इन सुन्दर संकल्पों से बनायें प्युरिटी को स्ट्रॉन्ग

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मैंने जब ये सब अभ्यास किए शुरु में तो मैं एक कहावत याद किया करता था कि जिस पेड़ के आम नहीं खाने तो उसके पत्ते गिनने से क्या लाभ! तो जिस पथ पर हमें चलना ही नहीं है,जिसे हम छोड़ आये, खत्म हो गया। थूक कर चाटा थोड़े ही जाता है!

हम सभी पवित्रता के मार्ग पर अग्रसर हैं। स्वयं पतित पावन भगवान हमें पावन बनाने के लिए आ गए हैं। उनकी आज्ञाओं पर चलकर हम अपने मन को, बुद्धि को विशुद्ध करेंगे। लाखों भाई-बहनों ने तो अपने चित्त को शुद्ध और शांत कर लिया है। ये देश को महान बनाने का सर्वोत्तम आधार है। लेकिन बहुतों के जीवन में युद्ध चलता है। हम जानते हैं कि हमारा एक-एक संकल्प ही तो हमें बहुत कुछ बना देता है। हमारे मन में उमंग हो कि मुझे रोज़ आठ घंटे कर्म में योग करना है। तो बहुत सारी बातें पीछे छूट जायेंगी। उमंग-उत्साह रहेगा तो व्यर्थ संकल्प तो शांत ही हो जायेंगे। उमंग-उत्साह के पंख, लक्ष्य की दृढ़ता हमारे विचारों को शांत और पॉजि़टिव कर देती है। ईश्वरीय नशा और खुशी, सम्बंधों में प्रेम, बहुत सुन्दर हमारा दृष्टिकोण, जिसको वृत्ति कहते हैं ये सब हमारे चित्त को व्यर्थ से मुक्त करते हैं। इन पर हमें बहुत ध्यान देना है, और जो मुक्त हो गये वो तो मुक्ति के अधिकारी हो गये। जो व्यर्थ से मुक्त हो गये वो समर्थ संकल्पों से अपने को बहुत समर्थ अर्थात् पॉवरफुल बना लेते हैं।
तो पहले हम ले रहे हैं काम वासना से सम्बन्धित व्यर्थ संकल्प। जो बहुतों को चलते हैं। कईयों को पास्ट का जीवन याद रहता है। किसी का गंदगी से भरपूर बीता है तो वो चित्र बार-बार सामने आते रहते हैं। उन्हें भुलाना ही पड़ेगा। इन व्यर्थ संकल्पों से बचने की बाबा ने तो बहुत ही सहज विधि बता दी। एक ही विधि जो भी पाप हो लिखकर भगवान के आगे अर्पित कर दो। उसके कक्ष में रख दो या सच्चे मन से उसको सुना दो। और मुक्त हो जाओ। लेकिन हमें भूलने का प्रयास भी करना है। देह का आकर्षण बहुतों में रहता है,क्योंकि देह का भान बहुत ज्य़ादा रहता है तो दूसरों की देह का आकर्षण बना ही रहेगा। जो अनेक व्यर्थ संकल्पों को जन्म देता है। अपने देह का लगाव जैसे-जैसे कम होगा, वैसे-वैसे दूसरों के देह का लगाव भी कम होता जायेगा। हमें याद रहेगा सबमें आत्मायें हैं। आत्मा ने एक शरीर छोड़ दूसरा लिया है, तीसरा लिया है, चौथा लिया है कभी कोई नर बना है तो कोई नारी। ये देह तो विनाशी है, मुझे देह को नहीं देखना है। मस्तक में चमकती हुई आत्मा को देखना है, मणि को देखना है। तो देह का भान, देह का आकर्षण समाप्त होता जायेगा।
मैं कुछ दिन से ये बात सबको कह रहा हूँ कि जो सम्पूर्ण पवित्र बनना चाहते हैं, तो वो अपनी काम वासनाओं की इच्छाओं को चेक करें और उनका त्याग करें। जब हमने वो मार्ग छोड़ दिया और भगवान से प्रतिज्ञा कर ली, उसको वचन हमने दे दिया कि आपके पवित्र मार्ग पर ही हमें चलना है। यही हमारा जीवन है। जब हमें स्मृति आ गई कि दो युग हम सम्पूर्ण निर्विकारी देवता थे।

