर केन्द्रित रखकर अंदर जानेवाली साँस के तथा बाहर निकलनेवाले उच्छ्वास के प्रवाह के स्पर्श का तथा उसकी संवेदना का अनुभव दोनों नासिका की अंदर की दीवार पर करें| ऐसा अनुभव हो तो समझे कि आपका ध्यान केन्द्रित हो रहा है |

यदि अपनी साँस पर की एकाग्रता को और बढ़ाएंगे तो दूसरा एक अनुभव होगा | जो साँस आप अंदर ले रहे हैं वह औसतन ठंडा होता हैं और जो उच्छ्वास आप बाहर निकाल रहे हैं वह थोडा गर्म होता है | शांतचित्त होकर अब अन्दर जानेवाले साँस की ठंडक का तथा बाहर निकलनेवाले उच्छ्वास की गरमाहट का अनुभव नासिका की अंदर की दिवार पर करनेका प्रयास करें | यदि यह अनुभव हो तो मान सकते है कि निश्चित रूप से आपका मन शांत हो गया है, स्थिर हो गया है तथा एकाग्र हो गया हैं | आपके पैर से सिर तक के सभी स्नायुओं को ढीला छोड़ दें और शिथिलता का भी अनुभव करें |

आत्मिक स्थिति में स्थित होकर शांति की अनुभूति करना:

ऊपर की क्रिया से एकाग्र हुए मन को अंदर की तरफ मोड़कर मस्तिष्क के केंद्र बिंदु पर स्थिर कर दें और उस स्थान पर स्वयं का एक स्वयंप्रकाशित बिंदु के रूप में आत्मदर्शन करें | फिर नीचे दिए गए आत्मचिंतन के अनुसार चिंतन कर शांति का अनुभव करें |

“पाँच जड़ तत्वों से बने हुए इस नाशवंत शरीर से भिन्न मैं एक स्वयं प्रकाशित ज्योतिबिंदु स्वरूप आत्मा हूँ…. यह शरीर तो मेरे लिए एक वस्त्र मात्र है, जिसको मैं इस बेहद के विश्वनाटक में अभिनय करने के लिए धारण करती हूँ…. यह शरीर नाशवंत है, लेकिन मैं आत्मा तो अजर, अमर, अविनाशी तथा शाश्वत और सनातन हूँ…. मुझ आत्मा के मूलभूत सात गुणों में से शांति मेरा मुख्य स्वधर्म है….शांति मेरा असली स्वभाव है.. ..शांति मेरी व्यक्तिगत पूंजी है… कोई इसको मुझसे छीन नहीं सकता है….. मैं एक शांत स्वरूप आत्मा हूँ ….. शांति से भरपूर हूँ…. जिस शांति को मैं बाहर ढूढ रही थी, वह शांति तो मेरे गले का हार है….. मुझ आत्मा के पिता परमात्मा शांति के सागर हैं….मैं उसकी संतान मास्टर शांति सागर हूँ…..मैं आत्मा गहन तथा दिव्य शांति का अनुभव कर रही हूँ….”

शांतिधाम में स्थित होकर शांति का अनुभव करना:

“पाँच तत्वों से बनी हुई इस साकरी दुनिया से परे एक निराकारी दुनिया भी है जो की परमधाम है और नीरव शांति की दुनिया भी है….. वही मेरा असली घर है…..जहाँ से मैं इस साकरी दुनिया में अभिनय करने आई हूँ…..अब मैं ज्योतिबिंदु आत्मा मेरे इस शरीर रूपी वस्त्र को इस साकरी लोक में छोड़कर ऊपर मेरे मूलवतन शांतिधाम तरफ उड़ रही हूँ… साकरी दुनिया की सीमा को पार करते हुए अब मैं आत्मा शांतिधाम में प्रवेश कर रही हूँ…..यहाँ चारों तरफ दिव्य सुनहरा लाल प्रकाश छाया हुआ है… कोई भी आवाज नहीं है….. कोई कर्म नहीं है….. सर्वत्र मात्र शांति….. शांति….. बस शांति ही है…मैं अगाध शांति…. गहन शांति…..नीरव शांति का अनुभव कर रही हूँ….. मेरे चारों तरफ शांति की तरंगे फ़ैल रही हैं …..”

शांति के सागर परमात्मा शिवपिता के सानिध्य में शांति की अनुभूति करना:

“इस शांतिधाम में मुझ आत्मा के सामने शांति के सागर, मेरे प्यारे पिता परमात्मा शिव दिव्य ज्योतिबिंदु स्वरूप में विराजमान हैं….. इस दिव्य सितारा समान परमात्मा शिव में से शांति की शक्तिशाली तरंगे चारों तरफ प्रवाहित हो रही हैं….. इन में से कई तरंगे मुझ आत्मा को स्पर्श कर रही हैं…. मुझ में समा रही हैं…… मैं आत्मा शांति से भरपूर हो रही हूँ…. मैं शांतिसागर की लहरों में अनंत शांति…..अनहद शांति का अनुभव कर रही हूँ…..”

समग्र विश्व में शांति फैलाकर शांति की अनुभूति करना:

शांति से संपन्न हुई मैं बिंदु स्वरूप आत्मा साकार सृष्टि में वापस आ गई हूँ … आकाश में स्थित होकर समूचे पृथ्वी ग्रह को में निहार रही हूँ… शांति से संपन्न मुझ आत्मा से शांति की असंख्य किरणें पुरे विश्व में चारो तरफ फ़ैल रही हैं… पृथ्वी की प्रत्येक मनुष्य आत्मा, प्रत्येक छोटी-बड़ी जिवसृष्टि तथा पाँचों तत्वों तक ये शांति की किरणें पहुँच रही हैं तथा उनमें समां रही हैं….. वे सभी भी परम शांति का अनुभव कर रहे हैं….. समूचा वातावरण शांत बन रहा है, मुझे विश्वास है कि थोड़े समय में सारे विश्व में अविनाशी शांति का साम्राज्य स्थापित होगा और यह विश्व स्वर्ग बन जायेगा….”

……ॐ शांति,,, शांति… शान्ति…..

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