होली को हो -ली करके मनाओ

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परमात्मा ने होली का वास्तविक अर्थ बताया…

परमपिता परमात्मा शिव ने हमें होली शब्द के तीन अर्थ बताये हैं – 1. होली अर्थात् बीती सो बीती, जो हो गया उसकी चिन्ता न करो तथा आगे के लिए जो भी कर्म करो, योगयुक्तहोकर करो, 2. होली अर्थात् हो गई। मैं आत्मा अब ईश्वर अर्पण हो गई, अब जो भी कर्म करना है वह ईश्वर की मत पर ही करना है। 3. होली अर्थात् पवित्र। हमें जो भी कर्म करने हैं, वे किसी भी विकार के वश होकर नहीं वरन पवित्र बुद्धि से करने हैं।

जकल हम होली पर्व के नाम पर एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य पर रंगों के साथ-साथ कीचड़ और गंदा पानी फेंका जाता हुआ देखते हैं। भारत के कुछ गाँवों में, विशेष नातों में(जैसे भाभी-देवर), एक द्वारा दूसरे की मोटी रस्सी या डंडे से पिटाई करने की प्रथा भी इस दिन है। भले ही, पिटने वाला उस समय लोकलाजवश बोलता नहीं है पर इस प्रकार की हिंसा का कुप्रभाव तो सभी पर पड़ता ही है। अन्य त्योहारों पर जहाँ लोग घरों से बाहर निकलकर चहल-पहल देखने को उतावले होते हैं, होली पर लोग दरवाजा बंद कर दुबके रहते हैं। यह देख मन में प्रश्न उठता है कि आखिर इस त्योहार का वास्तविक रहस्य क्या है?
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में परमपिता परमात्मा शिव ने अन्य त्योहारों के साथ-साथ होली के त्योहार के मूल स्वरूप का भी ज्ञान कराया है जिसे जानकर रोम-रोम रोमांचित हो उठता है। सभी प्रश्नों के हल मिल जाते हैं और जीवन को ऊंचा उठाने में बहुत मदद मिलती है।

होली मनाने का समय
होली का त्योहार वर्ष के अंतिम मास फाल्गुन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। सृष्टि चक्र के दो भाग हैं ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात्रि। ब्रह्मा का दिन है सतयुग-त्रेतायुग। उस समय सभी देवात्मायें ईश्वरीय रंग में रंगी होती हैं परंतु जब द्वापरयुग आता है और ब्रह्मा की रात्रि का प्रारंभ होता है तो मानवात्मायें माया(विकारों) से बदरंग होने लगती हैं। कलियुग के अंत तक तो इतनी बदरंग हो जाती हैं कि अपनी असली पहचान से पूरी तरह दूर चली जाती हैं। तब निराकार परमात्मा शिव धरती पर अवतरित होकर विकारों से बदरंग बनी आत्माओं को अपने संग का रंग लगाते हैं। भगवान जब आते हैं तो स्वयं तो ज्ञान गुणों का रंग आत्माओं पर लगाते ही हैं पर जिन पर ज्ञान-गुणों का रंग लग जाता है उन्हें यह आदेश भी देते हैं कि अब तुम अन्य आत्माओं पर भी यह रंग लगाओ। इसी की याद में इस त्योहार पर मनुष्य एक-दो को गुलाल आदि लगाते हैं।
होली मनाने की विधि
होली के त्योहार को मनुष्य तीन प्रकार से मनाते हैं – 1. एक-दूसरे पर रंग डालना, 2. होलिका जलाना, 3.मंगल मिलन मनाना।

  1. एक-दूसरे पर रंग डालना – भगवान आत्मा पर ज्ञान, गुण और शक्तियों का रंग लगाते हैं परंतु मनुष्य महंगे रंगों द्वारा मानव के कपड़ों और कई बार तो चेहरे, आँखों और गले को भी नुकसान पहुंचा देेते हैं। इस प्रकार, इस निर्धन देश के करोड़ों रूपये रंगों और रंगे हुए कपड़ों की भेंट चढ़ जाते हैं। क्या ही अच्छा हो, यदि हम होली को विकृत रूप में न मनाकर, इसके शुद्ध स्वरूप में जैसे भगवान ने सिखाई थी, वैसे ही मनाएं।
  2. होली जलाने का वास्तविक अर्थ
    इस दिन लोग, अनेक घरों में इक_ी की हुई लकडिय़ों और गोबर को जलाते हैं और सोचते हैं, इससे दु:ख, दरिद्रता, अपवित्रता जल जायेगी परन्तु सोचने की बात है, भारत के देहातों में तो सदियों से प्रतिदिन लोग गोबर और लकडिय़ाँ जलाते आ रहे हैं परंतु दरिद्रता और अपवित्रता तो जली नहीं, और ही बढ़ती जा रही है। वास्तव में लकडिय़ों और कण्डों को अग्नि में नहीं बल्कि योगाग्नि में पुराने संस्कार, स्वभाव, पुरानी कट स्मृतियाँ जला देने से हमारे दु:ख दूर हो सकते हैं। कहीं-कहीं उपलों में धागे डालकर भी होलिका जलाने की प्रथा है, वह इस रहस्य का परिचय देती है कि यह शरीर उपलों की तरह विनाशी है। एक दिन राख में बदल जाना है परंतु आत्मा अविनाशी है,

उसे अग्नि जला नहीं सकती। कई लोग इसे राक्षस विनाशक त्योहार भी मानते हैं क्योंकि यह माया रूपी राक्षस को ज्ञान रूपी हो-हल्ले से भगाने का त्योहार है।

  1. एक-दूसरे को मिलना ही नहीं मंगल मिलन भी हो 
    मंगल का अर्थ है कल्याण। कल्याण करने वाला मिलन तो परमात्म मिलन ही है। दूसरा, मंगल मिलन तो तभी हो सकता है जब आपस में स्वभाव, संस्कार का मेल हो, एक-दूसरे के विचारों का सम्मान हो। यह भी तभी हो सकता है जब हम देहभान के स्वभाव, संस्कार को भूलकर आत्मस्थिति में टिकें। आत्मस्थिति में टिककर हम स्वयं से, अन्य आत्माओं से और परमात्मा से भी सच्चा मंगल मिलन मना सकते हैं।

होलिका शब्द का अर्थ
कई लोगों का कहना है कि होलिका शब्द का अर्थ है भुना हुआ अन्न! होलिका के अवसर पर लोग गेहूँ और जौ की बाली को भुनते हैं। वास्तव में यह भी एक आध्यात्मिक रहस्य को उजागर करता है। जैसे भुना हुआ अन्न आगे उत्पत्ति नहीं करता, ऐसे ही ज्ञान-योग की अग्नि में तपकर किया गया कर्म भी अकर्म हो जाता है। भगवान द्वारा बताई गई उपरोक्त विधि से होली मनाने से अवश्य ही आत्मा का कल्याण होगा और इस भारत देश में फिर से भ्रातृप्रेम भरपूर होगा। गाय-शेर इक्_े जल पियेंगे और सभी रिश्तों-नातों में पारस्परिक प्रेम की सुगंध होगी।

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