व्यर्थ विचारों का तूफान ऐसा है कि जब एक बार चालू हो जाये, तो क्या होता है? रूकने का नाम नहीं लेता और ऐसे समय में अगर योग किया तो क्या होगा…
बाबा ने एक मुरली में हमें इन दो बातों को अंडरलाइन कराया था। एक है सम्पूर्ण पवित्रता की बात और दूसरी, सेकण्ड में फुलस्टॉप लगाना। जब बाबा ने कहा कि बच्चे व्यर्थ भी एक प्रकार की इम्प्युरिटी है तो व्यर्थ संकल्प यानी सम्पूर्ण पवित्रता को देखना है तो उसका आधार यही है कि हमारे जो मन के संकल्पों की ब्रेक है वो पॉवरफुल होनी चाहिए। तो उसके लिए बाबा ने कहा सेकण्ड में फुलस्टॉप लगाने का अभ्यास ज़रूर हो। तभी सम्पूर्ण पवित्रता की ओर हम आगे बढ़ सकते हैं। अगर व्यर्थ अंदर चलता रहे, चलो, ब्राह्मण बनने के बाद निगेटिव बहुत न के बराबर हो गया। लेकिन फिर भी शिकायत यह बनी रहती है कि व्यर्थ अभी तक भी चलता है और जब योग करने बैठते हैं तब भी व्यर्थ चलता है, उसको कंट्रोल करना कभी-कभी बहुत मुश्किल हो जाता है और ये चीज़ अंत तक चलनी है इसलिए उसको कैसे फुलस्टॉप लगाना है ये भी तो आना चाहिए।
किसी ने मुझ से प्रश्न किया कि ऐसा तो नहीं है कि बिंदी लगाना है माना यहां(मस्तक पर) बिंदी लगा दिया तो संकल्प स्टॉप हो गये। ऐसे बिंदी लगा नहीं सकते फिजि़कली कोई, तो संकल्पों को फुलस्टॉप लगाने का भाव क्या है बाबा का? तो उस पर मेरा चिंतन चल रहा था कि सम्पूर्ण पवित्रता का आधार ही यही है। अगर व्यर्थ बंद ही नहीं हुआ, रूका ही नहीं तो सम्पूर्ण पवित्रता की बात तो बहुत दूर हो गई। तो पहला पुरूषार्थ हमारा फुलस्टॉप लगाना। तो फुलस्टॉप लगाना किसको कहा जाता है? पहली बात, फुलस्टॉप लगाना माना ये नहीं कि हमारा मन निर्संकल्प हो जायेगा, संकल्प चलना बंद हो जायेंगे उसको फुलस्टॉप कहा? नहीं। लेकिन फुलस्टॉप लगाने का मतलब है कि अपनी विचारधारा को एक दिशा देना। श्रेष्ठ, समर्थ और शक्तिशाली दिशा देना। विचार बंद नहीं होंगे, विचार तो कंटिन्यु चलेंगे,लेकिन उसको मोड़ देना बहुत आवश्यक है। अब उस समय मोडऩे के लिए क्या करना पड़ेगा? व्यर्थ विचारों का तूफान ऐसा है कि जब एक बार चालू हो जाये, तो क्या होता है? रूकने का नाम नहीं लेता और ऐसे समय में अगर योग किया तो क्या होगा, और ज्य़ादा चलेगा। क्योंकि उसको स्पेस मिल जाता है, टाइम मिल जाता है तो और अधिक चलना शुरू हो जायेगा। इसलिए जब व्यर्थ चल रहा हो तो उसको फुलस्टॉप लगाने के लिए या दिशा देने के लिए स्थूल सेवा शुरू करो। उस समय योग में बैठना समझदारी नहीं है या स्थूल सेवा, कर्मणा या वाचा सेवा शुरू करो। किसी-न-किसी को ज्ञान सुनाओ, अपने विचारों को अपने आप एक दिशा मिल जायेगी।
जब किसी को ज्ञान सुनाते हैं तो कई लोग सोचते हैं कि हमारी स्थिति ही नहीं है। उस समय व्यर्थ ही इतना चल रहा है हम ज्ञान सुनाते हैं तो सामने वाले को क्या असर होगा? उसको तीर तो लगेगा नहीं तो ज्ञान भी क्यों सुनायें? वास्तव में हम उसको ज्ञान नहीं सुना रहे, उस वक्त हम आपने आपको ज्ञान सुना रहे होते हैं और जब हम आपने आपको ज्ञान सुना रहे होते हैं तो क्या होता है कि जितनी देर आपने उसको ज्ञान सुनाया उतनी देर में धीरे-धीरे आपके विचार परिवर्तित होते हुए आप खुद महसूस करेंगे कि हाँ, जैसे फुलस्टॉप लग गया उस व्यर्थ की बात को। अच्छा, चलो ज्ञान सुनाना मुश्किल हो रहा है तो कोई बात नहीं, कर्मणा सेवा करो। जितना आप कर्मणा सेवा करेंगे तो उससे दो बात होगी। एक तो कर्मणा सेवा किया तो उसका पुण्य अर्जित होगा और दूसरों जब उस सेवा से कोई आत्मा प्रसन्न होती है तो उसकी दुआयें भी मिलती हैं। तो ये दो चीज़ें प्राप्त होने से व्यर्थ को समाप्त करना आसान हो जाता है।