पुण्य करने का सबसे पुण्य करने का सबसे

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हम जब कभी भी इस दुनिया में एक चीज़ बड़े गौर से देखें तो पायेंगे कि बहुत आसानी से, बहुत आराम से बिना किसी पहल के कहाँ भीड़ इक्_ी होती है, जहाँ कोई मर जाता है या जहाँ किसी का एक्सीडेंट हो जाता है तो वहाँ हमें किसी को बुलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, ऑटोमेटिकली भीड़ आ जाती है। तो मतलब यही हुआ कि भीड़ को बुलाने के लिए और सहज रीति से भीड़ हमारे आस-पास हो उसके लिए दुनिया में एक चीज़ बहुत कॉमन है और वो है अगर किसी ने शरीर छोड़ा है तो लोग नैचुरल

वहाँ आ जाते हैं। इसका मतलब अगर हमारे आस-पास, वो तो स्थूल चीज़ हो गई, अगर हमारे आस-पास हमसे कोई मिलना चाहे तो क्यों नहीं मिल रहा है,क्योंकि हम सबके अन्दर बहुत सारा कुछ न कुछ ऐसा दोष, कुछ न कुछ ऐसा विकार, ऐसी स्थिति चल रही है जिससे कोई मिलना नहीं चाहता। कोई न कोई तरह का ईगो है, कोई न कोई तरह की हमारे अन्दर हेटर्ड(घृणा)है, ईष्र्या है, सरकाज़्म(कटाक्ष) कुछ न कुछ तो है जो हम सबको सबसे दूर कर रहा है।
जैसे इस दुनिया में बहुत ज्य़ादा आकर्षित कौन करता है, जिसका शरीर जिसको भूला हुआ हो। जैसे छोटा बच्चा उसको नहीं पता कि मैं मेल हूँ, मैं फिमेल हूँ लेकिन उसको देखकर बहुत अच्छा लगता है और बहुत हम आकर्षित भी होते हैं, लेकिन वहीं जब हम बड़े हो जाते हैं तो धीरे-धीरे लोग हमसे दूर हो जाते हैं। तो आज का जो टॉपिक है उसके हिसाब से अगर देखा जाये कि सच में हमने पूरे जीवन हर पल कोई न कोई कामना से कर्म किया है और अभी भी कर ही रहे हैं। कहीं हम काम कर रहे हैं वहाँ कोई न कोई इच्छा है, कोई न कोई कामना है, कोई लोभ है, कोई लालच है, ऐसे ही हम कहीं भी काम कर रहे हैं तो उसमें कुछ न कुछ ऐसा है। इसका मतलब हमारा पुण्य का खाता बहुत कम है। मैं कहूँगा ना के बराबर है। क्योंकि पुण्य तो तभी जमा होगा ना जब उसमें कोई इच्छा न हो। सिर्फ देने की भावना हो, बनने की भावना हो।
तो इसको इस तरह से समझ सकते हैं कि जन्म को हम जन्मतिथि कहते हैं या जन्म दिवस कहते हैं। जहाँ हम जन्म लेते हैं, जिस दिन हम जन्म लेते हैं उस डेट को हम जन्मदिवस कहते हैं। लेकिन जब हम शरीर छोड़ते हैं तो एक साल बाद हमारी मृत्यु को एक नाम देते हैं उसको कहते हैं पुण्य तिथि। तो इतनी सहज ये बात समझ में आ रही है कि पुण्य करने का माध्यम जन्म लेकर पूरे जीवन हमने जो कर्म किया उससे पुण्य तो हुआ ही नहीं। क्योंकि उसमें कोई न कोई इच्छा है। लेकिन पुण्य तिथि वो बन गई जिस दिन हम मरे, जिस दिन हमने शरीर छोड़ा। तो कितना सहज और क्लीयर है, स्पष्ट है कि जब हम हर पल अपने आपको उस सेन्स में देखते हैं तो पाते हैं कि उस दिन बिना किसी इच्छा के, बिना किसी लालसा के, मैं आराम से इस दुनिया से चला जाऊं। इस दुनिया में रहते हुए पुण्य हमारा इसलिए नहीं बन रहा है शायद कि हम हर पल मर नहीं रहे हैं। तो परमात्मा ने आकर पुण्य जमा करने की विधि बता दी, और बहुत सुन्दर बताई। कहा कि तुम हरपल शरीर से अशरीरी हो। शरीर को छोड़कर विदेही हो। बार-बार अपने शरीर को भूलो। जितना जो शरीर को भूल रहा है उतना उससे वो पुण्य का खाता जमा हो रहा है। तो पुण्य का खाता जमा करने का सबसे सहज और आसान मार्ग हर पल अपने आपको इस दुनिया से डिटैच करो। जितना इसका अभ्यास बढ़ता जायेगा उतना हमारा पुण्य का खाता बढ़ता जायेगा। पुण्य का खाता बढ़ाने के लिए हमें सबसे पहले इस पर काम करना है। ये चीज़ इतनी सहज और सरल है कि कोई भी कर सकता है, कहीं भी कर सकता है। नहीं तो देह में रहते हुए कुछ न कुछ तो इच्छा रहती ही है फिर उसी के आधार से कर्म होते हैं। लेकिन वो इच्छा अगर पॉजि़टिव है तो कर्म थोड़े अच्छे हो जायेंगे, लेकिन पुण्य का खाता उतना अच्छा नहीं होगा। इसलिए सम्पूर्ण भूल करके जो कर्म कर रहा है उसका पुण्य जमा भी होगा और अच्छा भी लगेगा। तो इस तरह से अपने पुण्य जमा करने का यही एक माध्यम है, सरल और सहज माध्यम है।

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