अब उस मार्ग पर हम क्यों जायें? और जिस मार्ग पर हमें जाना ही नहीं है तो उसके लिए सोचें क्यों? मैंने जब ये सब अभ्यास किए शुरु में तो मैं एक कहावत याद किया करता था कि जिस पेड़ के आम नहीं खाने तो उसके पत्ते गिनने से क्या लाभ! तो जिस पथ पर हमें चलना ही नहीं है,जिसे हम छोड़ आये, खत्म हो गया। थूक कर चाटा थोड़े ही जाता है! थूक दिया विकारों को। संकल्प करें कि मैं तो परम पवित्र आत्मा हूँ, मैं तो ओरिज़नली सम्पूर्ण पवित्र हूँ। विकार आये हैं बीच में, अब पुन: पतित पावन सर्वशक्तिवान पावन बनाने आये हैं, तो मुझे पावन बनना है। तो ये एक ही संकल्प अनेक व्यर्थ संकल्पों को समाप्त करेगा।
हम जितना-जितना अपने योग अभ्यास को बढ़ायेंगे हमारा योगबल इन विकारों के बल को जलाकर समाप्त करेगा। योगबल सबसे बड़ी चीज़ है। हमारी शक्तियां बढ़ेंगी जिसको हम मनोबल कहते हैं। और हम अपनी वासनाओं को कंट्रोल कर सकेंगे। कर्मेन्द्रियों का जो रस है, जो क्षणिक सुख इन विकारों में मिलता है वो हमें बेकार लगने लगेगा। परम सुख का, परम आनंद का अनुभव हमें होने लगेगा। एक और बहुत अच्छी बात सबकॉन्शियस माइंड की, कई बार आपको सुनाई है लेकिन इसको जीवन में पक्का करना है। सवेरे जैसे ही उठें, शिव बाबा को गुड मॉर्निंग करें, फील करें उसका वरदानी हाथ मेरे सिर पर आ गया है। और उसने मुझे वरदान दे दिया कि सम्पूर्ण पवित्र भव। उसके हाथ से पवित्र किरणें मेरे तन-मन में समाने लगी हैं। क्योंकि तन को भी पवित्र करना है, कर्मेन्द्रियों को भी शीतल करना है। तन में भी जो विकारों के हार्मोन्स हैं, जो अग्नि जल रही है उसको भी बुझाना है और आत्मा को भी मूल स्थिति में ले चलना है। चार संकल्प करने हैं- पहला, मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, दूसरा, मैं विजयी रत्न हूँ, तीसरा मैं कामजीत हूँ, और चौथा मैं परम पवित्र हूँ। इसी क्रम से पाँच-सात बार सच्चे मन से, गुड फीलिंग के साथ ये संकल्प कर लें, तो काम वासना पर विजय होती जायेगी। पवित्र संकल्प जाग्रत होते जायेंगे। तो अपवित्र संकल्प स्वत: ही नष्ट होते जायेंगे।
संकल्प करना है कि मुझे पवित्रता के वायब्रेशन्स से प्रकृति को पावन करना है, मुझे अपनी पवित्रता के बल से सत्य देवी-देवता धर्म की स्थापना में मदद करनी है। मेरे पवित्र वायब्रेशन देव कुल की आत्माओं को आकर्षित करेंगे। मेरे पवित्र वायब्रेशन्स मुझे निरोग करेंगे। मेरे पवित्र वायब्रेशन्स जीवन में सुख-शांति लायेंगे, परिवार में सुख-शांति लायेंगे। मेरे पवित्र वायब्रेशन्स समस्त तारामंडल-ग्रहों को पावन करेंगे। जिसे हम दृष्टि देंगे उसे पवित्र वायब्रेशन्स जायेंगे। मुझे तो पवित्र बनना है बाबा ने कह दिया है सम्पूर्ण पवित्र आत्मायें दूसरों को दृष्टि देकर निरोग कर सकेंगी। मुझे तो ये महान कार्य करने हैं,संसार जिस गंदगी की ओर बह रहा है, संसार जिस गंदगी में आंनद ले रहा है मेरे लिए विषतुल्य है, अब मुझे तो अमृत पान करना है। अमृत बांटना है, ईश्वरीय सुखों का रसपान करना है। इसी में परमानंद है। ये सुन्दर संकल्प हमारी प्युरिटी को स्ट्रॉन्ग करेंगे और व्यर्थ संकल्पों को समाप्त करेंगे।

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